सरकार और बाजार दो अलग-अलग चीजें : सौरभ | हंसिनी कार्तिक / June 02, 2019 | | | | |
मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक सौरभ मुखर्जी का मानना है कि अगर सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में एक समान दृष्टिकोण से काम करेगी तो अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती मिलेगी। उन्होंने नई सरकार और बाजार की अपेक्षाओं पर बात की। हंसिनी कार्तिक से उनकी बातचीत के अंश:
नई सरकार और बाजार से आपकी क्या अपेक्षाएं क्या हैं?
सरकार और बाजार दो अलग-अलग चीजें हैं। अहम सवाल यह है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार अर्थव्यवस्था के संचालन में बड़ा बदलाव ला पाती है या नहीं। पिछली राजग सरकार के कार्यकाल के पहले दो वर्षों में नई ऊर्जा और आर्थिक सुधारों की लालसा दिखी थी। सरकार जो ऊर्जा पहले बजट में दिखाएगी, अगर वही जोश दूसरे कार्यकाल के पूरे पांच वर्षों में दिखता है तो अर्थव्यवस्था के लिए काफी हितकर होगा। अगर सरकार बैंकिंग प्रणाली में नई पंूजी डालने और सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने का माद्दा दिखाती है तो देश एक बेहतर स्थिति में होगा। बैंकिंग क्षेत्र के लिए शुरू की गर्ई सरकार की इंद्रधनुष 1, इंद्रधनुष 2 और अन्य योजनाएं कारगर नहीं हुई हैं। इसी तरह, हरेक छह महीने पर आयुष्मान भारत, महा पेंशन एवं पीएम किसान और कृषि ऋण माफी योजनाओं के बदले सामाजिक सुरक्षा के लिए एक एकीकृत ढांचा लाने पर जोर दिया जाए तो यह खासा कारगर साबित होगा। पिछले कार्यकाल में सरकार ने जिन योजनाओं की शुरुआत की, उनका फायदा सीमित रहा है।
क्या बाजार में मौजूदा मूल्यांकन आपके अनुकूल लग रहा है?
व्यापक बाजार को लेकर मेरा सतर्क रुख रहा है। मेरा मानना है कि देश की ज्यादातर अग्रणी कंपनियों की वित्तीय मजबूती पर सवाल उठाए जा सकते हैं। निफ्टी उन्हें जितना समर्थन दे रहा है, वह मूल्यांकन से मेल नहीं खा रहा है। कुल मिलाकर निफ्टी और सेंसेक्स के लिए क्रमश: 9,500 और 33,000 के इर्द-गिर्द समर्थन दिख रहा है, जो मौजूदा स्तर से 15 प्रतिशत कम है। चुनाव के बाद अब राहत भरी तेजी दिख सकती है, लेकिन जैसे ही हम वित्त वर्ष 2020 में आगे बढ़ेंगे, वैसे ही वित्तीय क्षेत्र की कमजोर हालत, खस्ता राजकोषीय गणित और रोजगार सृजन में कमी से बाजार सामान्य हालत में आ जाएगा।
वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की भूमिका सीमित होने और व्यापार युद्ध जारी रहने से मुश्किल हालात को लेकर आप आगाह करते रहे हैं। आगे की तस्वीर कैसी है?
बाजार के कामकाज का तरीका कुछ ऐसा है कि कई चीजों का असर नजर नहीं आता है। दो से तीन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को छोड़ दें तो यह पूरा क्षेत्र गंभीर मुश्किलों से जूझ रहा है। आईएलऐंडएफएस की घटना आगाह करने वाली थी और आगामी छह महीने में एनबीएफसी क्षेत्र को लेकर हालत पूरी तरह स्पष्टï हो जाएगी। इस साल के अंत तक एनबीएफसी का आकार और छोटा हो सकता है। जहां तक व्यापार युद्ध की बात है तो मेरी नजर में भारतीय निर्यातकों पर इसका बहुत बड़ा असर पड़ता नहीं दिख रहा है। चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर सकता है और इसके जवाब में रुपये का अवमूल्यन करने में कोई खास दिक्कत नहीं आनी चाहिए। इन बातों को लेकर मुश्किलें नहीं है, लेकिन अगर आरबीआई नकदी नियंत्रित करता है तो एनबीएफसी खंड के लिए मुश्किलें जरूर पैदा हो सकती हैं।
ब्याज दरों में एक बार फिर कटौती की चर्चा चल रही है?
एनबीएफसी क्षेत्र को संकट से निजात दिलाने के लिए आरबीआई को मुख्य दरों में 50 आधार अंक की कमी करनी चाहिए। हालांकि इससे वाहन ऋण या पूंजीगत व्यय के लिहाज से अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं होगा। यह देखना अहम होगा कि बैंक की अगुआई वाले ढांचे के साथ तालमेल कैसे बैठाया जाता है, क्योंकि चार बड़े निजी बैंक इस ढांचे में अधिक फायदेमंद होंगे। इस वित्त वर्ष के अंत में वे अधिक जोखिम लेकर कंपनियों को ऋण आवंटित करेंगे। इससे पूंजीगत व्यय में तेजी आएगी।
कमाई की रफ्तार कैसी रहेगी? कुछ समय से यह सुस्त रही है, जिससे मूल्यांकन वाजिब प्रतीत नहीं हो रहा है।
पूरे बाजार के संदर्भ में बात करें तो निवेशित पूंजी पर प्रतिफल पिछले 11-12 वर्षों से कम रहा है और कमाई भी पिछले छह वर्षों से लचर रही है। कुल मिलाकर बाजार निवेश के लिए आकर्षक नहीं रह गया है। लिहाजा गुणवत्ता परखे बिना निफ्टी या बड़े शेयरों में निवेश करने वाले, विशेषकर खुदरा निवेशक, जोखिम को दावत दे रहे हैं। मूल्यांकन भले ही करीब 10 वर्ष के औसत के करीब क्यों न हो, लेकिन कीमत-आय का अनुपात 25/27 पर रहना सहज नहीं माना जा सकता है।
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