राम जन्मभूमि विवाद पर होगी मध्यस्थता | आशिष आर्यन / March 09, 2019 | | | | |
उच्चतम न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिए शुक्रवार को पूर्व न्यायाधीश फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति गठित करने का फैसला किया। समिति के दो अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और चेन्नई के वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू शामिल होंगे। दिलचस्प बात है कि तीनों मध्यस्थ तमिलनाडु के रहने वाले हैं, जहां अयोध्या विवाद का कुछ खास प्रभाव नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि इस विवाद का संभावित समाधान तलाशने के लिए इसे मध्यस्थों को सौंपने में उसे कोई कानूनी अड़चन नजर नहीं आती है। हालांकि साथ में यह भी कहा गया कि मध्यस्थता की कार्यवाही को गोपनीय रखा जाना चाहिए। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पीठ ने निर्देश दिया कि मध्यस्थता की कार्यवाही एक सप्ताह के भीतर शुरू होगी। यह प्रक्रिया उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में होगी।
पांच सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'हमारा यह मानना है कि मध्यस्थता प्रक्रिया की सफलता सुनिश्चित करने के लिए इसकी कार्यवाही की पूरी गोपनीयता बनाए रखी जानी चाहिए और मध्यस्थ तथा पक्षकारों के विचार गोपनीय रखे जाने चाहिए तथा किसी भी व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं दी जानी चाहिए।'
हालांकि शीर्ष अदालत ने सीधे तौर पर इस संबंध में कोई स्पष्ट मनाही देने से गुरेज किया कि प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस कार्यवाही की रिपोर्टिंग करे या नहीं लेकिन उसका मानना था कि इसकी रिपोर्टिंग नहीं की जानी चाहिए। हालांकि पीठ ने यह फैसला तीन सदस्यीय समिति पर छोड़ दिया कि इस मामले में मीडिया की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए या नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि लागू नियमों के मुताबिक मध्यस्थता की कार्यवाही कैमरे में रिकॉर्ड की जाएगी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मध्यस्थता की सारी कार्यवाही आठ हफ्ते के भीतर पूरी होगी और मध्यस्थता समिति को चार हफ्ते के भीतर अपनी कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट न्यायालय को देनी होगी। इस समिति को एक हफ्ते के भीतर अपना काम शुरू करना है। शीर्ष अदालत के पीठ ने 26 फरवरी को इस मामले की सुनवाई के दौरान दशकों पुराने इस विवाद को मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाने का प्रयास करने का सुझाव दिया था अगर सभी पक्षकार इस विचार से सहमत हों।
अदालत ने कहा, 'हम पक्षकारों को यह सुझाव दिया है कि अदालत द्वारा नियुक्त मध्यस्थता समिति की कार्यवाही में गोपनीयता बरतें ताकि मुद्दे का स्थायी समाधान निकाला जा सके। हमने इसको ही ध्यान में रखते हुए कहा कि आठ हफ्ते की अवधि के मुताबिक ही सभी पक्षकार मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों के अनुवादों को देखें और समझें ताकि इनका प्रभावी तरीके से इस्तेमाल कर इस मसले का समाधान निकाला जा सके।'
संविधान पीठ ने इस भूमि विवाद का सर्वमान्य हल खोजने के इरादे से इसे मध्यस्थता के लिए भेजने के बारे में बुधवार को सभी संबंधित पक्षों को सुना था। पीठ ने कहा था कि इस भूमि विवाद को मध्यस्थता के लिए सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में बाद में आदेश दिया जाएगा। पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे की गंभीरता और देश की जनता की भावनाओं को लेकर जागरूक है इसीलिए मध्यस्थता का मौका नहीं देना गलत हो सकता है। पांच सदस्यीय पीठ ने कहा था, 'यह केवल संपत्ति की बात नहीं है बल्कि दिल-दिमाग की भावनाओं और उनके समाधान की भी बात है।'
इस प्रकरण में निर्माेही अखाड़ा के अलावा दूसरे हिंदू संगठनों ने इस विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने के शीर्ष अदालत के सुझाव का विरोध किया है जबकि मुस्लिम संगठनों ने इस विचार का पूर्ण समर्थन किया है। हालांकि, दोनों पक्षों ने संभावित मध्यस्थों के लिए नामों का पैनल सुझाया था।
शीर्ष अदालत इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ सुनवाई कर रही है। शीर्ष अदालत में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपील दायर की गई है जिस फैसले में विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों, सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माेही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया गया।
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