नैशनल कंपनी लॉ अपील ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने बुधवार को आरकॉम की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें कंपनी ने एक खाते में रखी गई टैक्स रिफंड के 260 करोड़ रुपये जारी करने की मांग की थी। भारतीय स्टेट बैंक समेत कंपनी के करीब 40 लेनदारों ने आरकॉम की उस योजना का विरोध किया था जिसके तहत आरकॉम ने एरिक्सन को भुगतान में इसके इस्तेमाल की अनुमति मांगी थी। लेनदारों ने कहा था कि एरिक्सन को भुगतान अन्य स्रोत से किया जाना चाहिए। इस खाते के ट्रस्टी बैंक हैं। बुधवार को एसबीआई ने दोहराया कि टैक्स रिफंड पर पहला हक उसका है, जो खाते में आए हैं। एसबीआई की अगुआई वाले लेनदारों के संयुक्त फोरम ने मंगलवार को भी कहा था कि आरकॉम की संपत्ति बिक्री से 37,000 करोड़ रुपये की रिकवरी में नाकामी का ठीकरा उन पर नहीं फोड़ा जाना चाहिए। एसबीआई के वकील नीरज कृष्ण कौल ने कहा, यह इसलिए नाकाम हुआ क्योंकि जियो ने आरकॉम के पिछले कर्ज का भुगतान करने से मना कर दिया। अब आरकॉम को एरिक्सन के भुगतान के लिए प्रावधान करना है, चाहे सौदा हो या न हो।बुधवार को एनसीएलएटी में हुई सुनवाई में आरकॉम व एसबीआई के वकीलों के बीच दलीलों का दौर जारी रहा। आरकॉम ने आरोप लगाया कि एसबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर कहा था कि एनसीएलएटी से मामला हस्तांतरित होना चाहिए क्योंंकि अपील ट्रिब्यूनल इस मामले में सर्वोच्च्च न्यायालय के निर्देशों की व्याख्या ठीक से नहीं कर रहा है। आरकॉम के वकील कपिल सिब्बल ने कहा, बैंक हमें सूचित किए बिना सर्वोच्च न्यायालय चला गया। एसबीआई ने हालांकि कहा कि वह अपने अधिकार को सुरक्षित करने के लिए ही सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा था।
