नोटबंदी पर आरबीआई ने सरकार को किया था आगाह | |
अनूप रॉय / मुंबई 03 11, 2019 | | | | |
► सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त आरबीआई की बैठक के ब्योरे से हुआ खुलासा
► सरकार और आरबीआई के बीच नोटबंदी पर छह महीने से चल रही थी बात
► आरबीआई ने अल्पावधि में जीडीपी पर असर पडऩे को लेकर किया था आगाह
► आरबीआई ने कहा था कि नकदी से ज्यादा सोना और रियल्टी में लगा है काला धन
► घोषणा के 38 दिन बाद पटेल ने किए थे प्रस्ताव पर हस्ताक्षर
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने काले धन को खत्म करने के लिए बड़े मूल्य के नोटों को चलन से हटाने के निर्णय को लेकर सरकार को आगाह किया था। उसका मानना है कि काला धन नकदी के बजाय सोना और रियल एस्टेट जैसी संपत्तियों में लगा है। 8 नवंबर, 2018 को नई दिल्ली में शाम साढ़े पांच बजे आरबीआई के निदेशक मंडल की 561वीं बैठक हुई थी। इसी दिन रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से हटाने के सरकार के निर्णय की घोषणा की थी। उस समय चलन में रही कुल मुद्रा में प्रतिबंधित नोटों की हिस्सेदारी करीब 86 फीसदी यानी 15.41 लाख करोड़ रुपये थी। आरबीआई बैठक का ब्योरा सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने जुटाया है। उन्होंने इसे कॉमनवेल्थ ह्ïूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) की वेबसाइट पर डाला है। आरबीआई ने भी इस विवरण की प्रमाणिकता की पुष्टि की है।
नोटबंदी के पीछे सरकार का तर्क था कि 500 और 1,000 रुपये के नोटों का चलन काफी तेजी से बढ़ा है। सरकार ने कहा कि 2011-12 से 2015-16 के दौरान अर्थव्यवस्था में 30 फीसदी की वृद्घि हुई थी जबकि 500 और 1,000 रुपये के नोटों का चलन क्रमश: 76.38 फीसदी और 108.98 फीसदी बढ़ा था। सरकार ने राजस्व विभाग के श्वेत पत्र का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि काले धन का लेनदेन नकद होता है जिससे उसका लेखाजोखा नहीं मिल पाता है। सरकार ने यह भी उल्लेख किया था कि जाली नोट भी काफी बढ़े हैं जो करीब 400 करोड़ रुपये के हैं।
हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक सरकार के तर्क से सहमत नहीं था, जो बैठक के ब्योरे से भी पता चलता है। आरबीआई के निदेशक मंडल का मानना था, 'अधिकांश काले धन नकदी के तौर पर नहीं बल्कि रियल एस्टेट और सोने जैसी संपत्तियों में लगे हैं। ऐसे में नोटबंदी का इन संपत्तियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।' निदेशक मंडल ने कहा, 'अर्थव्यवस्था की वृद्घि दर का उल्लेख वास्तविक दर पर किया गया है जबकि परिचालित मुद्रा में वृद्धि नॉमिनल है। मुद्रास्फीति को समायोजित करने पर यह अंतर बहुत ज्यादा नहीं होगा। इसलिए नोटबंदी की सिफारिश का समर्थन करने के लिए यह पर्याप्त तर्क नहीं है।'
निदेशकों ने यह भी कहा था कि नोटबंदी सराहनीय कदम है लेकिन इससे अल्पावधि में सकल घरेलू उत्पाद पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जाली नोटों को लेकर चिंता जरूर थी लेकिन यह करीब 400 करोड़ रुपये ही थी, जो कुल नोटों का काफी कम हिस्सा था। निदेशक मंडल ने कहा था कि 8 नवंबर, 2016 तक पिछले छह महीनों के दौरान बोर्ड द्वारा जताई गई अधिकांश चिंता पर विचार किया गया था। निदेशक मंडल ने कहा था कि सरकार नकदी के उपयोग को कम करने के कदम उठा सकती है। विस्तृत चर्चा के बाद निदेशक मंडल की बैठक में निर्णय लिया गया कि विमुद्रीकरण व्यापक जनहित में है। इस प्रस्ताव पर नोटबंदी की घोषणा के करीब एक माह बाद 15 दिसंबर, 2016 को आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर ऊर्जित पटेल ने हस्ताक्षर किए थे। बैठक की अध्यक्षता तत्कालीन आरबीआई के गवर्नर ऊर्जित पटेल ने की थी।
वर्तमान गवर्नर शक्तिकांत दास उस समय आर्थिक मामलों के सचिव थे और वह भी इस बैठक में शामिल हुए थे। इसके अलावा डिप्टी गवर्नर आर गांधी, एसएस मुंदड़ा तथा अन्य निदेशक अंजलि छिब दुग्गल, नचिकेत मोर, भरत एन दोशी, सुधीर माकंड़ और एसके माहेश्वरी ने भी बैठक में शिरकत की थी। हालांकि आरबीआई निदेशक मंडल के सदस्य और उस समय टाटा कंसल्टेंसी के मुख्य कार्याधिकारी एन चंद्रशेखरन बैठक में अनुपस्थित रहे। चंद्रशेखरन अभी टाटा संस के चेयरमैन हैं।
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