विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में गहराती मंदी तेजी से भारत के आईटी और सेवा उद्योग की संभावनाओं को खराब कर रही है। भारतीय आईटी कंपनियों के ग्राहक कीमतों में इस बार 5 से लेकर 20 प्रतिशत तक की कटौती की मांग कर रहे हैं और कंपनियों पर भी यह दबाव है कि हाल के वर्षों में जो कुछ उत्पादकता हासिल की है, उसे वे ग्राहकों को भी पहुंचाएं। इससे संकेत मिलता है कि निश्चित दाम भी अब निश्चित नहीं रह गए हैं। अब जबकि ग्राहकों ने बेहद जरूरी खर्च ही शुरू कर दिए हैं, तो आईटी उद्योग भी नई भर्तियों को लेकर रुक गया है। उसने भर्ती के लिए चयन तो कर लिया है, पर अभी उन्हें रोके हुए है। ऐसे में इस साल संस्थानों से डिग्री लेकर निकलने वाले शिक्षित युवकों के लिए रोजगार की उम्मीदें धूमिल पड़ गई हैं। असल में आईटी क्षेत्र में रोजगार कटौती शुरू हो गई है। इस क्षेत्र की अगुआ कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने अपनी वैश्विक श्रमशक्ति में से 1 प्रतिशत की कटौती करने का फैसला किया है। यह संख्या करीब 1300 होती है। विप्रो ने भी कुछ इसी तरह के कदम उठाने के संकेत दिए हैं। ऐसी भी खबरें हैं कि चेन्नई में टीसीएस के 200 कर्मचारियों को जाना पड़ेगा, क्योंकि कंपनी के अनुसार वे प्रदर्शन के मानक पर खरे नहीं उतरे हैं। लगभग सभी कर्मचारियों ने अपने वेरिएबल यानी परिवर्तनीय वेतन में कटौती स्वीकार कर ली है और अब ज्यादा घंटे काम कर रहे हैं। बेंच की संख्या घटा कर भी लागत कम की जा रही है। इस तरह कर्मचारी उपयोगिता अनुपात में सुधार किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि लागत घटाने के लिए अपने कामकाज को आउटसोर्स करने की जरूरत ही खत्म हो गई है। तथ्य यह है कि छोटी कंपनियां आउटसोर्स की कतार में शामिल होना चाहती हैं। टेक्नोलॉजी सलाहकार गार्टनर ने संभावनाओं के दोहन के लिए भविष्य में विदेश के आउटसोर्सिंग कार्य के प्रति दिलचस्पी की खबर दी है। लेकिन जाहिर तौर पर भारतीय कंपनियों की बिक्री और विपणन टीमें इन्हें पूरा कर पाने की स्थिति में नहीं लग रही हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि प्रमुख कंपनियों ने अपने बिक्री स्टाफ में कुछ कटौती पहले ही कर दी है। लेकिन इससे भी बड़ी वजह शायद यह है कि मौजूदा ग्राहकों की संख्या कम होती जा रही है। इन ग्राहकों में ज्यादातर बड़ी फर्म शामिल हैं। भारतीय कंपनियों की कोशिश दाम में कटौती कर बड़ी फर्मों को रोके रखना है। इस पूरे दशक में भारतीय कंपनियों ने जबर्दस्त वृद्धि हासिल की है। इसकी वजह काफी हद तक बड़ी कंपनियां रहीं जिन्होंने सबसे पहले अपने काम आउटसोर्स किए। इस तरह लगता है कि वैश्विक विपणन रणनीति व्यवस्थित हो रही है। मंदी के मौजूदा माहौल में लगता है कि वे ही उद्योग सबसे पहले इस चक्रवात से बाहर निकलेंगे जो घरेलू मांग से संचालित हैं। भारत के आईटी उद्योग पर परिचालन मार्जिन में कटौती की आशंका मंडरा रही है। अगले तीन साल में यह मार्जिन आधे से ज्यादा गिर सकता है। ऐसे में कोई यह पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि नई मांग से कीमतों में कब सुधार शुरू होगा। सभी संकेत यही बता रहे हैं कि आईटी उद्योग की चमक न केवल कुछ घट सकती है बल्कि उसके मुनाफे के मार्जिन पर भी असर पड़ सकता है।
