बेंचमार्क पर बैंकों में मतभेद | निकहत हेटावकर / मुंबई March 11, 2019 | | | | |
दरों को बाहरी बेंचमार्क से जोडऩे के मामले में जहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से देश के सबसे बड़े ऋणदाता बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) का अनुसरण करने की उम्मीद की जा रही है वहीं निजी बैंक इस बदलाव का लेकर एहतियात बरत रहे हैं। इक्रा के समूह प्रमुख कार्तिक श्रीनिवासन ने कहा, 'बैंकों के लिए दरों को बाहरी बेंचमार्क से जोडऩा अच्छा है और बैंक एसबीआई का अनुसरण करें यह तर्कसंगत है। रिजर्व बैंक चाहता है कि बैंक अपनी परिसंपत्ति (ऋण) बाहरी बेंचमार्क से जोड़ें, बैंकों को अपने ब्याज मार्जिन को स्थिर करने के लिए अपनी देनदारी (जमा) को भी बेंचमार्क से जोडऩे की जरूरत है।'
भले ही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को बाहरी बेंचमार्क से जुडऩे के लिए नहीं कहा है लेकिन उसने प्रस्ताव दिया था कि बैंकों को सभी नए अस्थायी खुदरा ऋणों को 1 अप्रैल, 2019 से बाहरी बेंचमार्क से जोडऩे की जरूरत है। निजी क्षेत्र के ऋणदाता बैंक के एक वरिष्ठï कर्मचारी ने कहा, 'यह बदलाव एक दोधारी तलवार है। ऋण देने के लिए ब्याज दर में कमी करनी होगी, तो फिर जमा की लागत को भी कम करना होगा। बहुत से ग्राहक सावधि जमाओं पर मिलने वाले ब्याज दर भी निर्भर करते हैं। इसलिए ग्राहकों के लिए कुल लाभ में बहुत अधिक बदलाव नहीं आएगा।' साथ ही उन्होंने कहा कि बाहरी बेंचमार्क से दरों का जोडऩे का मतलब यह जरूरी नहीं है कि उधार लेने वालों को ऋण सस्ता ही पड़ेगा।
उम्मीद की जा रही थी कि केंद्रीय बैंक दिसंबर 2018 के अंत तक दिशानिर्देश जारी कर देगा लेकिन अभी तक उसने इसे जारी नहीं किया है। फरवरी में रिजर्व बैंक ने कहा था कि वह वित्तीय बेंचर्माक के लिए एक नियामकीय नियमावली लाने की योजना बना रहा है जिसका मकसद रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित वित्तीय उत्पादों और बाजारों से जुड़े बेंचमार्क प्रकियाओं के शासन में सुधार लाना है। रिजर्व बैंक लगातार यह शिकायत करता रहा है कि बैंक दर कटौती का फायदा ग्राहकों नहीं दे रहे हैं और उसे लगता है कि उधारी दरों को बाहरी बेंचमार्क से जोडऩे पर इस मामले में ज्यादा पारदर्शिता आएगी। लेकिन बैंकिंग उद्योग के संगठन इस पर सहमत नहीं है।
पिछले महीने भारतीय बैंकों के एक समूह-फिक्की के बैंकरों पर किए गए सर्वेक्षण में बाहरी बेंचमार्क का उपयोग करते हुए ऋणों और जमाओं की दर निश्चित करने पर चिंता जाहिर की गई थी। इसमें कहा गया था कि चूंकि ग्राहकों के मासिक किश्त में बदलाव हो सकता है जिससे ब्याज दरों उतार चढ़ाव आएगा। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि बेंचमार्कों में बहुत अधिक उतार चढ़ाव के मामले में बैंक स्प्रेड को उच्च रख सकते हैं। रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में कर्ज देने की दर लगातार जमा की वृद्घि दर से अधिक बनी हुई है। इसके चलते बैंक एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के लिए जमा पर ज्यादा ब्याज दरों की पेशकश कर रहे हैं। साथ ही इसकी वजह से बैंक अपने ब्याज मार्जिन को प्रभावित किए बिना उधार लेने वालों को दरों में कटौती का फायदा नहीं दे रहे हैं।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च को उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में जमा पर अधिक ब्याज दर देने की प्रतिस्पर्धा और अधिक बढ़ेगी। इसका कहना है, 'यदि ब्याज देने की वृद्घि दर जमा लेने की वृद्घि दर से अधिक बनी रहती है तो अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक की मोटी जमाओं पर विश्वास बढ़ेगा जिससे फंड की लागत बढ़ेगी साथ ही बैंकों के संपत्ति-देनदारी संरचना में उतार-चढ़ाव आएगा।' पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक बैंक कर्मचारी ने कहा कि बाजार भागीदारी बढ़ाने के स्रोत के तौर पर जमाओं का उपयोग करने वाले बैंकों के लिए यह मुश्किल लगता है कि वे जबतक नियम न बन जाए बाहरी बेंचमार्क को अपनाएंगे। उन्होंने कहा, 'सरकार चाहती है कि ऋण की दर कम रहे। चूंकि कुछ लोग मानते हैं कि बाहरी बेंचमार्क से जुडऩे पर इसमें फायदा हो सकता है, ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एसबीआई का अनुसरण करेंगे।'
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