किसी भी इंजीनियर के लिए भारत में तकनीकी स्टार्टअप शुरू करना काफी आम बात है लेकिन इस तरह की तकनीक के लिए कृषि जैसे क्षेत्र का चयन लीक से हटकर है। जिस देश में किसान केवल चुनाव, बाढ़, सूखा और आत्महत्याओं के समय ही सुर्खियां बनते हैं वहां वैश्विक कंपनी जीई में काम कर चुके कृष्ण कुमार कृत्रिम मेधा (एआई), मशीन लर्निंग, बिग डेटा जैसी उन्नत तकनीक के सहारे इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं।
क्रॉपइन टेक्नोलॉजी के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी कुमार कहते हैं, 'पूरा विचार उत्पादक क्षमता बढ़ाने का है। हम जानते हैं कि अधिकांश छोटे और सीमांत किसानों को मदद चाहिए और हम एनजीओ तथा राज्य सरकारों के साथ मिलकर यह करने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए हमारा पहला लक्ष्य सरकार को मदद करना और फिर बिजनेस-टू-बिजनेस (बी2बी) कारोबारियों को सहायता उपलब्ध कराना है।' कुमार ने वर्ष 2010 में समाज में बड़ा बदलाव लाने के उद्देश्य से क्रॉपइन को स्थापित करने की योजना बनाई। फसल खराब होने, कर्ज चुकाने में विफल और दूसरे कारणों से हर साल लाखों किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के चलते उन्होंने कृषि क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया। अपने शोध में कुमार ने पाया कि असामान्य मौसम गतिविधियों से बचाव के लिए किसानों के पास कोई व्यवहार्य तकनीकी उपाय मौजूद नहीं है। उन्होंने जीई के पूर्व साथी चितरंजन जीना और टाटा मोटर्स के पूर्व मार्केटिंग मैनेजर कुणाल प्रसाद को साथ लेकर कंपनी शुरू की। फिलहाल प्रसाद कंपनी के सीओओ हैं और जीना तकनीकी कार्यों के प्रमुख हैं।
क्रॉपइन कृषिगत व्यापार को वैश्विक स्तर पर सैस आधारित सेवाएं उपलब्ध कराती है। हालांकि कंपनी, भारत में गैर सरकारी संगठनों और सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर किसानों को कृषिगत उपाय उपलब्ध करा रही है। इन उपायों के जरिये कोई भी व्यक्ति वास्तविक समय में किसी भी फसल का विश्लेषण और अनुमान लगा सकता है। इससे कृषि उत्पादन के अनुमानों में होने वाली अनिश्चितता कम हो जाती है और किसानों को आय बढ़ाने में मदद करती है।
कुमार कहते हैं, 'सबसे पहले हम खेत की जियो-टैगिंग करते हैं और फिर वहां का संबंधित डेटा जुटाते हैं। इसमें पानी और मिट्टी का स्वास्थ्य शामिल है। सभी आंकड़े जुटाने पर हमारे ऐप में परिणाम दिखाई देते हैं जो संबंधित सुझाव भी देता है। जियो टैगिंग के चलते रियल टाइम में उपग्रह मानचित्र और मौसम जानकारी मिलती है।' एक बार यह प्रक्रिया पूरी होने और फसल बुआई के बाद प्रत्येक पांच दिन में उपयोगकर्ता को रिपोर्ट भेजी जाती है जिसमें खेत के हिस्सों की कार्य प्रणाली और जरूरी सलाह दी जाती हैं। कुमार कहते हैं कि इस तरह के आंकड़े जुटाने और प्रसंस्करण में मशीन लर्निंग और एआई का बड़े स्तर पर उपयोग किया गया है। क्रॉपइन आगामी अनुमानों का विश्लेषण भी करती है जिससे फसल कटाई से पहले ही उसका अनुमान लगा लिया जाए।
कुमार कहते हैं, 'हम प्रिडिक्टिव एनालिसिस का उपयोग करते हैं जिससे फसल कटाई से पहले ही उसकी सेहत और उत्पादन का अनुमान लगा लिया जाता है। यह बैंकों, बीमा कंपनियों और जिंस कारोबारियों के लिए काफी लाभकारी है।' कंपनी के अनुसार इस तकनीक के इस्तेमाल से फसल उत्पादन में 12 प्रतिशत की तेजी और फसल हानि में 18 प्रतिशत की कमी हुई है।
क्रॉपइन आईटीसी, मैकेन, बिग बास्केट, सहयाद्री फार्म जैसी बड़ी कंपनियों से साझेदारी कर रही है। साथ ही, छोटे और मझोले किसानों को ये उपाय देने के लिए कंपनी बिहार, मध्य प्रदेश और कर्नाटक सरकारों के साथ भी काम कर रही है। वह कहते हैं, 'हम बिहार और मध्य प्रदेश में 'जीविका' नामक स्मार्ट कृषि परियोजना पर काम कर रहे हैं जिसके तहत कंपनी किसानों को बेहतर सुविधाएं मुहैया करा रही है। फिलहाल इन दो राज्यों में हम 20,000 किसानों के साथ काम कर रहे हैं।' किसानों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए कंपनी कर्नाटक सरकार से बातचीत कर रही है। क्रॉपइन ने अभी तक कुल 1.2 करोड़ डॉलर की उगाही की है और इसके निवेशकों में चिरेटा वेंचर्स, अंकुर कैपिटल और बिल ऐंड मिलिंडा फाउंडेशन शामिल हैं। प्रत्येक कृषि योग्य भूमि की उन्नत तकनीक के साथ निगरानी के उद्देश्य के साथ काम कर रही क्रॉपइन फिलहाल 29 देशों में परिचालन कर रही है।
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