बैलेंस शीट सुधार में लगेगा कुछ वक्त | आकाश प्रकाश / June 04, 2019 | | | | |
इस समय विभिन्न कंपनियों के प्रवर्तक नकदी के झटके सहन कर रहे हैं। इस संबंध में विस्तार से जानकारी प्रदान कर रहे हैं आकाश प्रकाश
भारत में बीते कुछ वर्ष के दौरान हमने देखा कि बड़े कारोबारी समूहों ने अपनी बैलेंस शीट में कर्ज कम करने पर बहुत जोर दिया। क्रेडिट सुइस की कुख्यात 'हाउस ऑफ डेट' रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे कई बड़ी भारतीय कंपनियों का पूंजी का ढांचा अस्थायित्व भरा है। उनके पास मुक्त नकदी प्रवाह नहीं है और उनको अपना कर्ज कम करने की आवश्यकता है। बीते छह से सात वर्ष में कंपनियों ने काफी कर्ज कम किया है। इसके लिए उन्होंने परिसंपत्तियों की बिक्री की है, बैंकों ने कुछ राशि बट्टे खाते में डाली और कुछ मामलों में कंपनियों का स्वामित्व बदला गया। बैंकिंग तंत्र (फंसे हुए कर्ज का अधिकतम स्तर 15 फीसदी) और अर्थव्यवस्था को इस कवायद का बोझ उठाना पड़ा है। ठीक उस समय जब लगा कि हम इस चक्र से बाहर निकल रहे हैं और निजी निवेश बढ़ाने की दिशा में बढ़ सकते हैं, हम एक बार फिर अत्यधिक ऋण के दौर में आ गए।
यह अत्यधिक नकदी और बैलेंस शीट में कर्ज कम करने की परिघटना अब प्रवर्तक स्तर पर होगी और उनकी व्यक्तिगत बैलेंस शीट में नजर आएगी। यह वह क्षेत्र है जहां इन दिनों बहुत अधिक तनाव है। यह ऋण बाजार को नुकसान पहुंचा सकता है और निजी निवेश में सुधार की संभावनाओं को भी क्षति पहुंचा सकता है। तमाम बैलेंस शीट में कर्ज कम करने का चक्र कर्ज के भुगतान से चलता है। इसका असर निवेश पर भी पड़ता है और अर्थव्यवस्था में मंदी आती है। गत सितंबर माह में आईएलऐंडएफएस डिफॉल्ट के बाद चुनिंदा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को छोड़कर सभी कंपनियां दबाव में हैं। लंबी अवधि के फंड तक उनकी पहुंच सीमित हुई है और फंडिंग की लागत में 100-200 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है। कई एनबीएफसी के पास कर्ज चुकता करने के लिए परिसंपत्तियां बेचने के अलावा कोई चारा नहीं रहा। कई के कर्ज देने की सीमा कम हो गई क्योंकि वे नया फंड जुटाने की स्थिति में नहीं हैं। ये एनबीएफसी प्रवर्तकों की फंडिंग और ढांचागत ऋण क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां थीं। अब जब वे ऋण देने में सक्षम नहीं तो परिपक्व हो रही प्रवर्तक फंडिंग के ढांचे को आगे बढ़ाने को तैयार नहीं। ऐसे में प्रवर्तकों को अपनी जवाबदेही चुकता करने के लिए नकदी जुटाने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। यह उन प्रवर्तकों के लिए झटका साबित हुआ जो अपनी जवाबदेही को आगे बढ़ाते आए थे।
प्रवर्तकों की फंडिंग का दूसरा जरिया है डेट म्युचुअल फंड। विभिन्न ढांचों के तहत हमने देखा है कि कई फंड विभिन्न प्रवर्तक होल्डिंग कंपनी को सबस्क्राइब करते हैं। ये प्रवर्तक के सूचीबद्घ कंपनी के शेयरों के संपाश्र्व में काम करते हैं। अनुमान के मुताबिक ऐसी फंडिंग की राशि एक लाख करोड़ रुपये से अधिक है। इसलिए बाजार भयभीत हैं क्योंकि हमें नहीं पता कि प्रवर्तकों की यह फंडिंग किस स्थिति में है। हमें यह भी नहीं पता है कि बाजार को इसका सही अनुमान है या नहीं। डेट फंडों को आईएलऐंडएफएस के समक्ष अपनी जोखिम भरी राशि अवमूल्यन करना ही होगा। संभव है कि प्रवर्तक फंडिंग ढांचे के सामने आने पर ऐसा और अवमूल्यन देखने को मिले।
कई निवेशक शायद यह नहीं समझ पा रहे हैं कि कुछ फंड ने उनके लिए कितना जोखिम ले रखा है। यही कारण है कि कई डेट फंड अब ऋणमुक्ति का दबाव महसूस कर रहे हैं। नियामक भी शायद इस प्रकार के ऋण को लेकर अस्पष्ट है। यह कहना उचित होगा कि आगे चलकर डेट फंड ऐसे प्रवर्तक ढांचे में अपना जोखिम कम करेंगे। एक बार फिर प्रवर्तकों से कहा जा रहा है कि वे परिपक्वता ढांचे का पुनभुर्गतान करें क्योंकि रोल ओवर की सुविधा नहीं है। प्रवर्ततकों की फंडिंग का तीसरा स्रोत थी निजी कॉर्पोरेट बैंकों की ढांचागत ऋण पुस्तिका। इन बैंकों पर भी निवेशकों का काफी दबाव है कि वे ऐसे जोखिम को कम करें। ऐसा लगता नहीं कि फंडिंग का यह स्रोत जारी रहेगा। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी के समक्ष पूंजी और प्रबंधन की भारी चुनौती है। वह कारोबारी मॉडल बदलने और ऋण पुस्तिका को जोखिम रहित करने के लिए भी तत्पर नजर आती है।
प्रवर्तकों की बैलेंस शीट को नकदी की कमी का झटका लगा। अधिकांश कारोबारी परिवार अपने प्रवर्तकों की फंडिंग कम करने की जल्दबाजी में हैं तो केवल इसलिए क्योंकि वैकल्पिक फंडिंग स्रोतों का अभाव है। प्रवर्तकों की बैलेंस शीट में नकदी की कमी के कई अनचाहे परिणाम हैं। पहली बात तो यह कि चुनिंदा मामलों में बाजार ने उन कंपनियों के शेयरों को नुकसान पहुंचाया जिनके शेयर गिरवी थे। कई अन्य मामलों में जहां गिरवी शेयर जोखिम में थे वहां शेयरों पर इतना गहरा असर हुआ कि डिफॉल्ट की घटनाओं की शुरुआत हुई और ऋण के बदले इन शेयरों की जबरिया बिक्री की शुरुआत हुई। जिन कंपनियों में परिचालन की कोई समस्या नहीं थी उनके शेयरों की कीमत इन गिरवी के कारण 50 से 60 फीसदी तक गिरी।
दूसरी बात, हमने ऐसे प्रयास देखे हैं जहां प्रवर्तक परिवारों ने व्यक्तिगत कर्ज कम करने के लिए नकदी जुटाने की खातिर शेयर बेचे हों। यह आम बात है और यह भी शेयरों पर दबाव डालती है। तीसरी बात, व्यक्तिगत ऋण कम करने की जल्दबाजी में भी अनेक निवेशक परिसंपत्तियों की बिक्री करते हैं। अधिकांश मामलों में नकदी का इस्तेमाल बुनियादी कारोबार या व्यक्तिगत परिसंपत्ति बनाने में किया गया। एक बार फिर परिसंपत्तियों के लिए खरीद का बाजार नजर आया और अचल संपत्ति तथा बुनियादी क्षेत्र की तमाम परिसंपत्तियां विभिन्न प्रवर्तक परिवारों ने बिक्री के लिए प्रस्तुत कीं। बुनियादी क्षेत्र में जिस कदर संपत्ति नष्ट हुई है उसे देखते हुए यह बात सोचना भी अजीब है कि कोई निजी क्षेत्र से नए सिरे से निवेश की मांग कर सकता है।
जाहिर है इन तमाम बातों के बीच बैलेंस शीट में सुधार होने में वक्त लगेगा। इसके अलावा दोबारा जोखिम लेने की स्थिति बनने में भी वक्त लगेगा। ऐसे में वित्तीय क्षेत्र के बिचौलियों को सहज होने में समय लगेगा। देश के प्रवर्तकों में से अधिकांश के जल्दबाजी में निवेश करने की कोई संभावना नहीं है। हम कमोबेश उसी स्थिति में हैं जहां हम सात वर्ष पहले थे। सरकार को अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ावा देना होगा। इस बीच व्यवस्था में काम कर रही वित्तीय बिचौलिया कंपनियां नए सिरे से भरोसा कायम करने का प्रयास करेंगी। केवल यही आशा की जा सकती है कि यह प्रक्रिया तेजी से पूरी हो। हम अगले सात वर्ष तक एक अंक की वृद्धि दर पर निर्भर नहीं रह सकते। निजी क्षेत्र को तेजी से वापसी करनी होगी।
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