देश में इस्पात के बढ़ते आयात से मुकाबला करने के लिए प्रमुख घरेलू इस्पात उत्पादकों ने आयात के विकल्प को अपने पूंजीगत व्यय का लक्ष्य बनाया हुआ है। सस्ते उत्पादों की वजह से आयात ने बाजार पर अपना कब्जा जमाया हुआ है। सरकारी स्वामित्व वाली भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा कि आयात के विकल्प के लिए जोरदार योजना है। हमने नए वर्ग विकसित किए हैं जो रक्षा, पनडुब्बी और जहाज निर्माण जैसे क्षेत्रों में रूस के आयात का विकल्प पेश करते हैं। सेल के अलावा टाटा स्टील, सज्जन जिंदल के नेतृत्व वाली जेएसडब्ल्यू स्टील और नवीन जिंदल के नेतृत्व वाली जिंदल स्टील ऐंड पावर देश की बड़ी प्राथमिक इस्पात उत्पादकों में शामिल हैं। अप्रैल से नवंबर 2018 के दौरान भारत का तैयार इस्पात आयात सात लाख टन के साथ निर्यात से आगे निकल गया जिससे देश इस जिंस का शुद्ध आयातक बन गया जबकि वित्त वर्ष 17 और वित्त वर्ष 18 में देश इस्पात का शुद्ध निर्यातक था। इस अवधि में इस्पात की खपत 7.16 करोड़ टन रही जो एक साल पहले इसी अवधि की तुलना में 7.9 प्रतिशत अधिक रही।हालांकि उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि भारतीय बाजार में आई सस्ते इस्पात आयात की बाढ़ प्रमुख रूप से वाणिज्यिक ऑर्बिट्रेज के कारण है जिसका मतलब है - सस्ते दामों वाला परिदृश्य। देश में उत्पादों की किसी प्रकार की उपलब्धता की कमी इसका कारण नहीं है। टाटा स्टील कलिंगनगर के उपाध्यक्ष (संचालन) राजीव कुमार ने कहा, 'आयात के विकल्प और नए उत्पादों का वह अनुपात बताना मुश्किल है जिसमें संपूर्ण उत्पाद शामिल रहें। लेकिन मैं कह सकता हूं कि हमारे पास वे सभी क्षमताएं हैं जो किसी जर्मन, कोरियाई या जापानी इस्पात विनिर्माता के पास होती हैं। यह न केवल मात्रा में बल्कि गुणवत्ता के स्तर पर भी उच्च स्तरीय काम होता है।' टाटा स्टील कलिंगनगर ने 50 लाख टन कोल्ड रोलिंग मिल के दूसरे चरण के विस्तार की शुरुआत कर दी है जिससे वित्त वर्ष 21 से उत्पादन होने लगेगा। इस विस्तार के तहत दुनिया की सबसे बड़ी ब्लास्ट फर्नेस में से एक की स्थापना होगी जिससे कलिंगनगर की कुल क्षमता 80 लाख टन हो जाएगाी जो पूरी तरह से वाहन क्षेत्र की मांग पूरी करेगी। इस दूसरे चरण के विस्तार के लिए 23,500 करोड़ रुपये का निवेश किया जा रहा है। सेल भी अपनी क्षमता के आधुनिकीकरण में लगी हुई है और इसका लक्ष्य 2025 तक 1,50,000 करोड़ रुपये के निवेश से अपनी क्षमता को बढ़ाकर पांच करोड़ टन करने का है। सेल की वर्तमान क्षमता 2.1 करोड़ टन है। सेल के अधिकारी ने कहा कि आगे चलकर हम चीन, दक्षिण कोरिया और जापान से आयात रोकने के लिए तेल और गैस क्षेत्र में एपीआई (अमेरिकी पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट विनिर्दिष्टï) दर्जें के पाइप तथा नीदरलैंड और फ्रांस के आयात विकल्प के रूप में रेल के पहियों का निर्माण करने वाले हैं। पिछले कुछ सालों के दौरान भारत 9.1 करोड़ टन उत्पादन और वित्त वर्ष 2016 में 12.2 करोड़ टन क्षमता के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक बन गया है। मुंबई स्थित जेएसडब्ल्यू स्टील के निदेशक (वाणिज्यिक और विपणन) जयंत आचार्य ने कहा कि हमारे लिए आयात के विकल्प के तौर पर इस्पात निर्माण की रणनीति नई नहीं है। हम पहले से ही टिनप्लेट खंड के अलावा बिजली और वाहनों के इस्पात में यह काम कर रहे हैं जो बढिय़ा इस्पात होता है। अपने घोषित पूंजीगत व्यय के जरिये हमारा लक्ष्य आयात काविकल्प और घरेलू बाजार के नए उत्पादों की बढ़ती मांग पूरी करना है। वित्त वर्ष 18 में जेएसडब्ल्यू स्टील ने अगले तीन वर्षों के लिए 26,800 करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय की घोषणा की है जिसमें डोलवी में कच्चे इस्पात की क्षमता 50 लाख टन से बढ़ाकर एक करोड़ टन करना तथा विजयनगर में पुनर्निर्माण और क्षमता विकास को 30 लाख टन से बढ़ाकर 45 लाख टन करना भी शामिल है। कंपनी ओडिशा और झारखंड में नई इस्पात परियोजनाओं के साथ-साथ मौजूदा इकाइयों के विस्तार पर भी विचार कर रही है। इसके लिए कंपनी ने पहले ही जमीन का अधिग्रहण शुरू कर दिया है। अधिक आयात एक ऐसी समस्या रहा है जिसे घरेलू इस्पात उद्योग को हाल तक झेलना पड़ता रहा है। 2016 के बाद से सरकार ने एंटी-डंपिंग शुल्क के बाद न्यूनतम आयात मूल्य निर्धारित करते हुए सस्ते आयात पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं।
