तेलंगाना-आंध्र में साथ चुनाव से दोहरे मतदान का डर खत्म | बी दशरथ रेड्डी / March 11, 2019 | | | | |
भारतीय निर्वाचन आयोग ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के क्षेत्रों में एक साथ पहले चरण में 11 अप्रैल को चुनाव करने का फैसला किया है जिसकी वजह से दिलचस्प बदलाव देखने को मिलेगा और दोनों तेलुगू भाषी राज्यों में दोहरे मतदान की गुंजाइश खत्म होगी। पहली बार लोकसभा चुनावों के दौरान दोनों राज्यों में एक साथ चुनाव कराए जाएंगे। इसकी वजह से वे आरोप खत्म हो जाएंगे कि तेलुगू भाषी लोग जिनका नाम स्थानीय मतदाता सूची में है वे आंध्र प्रदेश में अपनी पसंदीदा पार्टी के उम्मीदवार को कथित तौर पर वोट दे देते हैं जिनके नाम दोनों जगहों की मतदादा पंजी में है।
दोनों राज्यों में मतदाताओं का पंजीकरण होने की वजह से चुनाव के बाद विभिन्न दल एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते हैं कि उन्होंने चुनाव में अपनी जीत के लिए इन लोगों का इस्तेमाल किया है। दिसंबर में तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव से पहले वहां की मतदाता सूची से करीब 20 लाख नाम हटाए गए और इसके लिए तर्क यह दिया गया कि मतदाता सूची में इन नामों में दोहराव हुआ है। इसी तरह आंध्र प्रदेश की मतदाता सूची में से भी इतने ही लोगों के नाम काटे गए। स्थानीय प्रशासन का दावा था कि मतदाता इन जगहों पर नहीं रहते जहां वे वोट डालते हैं। आंध्र प्रदेश में करीब 40 लाख लोग हैं जो हैदराबाद और तेलंगाना के दूसरे जिलों में जाकर बस गए हैं।
राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी गोपाल कृष्ण द्विवेदी ने रविवार को कहा कि 26 फरवरी, 2019 तक राज्य में कुल मतदाताओं की तादाद 3.71 करोड़ थी जिनमें 1.84 करोड़ पुरुष और 1.87 करोड़ महिला मतदाता थीं। 2014 के चुनावों के वक्त करीब 3.68 करोड़ मतदाताओं ने पंजीकरण कराया था और उसके बाद राज्य में केवल तीन लाख मतदाताओं में बढ़ोतरी हुई है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक तेलंगाना में 2.95 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं जिनमें 2014 के चुनावों के वक्त पंजीकृत कुल मतदाताओं की संख्या की तुलना में 13 लाख मतदाताओं की बढ़ोतरी हुई है। दिसंबर के विधानसभा चुनावों के दौरान यह संख्या 2.8 करोड़ के स्तर पर थी जिनमें 1.4 करोड़ पुरुष और 1.3 करोड़ महिलाएं हैं।
वास्तव में यह कोई भी नहीं जानता है कि दो जगहों पर मतदाता सूची में नाम बनाए रखने वालों की तादाद कितनी है जो पहले दोनों ही जगहों पर मताधिकार का इस्तेमाल कर चुके हैं। इस पर राजनीतिक विवाद बढ़ा क्योंकि अविभाजित आंध्र प्रदेश के तेलंगाना और रायलसीमा सहित तटीय आंध्र प्रदेश के क्षेत्र में हमेशा दो अलग चरणों में चुनाव होता था। राज्य के नेताओं ने भी इसका इस्तेमाल अपनी सहूलियत के लिए किया क्योंकि उन्होंने पहले अलग राज्य की मांग के दौरान इन दो क्षेत्रों के लोगों के लिए अलग-अलग सुर में बात की।
2009 के चुनावों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी ने तेलंगाना में मतदान पूरा होने के कुछ मिनट बाद ही नांदयाल चुनावी रैली में कहा था कि कि आंध्र प्रदेश के लोगों को हैदराबाद में प्रवेश करने के लिए एक पासपोर्ट लेने की जरूरत होगी अगर राज्य में विभाजन होता है। कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में तेलंगाना की अलग मांग को शामिल किया था इसके बावजूद रेड्डी खुद को एक ऐसे एकमात्र नेता के तौर पर स्थापित कर रहे थे जो राज्य को एकजुट रख सकता है।
लोकसभा चुनाव के दौरान एक साथ चुनाव कराए जाने की वजह से तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नेताओं में भिडंत की संभावनाएं थोड़ी कम हुई हैं जो हाल के वक्त तक एक-दूसरे लिए राजनीतिक विरोधी साबित हुए हैं और उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ सक्रियता से चुनावी अभियान को अंजाम दिया है। अब वे अपने गृह राज्य के चुनावी अभियान में व्यस्त होंगे। इसके अलावा सात चरणों वाले चुनाव के पहले चरण में ही तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को शामिल किए जाने की वजह से दोनों तेलुगू राज्यों के राजनीतिक दलों के पास अब काफी कम वक्त बचा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार के मुकाबले 2014 में हुए आम चुनावों तक अविभाजित आंध्र प्रदेश में मतदान आखिरी चरण में हुआ करता था।
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