*चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीने के दौरान बकाया करोड़ रुपये में
सरकार की दो प्रमुख वित्तपोषण कंपनियों के विलय की आगामी योजना से बिजली क्षेत्र की उधारी पर प्रतिकूल असर होगा, जबकि सरकारी बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) पहले से ही खस्ताहाल हैं। बिजली उत्पादन कंपनियों (जेनको) ने वितरण कंपनियों के बढ़ते बकाये के भुगतान को लेकर हीलाहवाली पर चिंता जताई है क्योंकि अब वे पावर फाइनैंस कॉर्पोरेशन (पीएफसी) और ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (आरईसी) से उधार लेने में सक्षम नहीं हैं।
अधिकारियों ने यह भी चिंता जताई है कि वितरण कंपनियां अपना बही खाता सामान्य की तुलना में ज्यादा बकाये के साथ बंद करेंगी। ज्यादातर वितरण कंपनियां वित्त वर्ष के आखिर मं कर्ज लेती हैं, जिससे वे उत्पादन कंपनियों के बकाये के भुगतान का निपटान करती हैं।
केंद्र सरकार के पीआरएएपीटीआई पोर्टल से पता चलता है कि वितरण कंपनियों पर कुल बकाया 23,467 करोड़ रुपये है। इसमें से निजी इकाइयों का बकाया 15,000 करोड़ रुपये है। इसके बाद एनटीपीसी का बकाया 8,344 करोड़ रुपये और एनएचपीसी लिमिटेड का 1,387 करोड़ रुपये है। उदय पोर्टल के हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि कुछ राज्यों की स्थिति बहुत खराब है। चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीने के दौरान तमिलनाडु का घाटा सबसे ज्यादा 41,547 करोड़ रुपये और उसके बात तेलंगाना का 32,700 करोड़ रुपये और उत्तर प्रदेश का 31,711 करोड़ रुपये है। ये ऐसे राज्य हैं, जिनका वितरण कंपनियों पर सबसे ज्यादा बकाया है। एनटीपीसी ने इनमें से कुछ राज्यों को नोटिस भेजा है और कहा है कि भुगतान में देरी करने से उनकी बिजली आपूर्ति रोक दी जाएगी।
केंद्र सरकार ने वितरण कंपनियों की वित्तीय और परिचालन संबंधी स्थिति में सुधार के लिए उदय योजना पेश की थी। जब 2016 में यह योजना शुरू की गई और वितरण कंपनियां बकाये के बदले बॉन्ड जारी कर धन जुटा सकती थीं। यह योजना घाटे में चल रही वितरण कंपनियों की स्थिति में सुधार के लिए पेश की गई थी, जिसका मकसद उनके परिचालन में सुधार भी था। उदय के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि बैंक और वित्तीय संस्थानों से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वे घाटे का वित्तपोषण करें। साथ ही एफआई वितरण कंपनियों के कुल राजस्व का 25 प्रतिशत की कार्यशील पूंजी ऋण दे सकते हैं।
सरकार की एक बिजली उत्पादन कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'राज्य अब भुगतान करने में अक्षम हैं क्योंकि वे विलय प्रक्रिया चलने की वजह से पीएफसी और आरईसी से कर्ज नहीं ले सकते। उनकी वित्तीय हालत खराब है, जिसके कारण वे बाजार से भी धन नहींं पा सकते। इससे भुगतान की स्थिति और खराब होगी।' दिसंबर 2018 में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने आरईसी में केंद्र सरकार की मौजूदा 52.63 प्रतिशत हिस्सेदारी पीएफसी को बेचने को मंजूरी दी थी, जिसमें प्रबंधकीय नियंत्रण का हस्तांतरण भी शामिल है। पीएफसी और आरईसी इस समय विल प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में लगी हैं, ऐसे में सभी रेटिंग एजेंसियों ने उन्हें क्रेडिट रेटिंग निगरानी में डाल रखा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इससे उनकी उधारी लेने पर असर पड़ा है और इसका असर राज्यों को कर्ज देने पर भी पड़ेगा।
पीएफसी के अधिकारी ने इन आशंकाओं को खारिज किया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हम उदय के दिशानिर्देशों के मुताबिक वितरण कंपनियों को नियमित रूप से जारी कर रहे हैं। नियम के तहत कर्ज निशानिर्देशों की सीमा में पहले ही दिया जा रहा है।' इस सिलसिले में पीएफसी के सीएमडी को कई बार फोन कर बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उनका आधिकारिक बयान नहीं मिल सका। आरईसी के सीएमडी का पिछले सप्ताह स्थानांतरण कर दिया गया था।
हाल ही में इस अखबार में खबर दी गई थी कि दो वित्तपोषकों को वित्तीय समस्या का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि विलय के बाद आरईसी के कर्ज देने का अधिकार छिन जाएगा। इसके अलावा इस स्थिति में कुछ रेटिंग एजेंसियों द्वारा क्रेडिट वाच नेगेटिव करने से उसकी उधारी की योजना भी प्रभावित होगी। आरईसी और पीएफसी राज्यों को उधारी देने वाली दो प्रमुख संस्थाएं हैं।
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