आयुर्वेदिक खाद्य पदार्थों का देश में बढ़ रहा इस्तेमाल
रंजू सरकार / March 11, 2019
शैली पिंटो प्रकृति पर बहुत भरोसा करती हैं। उनके दोनों बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं और वह आमतौर पर ताजे खाद्य पदार्थ जैसे पेड़ का शहद, ए2 घी और हर्बल जूस आदि ही खरीदती हैं। इसी तरह के उत्पाद बेचने वाली कपिवा आयुर्वेद ने पिछले सप्ताह ही फायरसाइड वेंचर्स, मोहनदास पई के परिवार कार्यालय, मधु केला और गिट्स फूड्स की अगुआई में 25 लाख डॉलर की वित्त उगाही की है। वैद्यनाथ समूह, अमीवा शर्मा और श्रेया बधानी द्वारा शुरू की गई कपिवा आयुर्वेद ने क्लीनिक मॉडल के बजाय एफएमसीजी मॉडल अपनाने के बाद वर्ष 2018 में 12 गुना विस्तार किया।
कंपनी के संस्थापक पहले इसे डॉ. बत्रा की तरह एक आयुर्वेद चेन बनाना चाहते थे। इसके लिए चिकित्सकों की आवश्यकता थी और कंपनी ने 200 से अधिक उत्पादों को बेचने के लिए पहले क्लीनिक आधारित मॉडल का चयन किया। ये औषधालय सही तरह से काम कर रहे थे लेकिन कपिवा ने पाया कि शहद, ए2 घी, जूस, चाय, ठंडे माहौल में रखने वाले तेल जैसे उत्पाद अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे और इनकी मांग को और बढ़ाया जा सकता था।
वर्ष 2017 के अंत में कंपनी ने क्लीनिक आधारित मॉडल की जगह एफएमसीजी आधरित वितरण मॉडल को अपनाया जिससे इसके द्वारा बेचे जाने वाले उत्पादों की संख्या 200 से घटकर 40 पर आ गई। कंपनी ने एमेजॉन और बिगबास्केट जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक पहुंच बनाने के लिए अपनी पैकेजिंग बेहतर की और नई टीम का चयन किया। वर्तमान में कपिवा के उत्पाद 10 शहरों के 4,000 आउटलेट पर उपलब्ध हैं जिसमें रिलायंस, स्पेंसर्स और नेचर्स बास्केट जैसे खुदरा आउटलेट शामिल हैं। व्हीटग्रास और आंवला जूस जैसे उत्पादों की एक तिहाई बिक्री एमेजॉन, बिगबास्केट आदि प्लेटफॉर्म पर ऑनलाइन होती है।
ऑनलाइन कारोबार में अगर उत्पाद अच्छा है तो आपके ब्रांड को सकारात्मक समीक्षाएं मिलती हैं। कपिवा ने ऑनलाइन बिक्री के लिए एक टीम बनाई है और सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन (एसईओ) के लिए एक व्यक्ति की नियुक्ति की है। कंपनी ने 24 घंटे डिलिवरी सुनिश्चित की है और ग्राहकों की समस्याओं के लिए एक टीम बनाई है। इन सभी कदम ने कंपनी के कारोबार में पिछले साल जनवरी से 12-13 गुना बढ़ोतरी पाने में मदद की है और कंपनी को 6-7 करोड़ रुपये मासिक राजस्व जुटाने के लक्ष्य का भरोसा दिलाया है। कपिवा उत्पाद के विकास पर भी ध्यान दे रही है।
अधिक पराग, एंजाइम और पोषक तत्वों वाला जंगली शहद ओडिशा और पश्चिमी घाट से लाया जाता है। शर्मा कहते हैं कि ए2 घी को गुजरात के गिहर क्षेत्र (3,000 देसी गायों के घर) से लाया जाता है। यह घी आयुर्वेद पद्धति के तहत दही से से तैयार किया जाता है ना कि क्रीम से। खुदरा दुकानों पर कपिवा के 250 ग्राम शहद की कीमत 199 रुपये है जबकि समान मात्रा का डाबर हनी 120 रुपये में मिलता है। कंपनी के दूसरे उत्पादों की कीमत भी अन्य के मुकाबले 50-70 प्रतिशत अधिक है।
एक ओर घी का 13,000 करोड़ रुपये सालाना का बाजार है तो वहीं शहद 3,000 करोड़ रुपये तथा हर्बल जूस 600 करोड़ रुपये का बाजार है और यह तेजी से बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए व्यक्तिगत देखभाल के मामले में हर्बल सामानों की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है। कपिवा इस बाजार में 1-2 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखती है। शर्मा कहते हैं, 'सीमित संसाधनों के चलते यह 10,000 करोड़ रुपये का ब्रांड नहीं हो सकता। आप एक साल में सीमित मात्रा में जंगली शहद ले सकते हैं। साथ ही, हमें यह नैतिक और सतत तरीके से करना होगा।'
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