भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के सदस्य निलेश साठे का कहना है कि बीमा किस्त पर 18 फीसदी कर वसूलना देश में बीमा के प्रसार में बाधक है और इसे वापस लिया जाना चाहिए। साठे ने बुधवार को बिज़नेस स्टैंडर्ड के सालाना इंश्योरेंस राउंड टेबल में बतौर मुख्य अतिथि अपने मुख्य भाषण में कहा, 'देश में सामाजिक सुरक्षा का दायरा बेहद सीमित है और ऐसे में किस्त पर 18 फीसदी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाना घातक है। क्या आपको लगता है कि देश में बीमा का दायरा बढ़ाना केवल आईआरडीएआई या बीमा कंपनियों की जिम्मेदारी है? यह हर संबंधित पक्ष की जिम्मेदारी है जिसमें सरकार भी शामिल है।' उन्होंने कहा कि प्राधिकरण ने सरकार को बताया है कि अधिकांश देशों में बीमे की किस्त पर कोई कर नहीं लिया जाता है। इन देशों में विकसित बाजार भी शामिल हैं।
साठे ने कहा कि सरकार को बीमा कंपनियों के पेंशन उत्पादों के लिए अलग श्रेणी की अनुमति देनी चाहिए। यह नई पेंशन योजना (एनपीएस) की तर्ज पर होना चाहिए। उन्होंने कहा, 'बीमा कंपनियां पहले से ही पेंशन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। लेकिन पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के आने के बाद एनपीएस के लिए 50,000 रुपये की एक अलग श्रेणी दी गई है। इसे बीमा कंपनियों को क्यों नहीं दिया जाना चाहिए।'
ई-कॉमर्स कंपनियों के बीमा क्षेत्र में उतरने का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि इससे लोगों के बीच जागरूकता बढ़ेगी और बीमा उत्पादों का प्रसार होगा। साठे ने कहा, 'एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को बीमा में आने दीजिए। मुझे पक्का यकीन है कि इससे ज्यादा से ज्यादा लोग बीमा उत्पाद खरीदेंगे क्योंकि अभी इसका दायरा बहुत कम है। यह बहुत बड़ा बाजार है और एमेजॉन और फ्लिपकार्ट को इसमें अपनी किस्मत क्यों नहीं आजमानी चाहिए? उनका हमेशा स्वागत है।'
साठे ने कहा कि आईआरडीएआई केवल नियामक नहीं है बल्कि दूसरे नियामकों के उलट उसे बीमा क्षेत्र के विकास में अहम भूमिका निभानी है। प्राधिकरण हमेशा सुझावों के लिए तैयार है और दूसरे उद्योगों की तुलना में बीमा उद्योग ज्यादा करीबी से जुड़ा है। बीमा क्षेत्र के विकास की उसकी भूमिका अहम है क्योंकि देश में इसके कारोबार की अपार संभावनाएं हैं।
साठे ने कहा, 'दुनिया की कुल बीमा किस्त की तुलना में भारत का हिस्सा केवल 1.5 फीसदी है। अलबत्ता इसमें अपार संभावनाएं हैं क्योंकि जब इसका दायरा सीमित होता है तो जाहिर है कि इसमें बहुत गुंजाइश होती है।' उन्होंने कहा कि बीमा को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढऩे से कुछ बीमा उत्पादों में अच्छी वृद्घि देखने को मिल रही है। साठे ने कहा, 'पेंशन, स्वास्थ्य, वाहन और संपत्ति क्षेत्र भविष्य में भारतीय बीमा उद्योग के विकास का इंजन बन सकते हैं।'
स्वास्थ्य बीमा को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ रही है। इसकी वजह यह है कि अधिकांश लोग इलाज का महंगा खर्च वहन नहीं कर सकते हैं। पिछले पांच साल से स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में प्रीमियम 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इसके अलावा बीमा कंपनियां कंपनियों की ग्रैच्युटी का भी प्रबंधन कर रही हैं और यही वजह है कि बीमा क्षेत्र में भारी निवेश हो रहा है। यह पैसा देश में बुनियादी क्षेत्र में लग रहा है। साठे ने कहा, 'देश के आर्थिक विकास में बीमा क्षेत्र की अहम भूमिका है। इसमें बुनियादी क्षेत्र के विकास के लिए दीर्घकालीन प्रावधान हैं जिससे देश की जोखिम लेने की क्षमता मजबूत होती है।' उन्होंने कहा कि बीमा क्षेत्र को अपने उत्पादों को सरल बनाने पर जोर देना चाहिए और धोखाधड़ी से बेहतर ढंग से निपटना चाहिए।
साठे ने कहा कि नोटबंदी, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई), इंडियास्टैक और सरकार की नई योजनाओं से बीमा क्षेत्र को बल मिला है। साथ ही नई पीढ़ी के उपभोक्ता बीमा उत्पाद खरीद रहे हैं और वे प्रौद्योगिकी से अच्छी तरफ वाकिफ हैं। बीमा क्षेत्र अपनी पहुंच और कारोबार बढ़ाने के लिए ऑटोमैशन और कृत्रिम बुद्घिमत्ता का इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने कहा कि जहां म्युचुअल फंड का करीब 40 फीसदी कारोबार केवल एक शहर मुंबई से आता है वहीं बीमा की ग्रामीण बाजारों में व्यापक पहुंच है। साठे ने कहा, 'हमने 25 करोड़ लोगों को 33 करोड़ पॉलिसी बेची हैं और इसमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में है। जहां तक पहुंच का सवाल है तो मुंबई में जीवन बीमा केवल 11 फीसदी लोगों के पास है वहीं म्युचुअल फंड 39 फीसदी लोगों के पास है।' उन्होंने कहा, 'हमें इस बहस में नहीं पडऩा चाहिए कि बीमा बेहतर है या म्युचुअल फंड। सबकुछ अच्छा है। गैर वित्तीय बचत ठीक नहीं है। जिस माध्यम से भी लोगों के पैसे की बचत होती है वह अच्छा है।'
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