हाउसिंग फाइनैंस कंपनी डीएचएफएल लिमिटेड की ऑडिट कमेटी की तरफ रखी गई स्वतंत्र ऑडिट रिपोर्ट में मुखौटा कंपनियों की तरफ से रकम की हेराफेरी के सभी आरोपों से फर्म को क्लीन चिट मिल गई है। लेकिन इसके साथ यह भी कहा गया है कि डीएचएफएल के प्रवर्तकों की तरफ से शुरू की गई कंपनियों के शेयर खरीदने के लिए कुछ रकम इकाइयों को उधार दी गई हो सकती है।
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि रियल एस्टेट की चार कंपनियों को झुग्गी पुनर्वास परियोजना के लिए दिए गए कर्ज का इस्तेमाल संभवत: अन्य रियल एस्टेट कंपनी (दर्शन डेवलपर्स) का शेयर खरीदने में किया गया, जो कायटा एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड का है। कायटा एडवाइजर्स और इसकी विशिष्ट नाम वाली सहायक कंपनी का प्रवर्तन वधावन ने किया है, जो डीएचएफएल के प्रवर्तक भी हैं और ये रियल एस्टेट और फिल्म प्रोडक्शन समेत विभिन्न कारोबारों में हैं। इन कंपनियों का पता एकसमान है - एचडीआईएल टावर, मुंबई, जो डीएचएफएल लिमिटेड का भी पता है।
डीएचएफएल ने नोशन रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड, ईयरलीन रियल एस्टेट डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, प्राशुल रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड, एडवीना रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड को एसआरए डेवलपमेंट के लिए परियोजना कर्ज के तौर पर 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए और इसका वितरण भी किया। इस कर्ज का इस्तेमाल कायटा से दर्शन का शेयर खरीदने में किया गया।
डीएचएफएल की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है, दर्शन डेवलपर्स के उपलब्ध वित्तीय विवरण की जांच से संकेत मिलता है कि हमारी समीक्षावधि में शेयरधारिता में वास्तव में बदलाव हुआ था और इसकी संभावना ज्यादा है कि चार कंपनियों को दी गई उधारी का इस्तेमाल कायटा एडवाइजर्स से दर्शन डेवलपर्स का शेयर 1,424.16 करोड़ रुपये में खरीदने में और 299.28 करोड़ रुपये का इस्तेमाल अन्य प्रतिभूतियों की खरीद में किया गया। ऑडिटर की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कपिल वधावन, धीरज वधावन और एक स्वतंत्र निदेशक वाली वित्त समिति ने 200 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज आवंटित किया। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रवर्तक निदेशकों का 200 करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज आवंटन की प्रक्रिया में खासा प्रभाव हो सकता है। इसके अलावा ऑडिट रिपोर्ट में डीएचएफएल के प्रवर्तकों को किसी भी गड़बड़ी से मुक्त कर दिया गया है, जैसा कि न्यूज पोर्टल कोबरापोस्ट में आरोप लगाया गया था।
न्यूज पोर्टल ने आरोप लगाया था कि डीएचएफएल के प्रवर्तकों ने मुखौटा कंपनियों का इस्तेमाल रकम की हेराफेरी में किया। टीपी ओस्तवाल ऐंड एसोसिएट्स की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी या इसके मालिक ने न तो 26 मुखौटा कंपनियों का प्रवर्तन किया और न ही इन कंपनियों के निदेशक एकसमान हैं।