मक्का और सोयाबीन का रुख कर रहे कपास किसान | दिलीप कुमार झा / मुंबई April 28, 2019 | | | | |
पिछले कुछ महीनों से अधिक आमदनी के कारण कपास किसान इस खरीफ सीजन में मक्का और सोयाबीन सहित अन्य प्रतिस्पर्धी फसलों की ओर पलायन करने की योजना बना रहे हैं। पिछले एक साल के दौरान कुछेक महीनों को छोड़कर औसत मॉडल कीमतें बेंचमार्क न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे रहने की वजह से कपास के दामों में काफी अस्थिरता रही है। कच्ची कपास (29.5-30.5 मिली मीटर) के निर्धारित 5,450 रुपये प्रति क्विंटल दाम के मुकाबले इस प्राकृतिक फाइबर का कारोबार एमएसपी से कम पर किया जा रहा था। हालांकि इसके विपरीत पिछले एक साल के दौरान मक्का और सोयाबीन से होने वाली औसत आमदनी कपास की तुलना में अधिक दर्ज की गई।
अलबत्ता इस मॉनसून सीजन में काफी कुछ बारिश के वितरण पर निर्भर करेगा जबकि कुछ हफ्ते पहले भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने लगभग सामान्य मॉनसून का पूर्वानुमान जताया है। हालांकि किसानों ने मौसम विभाग का पूर्वानुमान जारी होने के बाद खरीफ बुआई की तैयारी शुरू कर दी है। आमतौर पर किसान उसी फसल का रकबा बढ़ते हैं जिससे पिछले साल अधिक आमदनी हुई हो। सोयाबीन और इसके उत्पादों की इंदौर स्थित अग्रणी व्यापारिक संस्था सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन (सोपा) के कार्यकारी निदेशक डीएन पाठक ने कहा कि पिछले साल बेहतर आमदनी के कारण कपास से सोयाबीन और मक्का के बुआई क्षेत्र की ओर पलायन हो सकता है। हालांकि सोयाबीन सबसे अधिक लाभकारी हो सकता है लेकिन पिछले कुछ महीनों में मक्का की कीमतों में तेज वृद्धि किसानों को इस खरीफ सीजन के दौरान कपास का अतिरिक्त क्षेत्र इसमें लाने के लिए प्रेरित कर सकती है। सोपा ने अपनी फरवरी 2019 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि सीजन 2018-19 में भारत का कुल सोयाबीन उत्पादन 1.148 करोड़ टन रहेगा जबकि पिछले वर्ष यह 96.5 लाख टन था। अधिक उत्पादन के बावजूद साल भर सोयाबीन के दाम ऊंचे रहे। पिछले साल वनस्पति तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने के सरकार के फैसले के कारण ऐसा हुआ था। इसमें इस कैलेंडर वर्ष की शुरुआत में मामूली कटौती की गई थी। भारत वनस्पति तेलों की अपनी मांग का करीब 60 प्रतिशत आयात के जरिये पूरा करता है। खासतौर पर इंडोनेशिया, मलेशिया और अर्जेंटीना से।
इस बीच बेमौसम बारिश और आंधी के कारण फसल को हुए नुकसान से पिछले कुछ महीनों में मक्का के दामों में तेजी आई है। दिसंबर 2018 तक मक्का के औसत दाम 1,700 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से नीचे चल रहे थे और अप्रैल 2019 में दाम अचानक बढ़कर 2,135 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर चले गए। मौजूदा औसत दाम एमएसपी से 26 प्रतिशत कम बैठते हैं। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि छिटपुट रूप से कपास की तुलना में मक्का और सोयाबीन जैसी बेहतर आमदनी वाली फसलों के पक्ष में रुख नजर आ सकता है लेकिन बारिश और उसका वितरण इस सीजन में खरीफ की बुआई का रुझान निर्धारित करेगा। कपास की खेती वाले महाराष्ट्र और गुजरात जैसे प्रमुख राज्यों में पिछले साल बारिश के असमान वितरण के कारण कपास किसानों को भारी संकट का सामना करना पड़ा था। हैरानी की बात यह है कि पिछले महीनों में कम कीमत की तुलना में मार्च और अप्रैल 2019 में कपास की कीमतें भी उछलकर एमएसपी से 15-20 प्रतिशत (कपास की किस्म के आधार पर) अधिक चल रही हैं। शहर के कपास व्यापारी और निर्यातक अरुण सक्सरिया ने कहा कि किसानों और स्टॉकिस्टों पास कपास का करीब 70 लाख गांठों का स्टॉक बचा होने की वजह से किसान इस साल ज्यादा दाम प्राप्त कर सकते हैं।
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