आलू पर बवाल | संपादकीय / May 01, 2019 | | | | |
पेप्सिको का गुजरात में वह दांव उलटा पड़ गया जिसमें कंपनी ने गुजरात के चार किसानों पर अदालती कार्रवाई की शुरुआत की थी क्योंकि उन्होंने कथित रूप से आलू की उस किस्म की खेती की थी जिसका पंजीयन कंपनी के पास है। पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स के पास एफसी-5 किस्म के आलू के उत्पादन अधिकार हैं। कंपनी इस आलू का इस्तेमाल 'लेज' ब्रांड के चिप्स बनाने में करती है। कंपनी ने आरोप लगाया कि ये किसान गैर कानूनी तरीके से इस आलू का उत्पादन कर रहे थे। उन्होंने पंजाब के लाइसेंसशुदा किसानों ने इस किस्म के बीज हासिल किए थे। हालांकि अहमदाबाद की वाािण्ज्यिक अदालत ने अंतरिम आदेश पारित कर किसानों को आलू की यह किस्म उगाने से रोक दिया है लेकिन इस मामले को लेकर जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उन्होंने पेप्सिको को विचलित कर दिया है। अब कंपनी ने मामला अदालत से बाहर सुलटाने की पेशकश की है। आश्चर्य नहीं कि किसान संगठनों, किसान अधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों ने तत्काल किसानों का समर्थन किया। उनका कहना है कि कंपनी ने उन किसानों को अनावश्यक निशाना बनाया जो दूसरे किसानों से बीज लेकर खेती करने की अपनी सदियों पुरानी परंपरा का पालन भर कर रहे थे।
पेप्सिको ने सरकारी प्रयोगशालााओं के हवाले से कहा कि आलू के इन बीजों में एफसी-5 किस्म का डीएनए मौजूदा था लेकिन केवल इतने भर से किसानों को पेप्सिको के अधिकार का उल्लंघन करने वाला नहीं माना जा सकता। किसानों से सहानुभूति रखने वालों में से कई ने पेप्सिको को चेतावनी दी कि अगर कंपनी ने अपने कदम वापस नहीं लिए तो कंपनी के उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो इस बहुराष्ट्रीय कंपनी को इसकी कीमत चुकानी होगी। पेप्सिको मुख्यालय के अधिकारी और उसके एशिया प्रशांत कार्यालय ने कंपनी के कारोबार पर इसके संभावित असर को गंभीरता से लेते हुए अपनी भारतीय अनुषंगी कंपनी को सलाह दी है कि वह इस मसले को जल्द से जल्द सुलझाए। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि पेप्सिको इंडिया ने अपना रुख नरम किया है और अगर किसान बिना लाइसेंस इस किस्म का आलू उगाने से परहेज करने या लाइसेंस लेने को तैयार हों तो वह मसले को हल करना चाहती है।
हालांकि किसान जन समर्थन से उत्साहित हैं और उन्होंने कंपनी की शर्त ठुकरा दी है। बल्कि उन्होंने पेप्सिको पर आरोप लगाया है कि वह प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेराइटीज ऐंड फार्मर्स राइट्स एक्ट का उल्लंघन कर रही है। इस कानून का लक्ष्य है पौधों की बेहतर प्रजातियों के विकास और उत्पादन को प्रोत्साहन देना। कई अन्य देशों के पौध संरक्षण कानूनों के इतर भारत में इस उद्देश्य के लिए बना कानून कई मायनों में विशिष्ट है, खासतौर पर किसानों के पारंपरिक अधिकारों और उनके द्वारा सदियों से अपनाई जा रही परंपराओं के संरक्षण के क्षेत्र में। महत्त्वपूर्ण है कि ऐसा करते हुए बौद्घिक संपदा से संबंधित वैश्विक समझौते का उल्लंघन भी नहीं किया गया है। प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेराइटीज ऐंड फार्मर्स राइट्स एक्ट की धारा 39 किसानों को इजाजत देती है कि वे बीज समेत अपनी उपज को बचाएं, इस्तेमल करें, बोएं, अदला-बदली करें, साझा करें या बेचें। इकलौती बात यह है कि खुद उगाए गए बीजों को पंजीकृत ब्रांड नाम के तहत नहीं बेचा जा सकता। धारा 42 भी उतनी ही अहम है जिसमें किसानों को उस स्थिति से बचाव मुहैया कराया गया है जो किसी किस्म के पंजीयन के बारे में जानकारी नहीं होने से पैदा होती है। ऐसे में पेप्सिको के लिए बेहतर यही होगा कि वह बिना शर्त मामला वापस ले। अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसका असर कंपनी के कारोबार पर तो पड़ेगा ही, किसानों के साथ साझेदारी के इच्छुक अन्य कारोबारी घरानों को भी नुकसान होगा।
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