तांबा उत्पादकों को आरसीईपी का डर | जयजित दास / भुवनेश्वर May 29, 2019 | | | | |
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) पर औपचारिक तौर पर हस्ताक्षर किए जाने से पहले ही घरेलू तांबा उत्पादकों ने अपनी मुश्किलों के संबंध में केंद्र सरकार से चिंता जताई है। तांबे के घरेलू भागीदारबढ़ते आयात की मार झेल रहे हैं। देश की खपत में अब इसका योगदान 38 प्रतिशत हो गया है। इन भागीदारों का कहना है कि हालांकि भारत पहले ही तांबे के तारों और छड़ों के मामले में आत्मनिर्भर है लेकिन फिर भी आयात का जमावड़ा इतना बढ़ गया है। दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की वजह से आयात जोर पकड़ रहा है। आरसीईपी को लेकर चल रही वार्ता के कारण तांबा उत्पादकों को लगता है कि इस पर हस्ताक्षर करने से आगे चलकर शुल्कों में कमी आएगी जिसके परिणामस्वरूप आयात बढ़ेगा।
भारतीय प्राथमिक तांबा उत्पादक संघ (आईपीसीपीए) के महासचिव संजय कर्ण ने कहा कि भारत कई दौर की चर्चाएं (आरसीईपी को लेकर) कर चुका है और अब इससे हटने की संभावना नहीं है। भारत सरकार 90 प्रतिशत वस्तुओं को खोलते हुए 10 प्रतिशत वस्तुओं को अपवाद सूची में रखने पर विचार कर रही है। हम चाहते हैं कि तांबा और एल्युमीनियम जैसी प्रमुख धातुओं को आरसीईपी की इस नकारात्मक या अपवाद सूची में रखा जाए। भारत में 10 लाख टन तांबा उत्पादन क्षमता है जो देश की 6.5 लाख टन की मांग से अधिक है। अदाणी समूह और वेदांत लिमिटेड जैसी प्रमुख कंपनियों ने नई स्मेल्टिंग इकाइयां स्थापित करने की योजना बनाई है।
आरसीईपी 16 राष्ट्रों का एक आर्थिक खंड है जिसमें चीन भी शामिल है। आरसीईपी देशों के साथ भारत का व्यापार 100 अरब डॉलर आंका जाता है जिसमें अकेले चीन के साथ ही 50 अरब डॉलर मूल्य का द्विपक्षीय व्यापार होता है जबकि भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) रखने वाले आसियान देशों से 13 अरब डॉलर मूल्य का व्यापार होता है। कर्ण ने कहा कि आरसीईपी में अन्य देश पहले ही भारत की कीमतों पर मुनाफा कमा रहे हैं। अगर आरसीईपी होती है तो यह तांबा उद्योग के लिए बहुत हानिकारक होगी। आरसीईपी में अन्य देशों से हमें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है। जब तक आसियान नहीं बना था, तब तक तांबे की नलियों का उद्योग फल-फूल रहा था। अब इस क्षेत्र में मुश्किल से 2-3 भागीदार ही हैं जबकि पहले 25-30 थे।
उल्टी शुल्क संरचना की वजह से परिष्कृत तांबे की हिंदुस्तान कॉपर, हिंडालको इंडस्ट्रीज और स्टरलाइट कॉपर जैसी प्राथमिक उत्पादकों की निराशा बढ़ गई है। तांबे के कॉन्सेंट्रेट के आयात पर 2.5 प्रतिशत शुल्क लगाया जाता है जबकि आसियान-एफटीए देशों से तैयार उत्पाद शून्य शुल्क पर भारत में आते हैं। भारत-आसियान एफटीए के तहत अधिकांश तांबा उत्पादों को नकारात्मक सूची में रखा जाता है। हालांकि तांबे के तारों पर आयात शुल्क की दर लगातार घटते हुए 2017 तक शून्य रह गई है जबकि 2010 में यह दर पांच प्रतिशत थी।
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