उत्पादन-खपत में मंदी की चिंता बरकरार | अभिषेक वाघमारे / नई दिल्ली May 12, 2019 | | | | |
देश में चुनावी सीजन समाप्त होने वाला है और राजनीतिक बयानबाजी चरम पर पहुंच गई है। ऐसे में पृष्ठïभूमि में अस्पष्टï संकेतों के कोलाहल के साथ अर्थव्यवस्था कमजोर होती दिख रही है। हालांकि खपत में कमी की खबरें अब ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रह गई हैं, पर गहराई के साथ आर्थिक संकेतकों पर नजर डालें तो इससे गंभीरता की झलक मिलती है।
वित्त वर्ष 2019 की चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था के कम से कम तीन सेगमेंट- रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर (व्हाइट गुड्स) जैसे कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और टूथपेस्ट तथा साबुन (कंज्यूमर गुड्स) जैसे कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स और अयस्क एवं खनिज जैसे प्रमुख उत्पादों और विद्युत उत्पादन तथा खपत में कमजोरी दिख रही है। यह संकेत मार्च तिमाही के वृद्घि के आंकड़ों के लिए अच्छा नहीं है।
यह रुझान आरबीआई के सर्वे के निष्कर्ष के विपरीत है जिसमें क्षमता इस्तेमाल बढऩे का संकेत दिया गया। आरबीआई के सर्वे में क्षमता इस्तेमाल तीसरी तिमाही में बढ़कर सात वर्ष की ऊंचाई पर पहुंचने की बात कही गई। वहीं खपत के संदर्भ में, एफएमसीजी कंपनियों और कुछ व्हाइट गुड्स निर्माताओं की बिक्री वित्त वर्ष 2019 की चौथी तिमाही में धीमी गति से बढ़ी। एफएमसीजी कंपनियों की बिक्री मार्च तिमाही में सिर्फ 7 प्रतिशत तक बढ़ी। ए/सी कंपनियों की बिक्री में 8 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया, लेकिन दिग्गज कंपनी वोल्टास के लिए यह वृद्घि 2 प्रतिशत से कम रही, जो कई तिमाहियों में सबसे कम है।
उत्पादन के लिहाज से बात की जाए तो पता चलता है कि कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स के लिए आईआईपी वर्ष के लिए स्थिर बना रहा, जबकि कंज्यूमर ड्यूरेबल्स में 5 प्रतिशत तक की कमी आई। लोगों ने ईंधन और बिजली पर काफी कम खर्च किया। डीजल खपत में मार्च में महज 1.4 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया, जबकि पेट्रोल खपत 7.2 प्रतिशत के साथ पांच तिमाही के निचले स्तर पर बनी रही। मार्च में बिजली की मांग भी 4.4 प्रतिशत पर सालाना औसत से नीचे रही।
उत्पादन के लिए, प्रमुख उत्पादों का आईआईपी लगातार चार महीनों से 1-2 प्रतिशत के दायरे में बना हुआ है, जो बेहद कम है। यह वित्त वर्ष की पहली छमाही में दर्ज की गई 5 प्रतिशत की वृद्घि से भी कम है। कोटक सिक्योरिटीज द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार घरेलू वित्तीय बचत भी वित्त वर्ष 2011 के जीडीपी के लगभग 10 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2018 में 6.6 प्रतिशत रह गई। इन संकेतकों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2019 के आंकड़े ज्यादा आशाजनक नहीं हो सकते।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वाहन बिक्री में कमी का भी पेट्रोल और डीजल की खपत पर निश्चित तौर पर प्रभाव पड़ा है। भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन का कहना है कि खपत पैटर्न में बदलाव आय की स्थिरता का परिणाम है। उन्होंने कहा, 'मौजूदा आर्थिक मंदी ग्रामीण और अनौपचारिक क्षेत्र में नकदी की किल्लत से जुड़ी हुई है। इससे आय में स्थिरता का पता चलता है जिसके परिणामस्वरूप लाइफस्टाइल खपत में कमी देखने को मिली है।' सेन ने कहा, 'लोगों ने खपत में कमी की है क्योंकि उन्हें यह अहसास हो गया है कि आय में कमी आई है।'
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