► बैंकिंग नियमन अधिनियम की धारा 35ए संवैधानिक रूप से वैध, मनमानी नहीं ► आरबीआई केंद्र की अनुमति के बगैर बैंकों को दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने का सामान्य निर्देश नहीं दे सकता ► 12 फरवरी 2018 के परिपत्र के आधार पर दायर सभी दिवालिया मामले इसकी जद में ► आरबीआई सरकार से परामर्श करने के बाद ही बैंकों के बोर्ड को दरकिनार कर सकता है ► अदालत ने कहा, आरबीआई को इसे जारी करने से पहले सरकार से अनुमति लेनी चाहिए थी
उच्चतम न्यायालय ने भारतीय रिजर्व बैंक के 12 फरवरी, 2018 के परिपत्र को निरस्त कर दिया और बैंकिंग नियामक से कहा कि उसने इसे जारी करने में अपने कानूनी अधिकार से बाहर जाकर काम किया है। अदालत के इस फैसले से बिजली, चीनी, जहाजरानी और कपड़ा कंपनियों को बड़ी राहत मिली है। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और विनीत शरण के पीठ ने कहा कि बैंकिंग नियामक ने ने परिपत्र जारी करते समय बैंकों की स्थितियों और आपत्तियों को ध्यान में नहीं रखा जिससे इन वित्तीय संस्थानों का कारोबार प्रभावित हुआ है। ऐसे में इस परिपत्र को रद्द करने की जरूरत है।
आरबीआई ने पिछले साल 12 फरवरी को एक परिपत्र जारी कर सभी बैंकों और दूसरे वित्तीय संस्थानों को 2,000 करोड़ रुपये या उससे ऊपर के कर्ज के मामलों में एक दिन की भी चूक की स्थिति में ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के तहत 180 दिन के अंदर ऋण समाधान प्रक्रिया शुरू करने को कहा था। केंद्रीय बैंक ने कहा था कि 180 दिन की समयसीमा के बाद बैंकों के पास ऐसी कंपनियों के खिलाफ दिवालिया आवेदन दाखिल करने के लिए अधिकतम 15 दिन का समय होगा। 180 दिन की समयसीमा 31 अगस्त 2018 को समाप्त हो गई थी।
एसोसिएशन ऑफ पावर प्रॉड्यूसर्स और इंडिपेंडेंट पावर प्रॉड्यूसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने इस परिपत्र को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने उन्हें कोई राहत देने से इनकार किया था जिसके बाद ये दोनों संस्थाएं अगस्त में उच्चतम न्यायालय पहुंची थीं। शीर्ष अदालत ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित आरबीआई के परिपत्र को चुनौती देने वाली याचिकाएं अपने पास मंगा ली थी और सभी पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने को कहा था।
31 मार्च तक केवल बिजली क्षेत्र पर बैंकों का कुल करीब दो लाख करोड़ रुपये बकाया था। इसमें से 34,044 करोड़ रुपये की गैर निष्पादित परिसंपत्तियां सरकारी नीति में बदलाव, सरकार के वादा पूरा करने में नाकाम रहने, नियामकीय देरी और वितरण कंपनियों के बकाये का भुगतान नहीं करने के कारण थीं। बिजली क्षेत्र पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। मंगलवार को अपने निर्णय में शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि बैंकों को कंपनियों के खिलाफ ऋण मोचन कार्रवाई शुरू करने का आदेश देने से पहले आरबीआई को केंद्र सरकार से अनुमति लेनी चाहिए थी।
दो न्यायाधीशों के पीठ ने कहा, 'ऐसे में दिवालिया संहिता के तहत ऋण समाधान योजना शुरू करने पर धारा 35एए के तहत तय की गई भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। स्पष्ट है कि सरकार की अनुमति के बिना ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जा सकता है।' हालांकि उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विधि कंपनी वेरस में पार्टनर दीपंकर बंद्योपाध्याय ने कहा, 'विभिन्न निर्देश जारी करने के आरबीआई के अधिकारों पर इस आदेश का कोई असर नहीं होगा। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल करने से पहले आरबीआई अधिक सतर्कता बरतेगा।
Business Standard Private Ltd. Copyright & Disclaimer feedback@business-standard.com
This site is best viewed with Internet Explorer 6.0 or higher; Firefox 2.0 or higher at a minimum screen resolution of 1024x768
* Stock quotes delayed by 10 minutes or more. All information provided is on
"as is" basis and for information purposes only. Kindly consult your
financial advisor or stock broker to verify the accuracy and recency of all
the information prior to taking any investment decision.
While due diligence is done and care taken prior to uploading the stock
price data, neither Business Standard Private Limited, www.business-standard.com nor any
independent service provider is/are liable for any information errors,
incompleteness, or delays, or for any actions taken in reliance on
information contained herein.