जब-जब भाव गिरें सोने की खरीद करें | संजय कुमार सिंह / April 29, 2019 | | | | |
सोना तो हमेशा से ही भारतीय निवेशकों की पहली पसंद रहा है, लेकिन पिछले पांच साल के दौरान इस कीमती धातु ने उन्हें निराश ही किया है। इन पांच साल में सोने पर बमुश्किल 2 फीसदी सालाना का प्रतिफल मिल पाया है। मगर यह तस्वीर जल्द ही बदल सकती है क्योंकि वैश्विक वृद्घि में मंदी के आसार नजर आ रहे हैं। जिन निवेशकों के निवेश पोर्टफोलियो में अभी सोना नहीं है, वे उसकी कीमतों पर नजर रखें और जैसे ही भाव गिरें, झट से सोना खरीद लें। इस बात की पूरी संभावना नजर आ रही है कि इस साल की दूसरी छमाही या आखिरी तिमाही से सोने के भाव में उछाल आनी शुरू हो सकती है।
वैश्विक वृद्धि में मंदी से सोने में आएगी तेजी
आने वाले महीनों में कुछेक कारणों से इस पीली धातु के भाव में तेजी आ सकती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) जैसे कई संस्थानों ने वैश्विक वृद्धि के अपने अनुमान में कमी (3.3 फीसदी) की है। अमेरिका में प्रतिफल का वक्र पहले ही पलट चुका है यानी प्रतिफल घट रहा है। आम तौर पर ऐसी स्थिति मंदी के आने का इशारा ही करती है। अमेरिका और यूरोप के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी के मामले में सुस्त पड़ते दिख रहे हैं। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर चर्चा ही बंद कर दी है।
क्वांटम म्युचुअल फंड में वरिष्ठ फंड प्रबंधक - वैकल्पिक निवेश चिराग मेहता कहते हैं, 'वैश्विक वृद्धि में अच्छी खासी गिरावट आने के आसार हैं। इसलिए केंद्रीय बैंक ऐसी नीतियां अपना रहे हैं, जिनसे वृद्घि तेज करने में मदद मिले। यही वजह है कि वे अपनी अर्थव्यवस्था के प्रति सख्ती बरतने से बच रहे हैं।' ऐसे वक्त में आम तौर पर सोना अच्छा प्रदर्शन करता है क्योंकि उसे निवेश का सुरक्षित साधन माना जाता है। केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति के मामले में नरमी बरत रहे हैं, इसलिए शेयर बाजार गुलजार हैं क्योंकि ब्याज दरों में बढ़ोतरी के मुद्दे को टाल दिया गया है। इस समय निवेश सोने में नहीं बल्कि जोखिम वाली संपत्तियों में आ रहा है। मेहता ने कहा, 'लेकिन सवाल यह है कि आमदनी में वृद्धि के बिना अर्थव्यवस्था की नकदी कब तक बाजारों को सहारा दे सकती है? किसी न किसी वक्त तो शेयरों में गिरावट शुरू हो ही जाएगी क्योंकि आमदनी में वृद्धि सुस्त पड़ रही है। ऐसा हुआ तो सोने में तेजी आएगी।'
भारतीय निवेशक के नजरिये से पिछले करीब तीन महीनों में रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ है। पहले 73 रुपये पर घूम रहा डॉलर अब लुढ़ककर 69 रुपये के आसपास ही रह गया है। भारतीय रिजर्व बैंक पिछले कुछ समय में डॉलर की अदलाबली करर रहा है, जिससे रुपये को खासी ताकत मिली है। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल धवन की राय है, 'इस समय रुपये की कीमत थोड़ी ज्यादा लग रही है। जब इसमें गिरावट आएगी और यह अपनी असली कीमत के आसपास पहुंचेगा तो सोने में निवेश करने वाले भारतीयों को फायदा होगा।' कच्चा तेल भी इस समय 70 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बना हुआ है और ईरान से आयात पर रियायत खत्म करने के अमेरिका के हालिया फैसले से इसके दाम और भी चढऩे का खटका है। कच्चे तेल का ज्यादा भाव आम तौर पर रुपये के लिए बुरी खबर होती है और ऐसे में रुपया लुढ़कता है। मगर रुपये में सोने की कीमतों के लिहाज से यह अच्छी बात होगी।
आखिरी बात यह है कि सोने ने लंबे समय से काफी कमजोर प्रतिफल दिया है। इसीलिए इस वक्त सोने में निवेश करने में लोगों की दिलचस्पी कम ही दिख रही है। धवन समझाते हैं, 'किसी संपत्ति में निवेश करने का सही समय वह होता है, जब लगातार कमजोर प्रतिफल की वजह से उसमें निवेश करने में लोगों की दिलचस्पी काफी कम हो।'
मजबूत डॉलर बड़ी बाधा
अमेरिकी डॉलर की मौजूदा मजबूती रुकावट की तरह काम कर रही है, जिसके कारण सोना चढ़ नहीं पा रहा है। इस समय यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) अमेरिकी फेड से भी ज्यादा नरम मौद्रिक नीति अपना रहा है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व पहले ही मौद्रिक सख्ती कर चुका है और उसने कई दफा ब्याज दरें बढ़ाई हैं। लेकिन यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में केवल कमी की है। हालांकि पहले यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की बात कही थी, लेकिन इसने हाल में कहा कि वह यूरो जोन के कमजोर आर्थिक माहौल और कुछ यूरोपीय देशों में राजनीतिक अनिश्चितता को मद्देनजर रखते हुए ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं करेगा। यूरो की कमजोरी से डॉलर मजबूत हो रहा है और ऐसा होना सोने के लिए नकारात्मक है। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार समझौते की संभावना भी एक अन्य बाधा है। अगर पिछले साल लगाए गए शुल्कों को खत्म किया जाता है तो यह इक्विटी बाजारों के लिए सकारात्मक होगा और सोने के लिए नकारात्मक साबित होगा। भारतीय निवेशक पीली धातु में और निवेश इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने पहले ही काफी खरीदारी कर रखी है। इसके अलावा सोने का प्रदर्शन पिछले पांच वर्षों में अच्छा नहीं रहा है। इसके नतीजतन वे और सोना खरीदने के इच्छुक नहीं हैं।
कीमतें गिरने पर करें खरीदारी
वैश्विक स्तर पर वृहद आर्थिक माहौल निश्चित नहीं है, जिससे भारत में पूंजी की आवक और इसलिए इक्विटी बाजारों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। ऐसी परिस्थितियों में डायवर्सिफायर का काम करने के लिए आपके पोर्टफोलियो में सोना मौजूद होना चाहिए। सोने की खरीदारी के लिए समय-समय पर होने वाली गिरावटों का इस्तेमाल करें। मेहता ने कहा, 'ज्यादातर पोर्टफोलियो के लिए 10-15 फीसदी पैसा सोने में लगाना उचित है। इतने सोने से प्रतिफल पर बहुत अधिक नकारात्मक असर नहीं पड़ता है। असल में इतना पैसा सोने में लगाने से पोर्टफोलियो का प्रतिफल बढ़ सकता है और जोखिम कम होता है।'
आपको सोने में कितना निवेश करना चाहिए, इसे लेकर अन्य विशेषज्ञों की अलग राय हैं। धवन ने कहा, 'यह स्तर 0 से 10 फीसदी हो सकता है। यह इस चीज पर निर्भर करता है कि आप कितना जोखिम ले सकते हैं। अधिक जोखिम ले सकने वाले निवेशक सोने में निवेश नहीं करने का भी फैसला ले सकते हैं। इसके बजाय वे अंतरराष्ट्रीय इक्विटी फंडों में निवेश कर सकते हैं ताकि डॉलर के मुकाबले रुपये में दीर्घकालिक गिरावट का फायदा लिया जा सके। जोखिम न लेने वाले निवेशक सोने में 10 फीसदी तक निवेश कर सकते हैं, जबकि दोनों के बीच के निवेशक अपने पोर्टफोलियो में 5 फीसदी हिस्सा सोने का रख सकते हैं।' इसके बाद सवाल पैदा होता है कि सोने में निवेश के लिए किस तरीके का इस्तेमाल किया जाए। इसके लिए सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड आपकी पहली प्राथमिकता हो सकते हैं क्योंकि ये हर साल 2.50 फीसदी प्रतिफल मुहैया कराते हैं। हालांकि इन बॉन्डों को बेचकर नकदी में तब्दील करना आसान नहीं है। ये उन निवेशकों के लिए उपयुक्त हैं, जो कम से कम पांच साल के लिए निवेश करना चाहते हैं। जो निवेशक कम अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं, उनके लिए गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) उपयुक्त हो सकते हैं। इन्हें आसानी से बेचा जा सकता है। हालांकि इनमें कोई ब्याज नहीं मिलता है और ये हर साल करीब एक फीसदी खर्च शुल्क वसूलते हैं। इनमें निवेश के लिए निवेशक के पास डीमैट खाता होना जरूरी है।
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