भाजपा को पूर्वी, दक्षिणी भारत से मिला दम | |
अभिषेक वाघमारे / 05 23, 2019 | | | | |
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकसभा चुनाव 2019 में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए हिंदी पट्टी और पश्चिमी राज्यों में अपनी छवि सुधारी है। पार्टी को पूर्व और दक्षिण में जबरदस्त सफलता मिली है। अपने प्रमुख क्षेत्रों में विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ करते हुए भाजपा ने 300 सीटों का आंकड़ा पार कर लिया। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना में उसने बेहतर प्रदर्शन किया और कर्नाटक में अपनी पकड़ बरकरार रखी। इससे भाजपा की शानदार जीत सुनिश्चित हुई और उसे उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के कारण हुए नुकसान की भरपाई करने में मदद मिली। हालांकि उत्तर प्रदेश में भाजपा को 11 सीटों का नुकसान हुआ लेकिन चार राज्यों यानी पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक और तेलंगाना में पार्टी को 34 सीट हासिल हुए। इन राज्यों में भाजपा के मत प्रतिशत को आसानी से सीटों में तब्दील करने से सीटों का इजाफा हुआ।
लोकसभा चुनाव 2019 में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को 37 फीसदी से अधिक मत मिला जो पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 6 फीसदी अधिक है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर 31 फीसदी मत मिला था। भाजपा के इस प्रदर्शन की तुलना 1967 से 1980 के दौरान इंदिरा गांधी को मिले जनाधार से की जा सकती है। उस दौरान कांग्रेस का मत प्रतिशत 40 से 43 फीसदी के दायरे में रहा था। अस्थायी आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस का मत प्रतिशत करीब 20 फीसदी रहा जो 2014 के 19.5 फीसदी के मुकाबले थोड़ा अधिक है।
खबर लिखे जाने तक कांग्रेस 51 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी थी। पश्चिम बंगाल में भाजपा के जनाधार में दोगुना से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बंगाल में भाजपा का मत प्रतिशत 17 फीसदी था जो बढ़कर 2019 में 40 फीसदी तक पहुंच गया। इससे पार्टी को राज्य में 2 सीटों से बढ़कर 20 सीटों पर जीत दर्ज करने में मदद मिली। इससे राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक महत्वाकांक्षा को तगड़ा झटका लगा है।
गौरतबल है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का मत प्रतिशत भी 40 फीसदी से बढ़कर 44 फीसदी हो गया। इससे पार्टी को कम नुकसान पहुंचा और उसे महज 13 सीटें गंवानी पड़ी। भाजपा और तृणमूल दोनों के मत प्रतिशत में इजाफा हुआ जबकि राज्य में वामपंथी दलों का जनाधार खिसक गया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) का मत प्रतिशत घटकर 7 फीसदी रह गया जो 2014 में 23 फीसदी रहा था। भाजपा कांग्रेस के जनाधार में भी सेंध लगाने में कामयाब रही।
ओडिशा में भी भाजपा बीजू जनता दल (बीजद) के बाद दूसरे स्थान पर है। पूर्वी आदिवासी राज्य में भाजपा का वोट शेयर 22 प्रतिशत से बढ़कर 38 प्रतिशत हो गया है। वहीं, बीजद के वोट शेयरों में 2 प्रतिशत की कमी आई है लेकिन फिर भी यह 42 प्रतिशत रहा है। परिणामस्वरूप मोदी के नेतृत्त्व वाली भाजपा ने लोकसभा चुनाव में बीजद से 7 सीटें छीन ली हैं और पार्टी की कुल 8 सीटें हो गई हैं। 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान ओडिशा में 26 प्रतिशत वोट जीतने वाली कांग्रेस का प्रतिशत इस बार गिरकर 14 प्रतिशत रह गया है। पटनायक ने पिछले लोकसभा चुनाव में 20 सीटें जीती थी जो इस बार घटकर 13 रह गई हैं।
साल 2018 में कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी जिसने 224 सीटों वाली विधानसभा में 36 प्रतिशत वोट के साथ 104 सीटें जीती थीं और बहुमत के आंकड़े से मामूली अंतर से पीछे रही थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर 50 प्रतिशत से अधिक हो गया है और भाजपा 28 में से 23 सीटें जीत चुकी है तथा 2 पर आगे चल रही है। भाजपा ने कांग्रेस के मतदाताओं में भारी सेंध लगाई है और कांग्रेस का वोट शेयर साल 2014 के 41 प्रतिशत के मुकाबले इस बार गिरकर 32 प्रतिशत पर आ गया है। परिणामस्वरूप कांग्रेस को कर्नाटक में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस अपनी 8 सीटें गंवा चुकी है और केवल एक सीट आपने पाले में कर सकी, जबकि जनता दल (सेक्युलर) के साथ मिलकर कांग्रेस राज्य में सत्ता में है। जेडीएस भी लोकसभा चुनाव में केवल एक सीट पर जीत दर्ज करा पाई।
तेलंगाना में तेलुगूदेशम पार्टी की अनुपस्थिति ने चौंकाने वाले परिणाम दिए हैं। भाजपा, कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति, तीनों दलों के वोट शेयर में बढ़ोतरी हुई है। कांग्रेस और भाजपा ने अपनी कुल सीटों की संख्या में बढ़ोतरी की है और कांग्रेस 3 तथा भाजपा 4 सीटें अपने खाते मेंं करती दिख रही हैं। राज्य में टीआरएस लोकसभा की दो सीटें गंवा चुकी है और 9 सीटों पर जीत दर्ज करने के करीब है।
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