वाम दलों की ग्रामीण पश्चिम बंगाल पर नजर | निवेदिता मुखर्जी / May 06, 2019 | | | | |
कोलकाता की अलीमुद्दीन गली में माक्र्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) के मुख्यालय में शाम को हरी मिर्च के साथ मुरी खाने की परंपरा है। हाल में मसालेदार समोसा भी बांटना शुरू किया गया है। एक रस्म के रूप में गर्म मुरी को समाचार-पत्र पर फैलाया जाता है और फिर बाहर से आने वाले लोगों समेत कार्यालय में मौजूद सभी लोगों को छोटे पैकेटों में बड़ी सफाई से वितरित किया जाता है। इसके बाद चाय के छोटे कप दिए जाते हैं। वाम दलों के गढ़ में मुरी की रस्म अब भी दिखाई देती है, विशेष रूप से चुनावों के दौरान। ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल में माकपा की बदहाली के बावजूद यह रस्म बरकरार है। पश्चिम बंगाल में पार्टी का लगातार तीन दशकों से अधिक समय तक शासन रहा। मुस्लिम बहुलता वाले इलाके में स्थित कार्यालय में दीवारी की शोभा बढ़ातीं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु की तस्वीरें पार्टी के अतीत की याद दिलाती हैं। राज्य में 42 लोक सभा सीटों पर चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच मुकाबला है। ऐसा लगता है कि कोई भी माकपा की संभावनाओं के बारे में बात नहीं कर रहा है। माकपा को 2014 के आम चुनाव में 2 सीटें मिली थीं, जबकि तृणमूल कांग्रेस को 34, कांग्रेस को 4 और भाजपा को 2 सीटें मिली थीं।
ऐसी क्या वजह हैं, जिनकी वजह से वाम दल मतदाताओं के दिलोदिमाग से बाहर हो गए हैं? इस बारे में पश्चिम बंगाल की रायगंज से वर्तमान सांसद मोहम्मद सलीम ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'वर्ष 2014 में हमारी मत हिस्सेदारी तृणमूल कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे अधिक थी। कांग्रेस और भाजपा की मत हिस्सेदारी काफी कम थी।' वर्ष 2014 में तृणमूल कांग्रेस को 39.05 फीसदी, माकपा को 29.7 फीसदी, भाजपा को 17.02 फीसदी और कांग्रेस को 9.58 फीसदी मत मिले थे। सलीम को उम्मीद है कि इस बार माकपा की मत हिस्सेदारी और सीटों की संख्या में इजाफा होगा। लेकिन इस बात से अन्य पार्टियां सहमत नहीं हैं। तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस से जुड़े लोगों का मानना है कि माकपा की सीटों की संख्या में बढ़ोतरी के कोई आसार नहीं हैं। कुछ ने कहा है कि भाजपा की बढ़त कांग्रेस और माकपा के वोटों में कटौती से ही आएगी।
सलीम ने वाम धड़े के सुस्त प्रचार के बारे में कहा कि पार्टी कोलकाता और आसपास के क्षेत्रों से बाहर के इलाकों पर ध्यान दे रही है। उन्होंने कहा कि उत्तरी बंगाल ऐसा क्षेत्र है, जहां वाम दल तगड़ा प्रचार कर रहे हैं। भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की रैलियों और प्रचार से तुलना करने पर उन्होंने कहा, 'यह सब पैसे की ताकत है।' अन्य पार्टियां अपने स्टार प्रचारकों और राष्ट्रीय नेताओं को पश्चिम बंगाल ला रही हैं। लेकिन वाम कन्हैया कुमार पर दांव लगा रहा है, जो बिहार के बेगूसराय से चुनाव लड़ रहे हैं और उन्होंने स्थानीय लोगों का ध्यान खींचा है। भाकपा का यह उम्मीदवार (कन्हैया कुमार) बंगाल के अंदरूनी इलाकों में प्रचार कर रहा है। वहीं सीताराम येचुरी और वृदा करात जैसे नेता रैलियां और जनसभाएं कर रहे हैं।
लेकिन उनका प्रचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के सामने कहीं नहीं ठहरता है। वे पश्चिम बंगाल में कमजोर उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार कर रहे हैं। यहां तक कि कांग्रेस भी 2019 के चुनावों के अंतिम चरणों में पार्टी को मजबूती देने के लिए पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी पर दांव लगा रही है। सलीम पश्चिम बंगाल में वाम के हाशिये पर आने की चर्चाओं को नकारते हैं। उनका तर्क है कि जो कुछ सामने दिख रहा है, उसके बावजूद पार्टी की राज्य में गहरी जड़ें जमी हुई हैं। वह कहते हैं, 'वाम जनसमर्थन' का कोई मुकाबला नहीं है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस हिंदू-मुस्लिम को बांटकर इसमें सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं।
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