नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार और एमेजॉन प्राइम जैसे ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म चिंतित हैं क्योंकि अगर प्रस्तावित ई-कॉमर्स नीति का मसौदा स्वीकृत हो गया तो उनको उसका अनुपालन करना होगा। समस्या के केंद्र में वस्तुओं और सेवाओं की वह परिभाषा है जो ई-कॉमर्स नीति में शामिल होगी और जिसे उद्योग एवं आंतरिक उद्योग संवद्र्घन विभाग (डीपीआईआईटी) ने तैयार किया है। हाल में जारी नीति के मसौदे में कहा गया है कि डिजिटल सेवाओं और उत्पादों की इलेक्ट्रॉनिक खरीद-बिक्री, विपणन और वितरण आदि समेत ऐसे तमाम सौदे ई-कॉमर्स में शामिल होंगे। एक बार यह परिभाषा अगर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियमों से संबद्घ हो गई तो हालात की जटिलता एकदम स्पष्ट हो जाएगी। डीपीआईआईटी द्वारा ही जारी एफडीआई नीति के प्रेस नोट के मुताबिक एफडीआई वाले ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म इस मंच पर बिकने वाले सामान की इन्वेंटरी का मालिकाना हक या उस पर नियंत्रण नहीं रख सकते। शायद यही वजह है कि एमेजॉन जो अमेरिका तथा अन्य बड़े बाजारों में इन्वेंटरी आधारित ई-कॉमर्स कंपनी के रूप में काम करती है उसे भारत में अपना कारोबारी मॉडल तब्दील करना पड़ा। फ्लिपकार्ट, जिसका नियंत्रण विदेशी निवेशकों के पास है और अब जिसमें अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट की बहुलांश हिस्सेदारी है, उसे भी अपने इन्वेंटरी आधारित कारोबार को बदलकर एक मार्केट प्लेस में तब्दील होना पड़ा। सरकार को इस बात पर नजर रखनी होगी कि कैसे विशुद्घ ई-कॉमर्स कंपनियों ने निवेश और स्वामित्व को नए सिरे से हासिल करने के लिए पिछले दरवाजे वाले तौर तरीकों को अपनाया है और वे समय-समय पर जटिल एफडीआई नियमों को धता बताती रही हैं। अगर यह सबक लिया जाता है तो अधिकारी ओटीटी कारोबारियों पर वही जटिल दिशानिर्देश लागू करने से बचेंगे। ई-कॉमर्स कंपनियों के मामले में क्या हुआ, यह बात सभी जानते हैं। उन्होंने कागज पर अपने मूल कारोबारी मॉडल को तब्दील कर दिया और नियमों को धता बताने के तरीके तलाश कर लिए। उदाहरण के लिए इन कंपनियों ने अपने प्लेटफॉर्म पर अहम स्वामित्व और हिस्सेदारी वाले विक्रेता तैयार कर लिए। ये विक्रेता तब तक अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रहे जब तक कि सरकार ने इस पर ध्यान देकर नियमों में तब्दीली नहीं की। स्थापित कारोबारी मॉडल के साथ छेड़छाड़ अच्छी बात नहीं है और नीति निर्माताओं को ई-कॉमर्स क्षेत्र में की गई गलती को उच्च वृद्घि दर वाले ओटीटी क्षेत्र में नहीं दोहराना चाहिए। ऐसे वक्त में जबकि नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार और एमेजॉन प्राइम का नाम घर-घर में पहचाना जा रहा है सरकार को मालिकाना और नियंत्रण के मसलों के सूक्ष्म प्रबंधन से माहौल खराब नहीं करना चाहिए। ओटीटी, विभिन्न प्रोडक्शन हाउस से मिलने वाली सामग्री पर लाइसेंस लगा सकते हैं लेकिन मूल सामग्री उनकी बौद्घिक संपदा पर नियंत्रण प्रदान करती है। ओटीटी को ई-कॉमर्स फर्म के रूप में वर्गीकृत करना सही नहीं है। डीपीआईआईटी को इसे लेकर सावधानी बरतनी होगी। घरेलू लॉबी के संरक्षण की इच्छा से भी हर हाल में बचा जाना चाहिए। ई-कॉमर्स क्षेत्र में सरकार अक्सर विदेशी कंपनियों की छूट का विरोध करने वाले भारतीय कारोबारियों की लॉबी से संचालित हुई है। ओटीटी के जरिए प्रसारित होने वाली डिजिटल सामग्री के साथ भी यही रुख अपनाया गया तो यह प्रतिगामी कदम होगा। तमाम बड़ी ओटीटी कंपनियों ने भारतीय दर्शकों के लिए स्थानीय सामग्री तैयार करने पर भारी निवेश किया है। स्थानीय विषयवस्तु वाले कार्यक्रमों की शुरुआत 2011 में नेटफ्लिक्स ने की थी और अब यह सफलता का मूल मंत्र बन गया है। इसे रोकने की कोशिश से बहुराष्ट्रीय कंपनियों में गलत संकेत जाएगा और लाखों भारतीय पसंदीदा कार्यक्रम नहीं देख पाएंगे। नीति निर्माता इन्वेंटरी मॉडल को लेकर अपने रुख पर भी दोबारा विचार करेंगे तो बेहतर होगा।
