खुशी के पैमाने पर काफी पीछे भारतीय | पार्थसारथि शोम / April 25, 2019 | | | | |
वैश्विक स्तर पर तुलना की जाए तो भारतीय समाज अत्यंत नाखुश है और उसकी नाखुशी कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। इस संबंध में विस्तार से जानकारी प्रदान कर रहे हैं पार्थसारथि शोम
संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2019 के लिए खुशहाली की अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी कर दी है। इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के मुताबिक भारत में रहने वाले लोग दुनिया के सबसे अधिक अप्रसन्न लोगों में शुमार किए गए हैं। इतना ही नहीं हाल के कुछ वर्षों में भारत के लोगों की नाखुशी में लगातार इजाफा देखने को मिला है। इससे पहले हम देख चुके हैं कि गरीबी और आय के वितरण के मामले में हमारा रिकॉर्ड कितना खराब रहा है। अतीत में इन विषयों पर मैंने इस समाचार पत्र में कई आलेख लिखे हैं। दुख की बात यह है कि हम भारतीय सामाजिक और पारिवारिक समर्थन जैसी जिन बातों पर बहुत अधिक भरोसा करते आए हैं, उन मोर्चों पर भी खुशहाली के सूचकांक पर हमारा प्रदर्शन कमजोर ही साबित हुआ है। रिपोर्ट का आकार बहुत बड़ा है और इसका बहुत बारीकी से अध्ययन करना आवश्यक है।
रिपोर्ट में 156 देशों पर किया गया अध्ययन शामिल है। इस अध्ययन के नतीजे भी बहुत व्यापक और गहराई लिए हुए हैं। इनमें 2005 के बाद के तमाम आंकड़ों को शामिल किया गया है। यहां हम भारत को केंद्र में रखते हुए इस रिपोर्ट के नतीजों के बारे में बातचीत करेंगे। पाठकों को भी प्रसन्नता या खुशहाली की अवधारणा को लेकर वैसा ही रोष हो सकता है जैसा कि मुझे हुआ। परंतु मुझे कुछ ऐसी साहित्यिक सामग्री मिल गई जिसकी मदद से मैं उस सामग्री तक पहुंच सका, जिसने मेरा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। मुझे उस चर्चा के बारे में कभी और बात करनी चाहिए और यहां खुद को कुछ ऐसे संकेतकों तक सीमित रखना चाहिए जो गुणात्मक हैं।
व्यक्तिगत स्तर पर लोगों के नमूनों की बात करें तो उन्हें हर वर्ष, हर देश में दर्ज किया गया और लोगों से कहा गया कि वे खुशहाली का आकलन 1 से 10 के मानक पर करें। उसके बाद विभिन्न देशों के प्रदर्शन में जो अंतर आया उसे छह चरों के आधार पर सांख्यिकी के माध्यम से समझने का प्रयास किया गया। ये छह चर हैं सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति, उदारता, प्रतिव्यक्ति जीडीपी और जीवन संभाव्यता। शुरुआती चार चरों का आकलन कुछ सवालों के जवाब हां अथवा न में तलाशते हुए किया गया। ये सवाल कुछ ऐसे थे मसलन: क्या आपके ऐसे रिश्तेदार हैं जिन्हें जरूरत पडऩे पर आप याद कर सकें, क्या आप इस बात से संतुष्ट हैं कि आपको अपनी मर्जी का काम करने का अधिकार मिला हुआ है, क्या सरकार में व्यापक भ्रष्टाचार है और क्या पिछले महीने आपने कुछ धनराशि दान में दी? प्रति व्यक्ति जीडीपी, क्रय शक्ति समता के डॉलर के संदर्भ में है। जीवन संभाव्यता को एक स्वस्थ जीवन की तस्वीर के प्रतिबिंब के बरअक्स रखकर देखा जा सकता है।
जाहिर सी बात है कि केवल इन छह चरों के आधार पर प्रसन्नता या खुशहाली का पूरा आकलन नहीं किया जा सकता है और इसका संबंध जीवन के अन्य पहलुओं से भी है जो खुशहाली को प्रभावित करते हैं। बहरहाल मैं आकलन प्रक्रिया की बारीकियों में ज्यादा नहीं जाऊंगा। एक सूची में हमने उन चयनित देशों और घटकों को शामिल किया जो प्रसन्नता के क्रम में भारत के लिए मायने रखते थे। ध्यान देने वाली बात यह है कि सन 2019 की रिपोर्ट में जो जानकारी दी गई है वह सन 2016-18 के औसत आंकड़ों पर आधारित है। सबसे पहले भारत का परीक्षण करें तो कुल 156 देशों की सूची में भारत का स्थान 140वां है। यानी यह अंतिम कुछ देशों में स्थान रखता है। साफ कहें तो खुशी या प्रसन्नता के पैमाने पर भारत अंतिम 10 फीसदी देशों में स्थान रखता है।
अगर हम इसके घटकों की बात करें तो सामाजिक सहयोग के मोर्चे पर हालत कुछ ज्यादा ही खराब है और कहा जा सकता है कि रिपोर्ट में देश की खस्ता हालत के लिए काफी हद तक यह भी जिम्मेदार है। भ्रष्टाचार के मामले में भारत की रैंकिंग 50 फीसदी पर है और उदारता के मामले में वह निचले 58 फीसदी देशों में शामिल है। स्वतंत्रता या आजादी के मामले में यह शीर्ष 27 फीसदी देशों में स्थान रखता है जिसे एक अच्छा प्रदर्शन माना जा सकता है। प्रति व्यक्ति जीडीपी और दीर्घायु के मामले में हमारा देश निचले 25 फीसदी देशों में आता है। दूसरी बात, चीन तथा दक्षिण एशिया के अन्य देशों दक्षिण अफ्रीका और यहां तक कि लैटिन अमेरिका तक की तुलना में भारत में नाखुशी का स्तर बेहद खराब और चिंताजनक है।
नाखुशी के इस पैमाने पर जो देश भारत के आसपास हैं या जो भारत से थोड़ा सा अधिक प्रसन्न या खुश रहने वाले हैं, उनके नाम हैं- जांबिया और टोगो। लाइबेरिया और कोमोरोस थोड़ा और अधिक प्रसन्न रहने वाले देश हैं। अगर हम उस सूची पर नजर डालें जिसमें विभिन्न देशों ने रैंकिंग को लेकर स्वयं अपनी स्थिति की घोषणा की है और अगर उसे संख्यात्मक रूप से प्राप्त सूचकांक पर आंका जाए तो सन 2019 की रिपोर्ट में एक बार फिर भारत दक्षिण एशिया के देशों में सबसे निचले पायदान पर आता है।
इस अध्ययन के लिए भी 2016-18 के औसत आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। रिपोर्ट में 2015-19 की अवधि में खुशहाली सूचकांक में आए अंतर को भी दर्शाया गया है। दक्षिण एशिया में जिन देशों का प्रदर्शन इस अवधि में सबसे अधिक खराब हुआ उनमें भारत का स्थान सबसे ऊपर है। आगे और अध्ययन करने से यह भी पता चला कि हाल के वर्षों में भारतीयों की खुशहाली में निरंतर गिरावट देखने को मिली है। आने वाले दिनों में देश की आबादी का एक बड़ा तबका मतदान करके अपना प्रतिनिधि चुनेगा। देखने वाली बात यह होगी कि क्या उनके चुने हुए प्रतिनिधि उनकी नाखुशी को दूर कर पाएंगे?
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