फिलिप मॉरिस इंटरनैशनल इंक ने अपने मार्लबोरो सिगरेट बनाने के लिए भारतीय साझेदार को वर्षों से विनिर्माण लागत का भुगतान करती रही है जबकि सरकार ने नौ साल पहले ही इस उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर प्रतिबंध लगा दिया था। रॉयटर्स को प्राप्त कंपनी के आंतरिक दस्तावेजों से यह खुलासा हुआ है।
भारत सरकार ने 2010 में सिगरेट विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी ताकि धूम्रपान पर रोक लगाने के प्रयासों को बल मिल सके। सिगरेट विनिर्माण क्षेत्र में आमतौर पर घरेलू कंपनियां मौजूद हैं और ऐसे में विदेशी निवेश पर रोक लगाए जाने से उम्मीद की जा रही है कि विदेशी रकम से इसका विस्तार नहीं होगा। सरकार के इस निर्णय के एक साल बाद जापान टोबैको ने कारोबारी मॉडल टिकाउ न होने का हवाला देते हुए अपना कारोबार समेट लिया था।
हालांकि फिलिप मॉरिस भारतीय बाजार में मौजूद रही और अपने कारोबार के परिचालन के लिए दूसरा रास्ता अख्तियार किया। मई 2009 से जनवरी 2018 के दौरान कंपनी के दस्तावेजों से इसका खुलासा हुआ है। एफडीआई पर रोक लगाए जाने से एक साल पहले उसने भारत की कंपनी गॉडफ्रे फिलिप्स के साथ एक विशेष करार किया था ताकि विश्व प्रसिद्ध मार्लबोरो सिगरेट का स्थानीय स्तर पर उत्पादन किया जा सके।
उसके बाद गॉडफ्रे फिलिप्स ने भारत में मार्लबोरो सिगरेट के लिए खुद को अनुबंध विनिर्माणकर्ता तौर पर पेश किया जबकि फिलिप मॉरिस की बहुलांश हिस्सेदारी वाली स्थानीय इकाई इस ब्रांड के लिए थोक कारोबार करने वाली कंपनी के तौर पर अपनी पहचान जाहिर की। लेकिन कंपनी के दर्जनों आंतरिक दस्तावेजों से पता चलता है कि फिलिप मॉरिस वर्षों से अप्रत्यक्ष तौर पर भारत में मार्लबोरो सिगरेट के विनिर्माण संबंधी लागत का भुगतान करती रही है। इन दस्तावेजों में इनवॉइस बिल, कानूनी अनुबंध, ईमेल और वित्तीय विवरण शामिल हैं।
भारत के कुछ पूर्व प्रवर्तन अधिकारियों ने कहा कि विनिर्माण संबंधी लागत का अप्रत्यक्षत तौर पर भुगतान करने से नियामकीय नियमों का उल्लंघन होता है। हालांकि निशीथ देसाई एसोसिएट्ïस की पार्टनर प्रतिभा जैन जैसे कुछ वकील इससे सहमत नहीं हैं और उन्होंने कहा है कि संघीय नियमों के तहत इस प्रकार के भुगतान को स्पष्ट तौर पर निषेध नहीं किया गया है।
भारत में फिलिप मॉरिस के निदेश (कंपनी मामले) आर वेंकटेश ने एक ईमेल के जवाब में कहा कि गॉडफ्रे फिलिप्स इंडिया के साथ कारोबारी अनुबंध के तहत भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी नियमों का अनुपालन किया गया है। लेकिन उन्होंने इस संबंध में विस्तृत जानकारी नहीं दी। कंपनी ने इस बाबत तैयार विस्तृत प्रश्नावली का उत्तर नहीं दिया और न ही विशेष बातचीत के लिए आग्रह किया।