मोदी सरकार से करों में कटौती की आस बरकरार | सुंदर सेतुरामन / June 02, 2019 | | | | |
पूंजी बाजार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की दोबारा वापसी पर उत्साहित दिखने के साथ ही राहत की भी उम्मीद कर रहा है। पिछले छह कारोबारी सत्रों में से चार में बेंचमार्क सूचकांक नई ऊंचाइयों पर बंद हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने शेयर बाजार के निवेशकों को ध्यान में रखते हुए मोटे तौर पर दो बदलाव किए थे। इनमें लंबी अवधि का पंूजीगत लाभ (एलजीसीजी) और उच्च लाभांश वितरण कर (डीडीटी) शामिल थे। ये दोनों बदलाव निवेशकों को पसंद नहीं आए थे। अब निवेशकों को मोदी सरकार से बाजार के अनुकूल नीतियों की उम्मीद है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि इन दोनों कदमों ने निवेशकों को किस तरह प्रभावित किया।
एलटीसीजी की वापसी
सरकार ने कर संग्रह बढ़ाने और शेयर बाजार के रास्ते कर प्रवंचना रोकने के लिए फरवरी 2018 के बजट में एलटीसीजी दोबारा शुरू करने की घोषणा की थी। यह प्रावधान अस्तित्व में आने के बाद एक साल से अधिक अवधि तक रखे गए शेयर के बाद इसे बेचने पर प्राप्त लाभ पर 10 प्रतिशत कर चुकाना पड़ता है। जानकारों का कहना है कि सरकार ने जनवरी 2018 से पहले प्राप्त लाभ को कर मुक्त रखने की घोषणा की थी, जो एक राहत भरा निर्णय था। हालांकि इंडेक्सेशन लाभ के अभाव में निवेशक छोटी अवधि के कारोबार को अधिक तवज्जो दे रहे हैं। एलटीसीजी पर कर 10 प्रतिशत है, लेकिन छोटी अवधि की कमाई पर कर 15 प्रतिशत है। कारोबारियों का कहना है कि करों में कम अंतर के मद्देजनर निवेशक लंबी अवधि के निवेश संबंधी फैसले लेने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। कुछ कारोबारियों का कहना है कि एलटीसीजी की गणना के लिए अवधि एक साल से बढ़ाकर तीन साल की जानी चाहिए ताकि निवेशक दीर्घ अवधि के लिए निवेश करने को प्रेरित हो सकें।
10 लाख रुपये से अधिक लाभांश आय पर कर
2016 के बजट में सरकार ने उन निवेशकों पर अतिरिक्त डीडीटी लगा दिया था जो लाभांश के रूप में 10 लाख रुपये से अधिक आय अर्जित करते हैं। अब निवेशकों को किसी वित्त वर्ष में अर्जित 10 लाख रुपये से अधिक लाभांश पर 10 प्रतिशत कर भरना पड़ता है। कई निवेशक इसके खिलाफ रहे हैं, क्योंकि इससे उन्हें कई तरह के करों का सामना करना पड़ता है। कोई कंपनी कर चुकाने के बाद निवेशकों को लाभांश का भुगतान करती है, साथ ही कंपनी को वितरित लाभांश पर भी कर देना पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि लाभांश पर दोहरे कराधान से कंपनियों की पूंजी संरचना हिल जाती है। इसका एक और असर यह होता है कि कंपनियां इक्विटी से पूंजी जुटाने बजाय ऋण साधनों (डेट) से पूंजी जुटाने को तवज्जो देती हैं, क्योंकि इससे उन्हें कर बचाने में मदद मिलती है। डीडीटी से छोटे शेयरधारकों के बजाय प्रवर्तकों पर अधिक असर पड़ता है और अब ज्यादातर कंपनियों ने लाभांश के बदले शेयर पुनर्खरीद का विकल्प चुनना शुरू कर दिया है। ज्यादातर प्रवर्तक अपने शेयर देकर शेयर पुनर्खरीद का लाभ ले रहे हैं, हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि छोटे शेयरधारक लाभांश से वंचित रह जाते हैं।
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