►बिजली की मांग 63,000 मेगावॉट
►मौजूदा क्षमता 21,872 मेगावॉट
►अक्षय ऊर्जा आधारित उत्पादन क्षमता 4,386 मेगावॉट
►नई ताप बिजली परियोजना की योजना 2,640 मेगावॉट
►नई परियोजनाओं पर अनुमानित लागत 22,000 करोड़ रुपये, 8 करोड़ रुपये प्रति यूनिट
►अनुमानित बिजली दरें 5.5 से 6 रुपये प्रति इकाई
►मध्य प्रदेश ने 2,640 मेगावॉट की परियोजनाओं के लिए बोली आमंत्रित की, 6 रुपये यूनिट भाव संभव
करीब एक दशक बाद कोयला आधारित बिजली उत्पादन को दो बड़ी बिजली परियोजनाओं से नया जीवन मिलने जा रहा है। मध्य प्रदेश ने 1,320 मेगावॉट क्षमता की दो परियोजनाएं स्थापित करने के लिए बोली आमंत्रित की है। इन दोनों में से प्रत्येक परियोजना पर अनुमानित व्यय 11,220 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। यह परियोजनाएं अनूपपुर और छिंदवाड़ा में स्थापित की जाएंगी। छिंदवाड़ा कमलनाथ का लोकसभा क्षेत्र है, जो इस समय कांग्रेस शासित राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि इस परियोजना पर प्रति यूनिट 8 करोड़ रुपये लागत आएगी, जिसकी वजह से बिजली दरें 5.5 से 6 रुपये प्रति यूनिट तक हो सकती हैं। दिल्ली के एक विशेषज्ञ ने कहा, 'तय मूल्य 3.5 से 4 रुपये प्रति यूनिट के करीब होगा जबकि परिवर्तनीय मूल्य कोल लिंकेज की जगह पर निर्भर होगा। यह 2 रुपये प्रति यूनिट के करीब हो सकता है।' मध्य प्रदेश इस समय अक्षय ऊर्जा उत्पादन करने वाला अग्रणी राज्य है, जहां रीवा सोलर प्रोजेक्ट की क्षमता 750 मेगावॉट है। रीवा का शुल्क 2.97 रुपये प्रति यूनिट था। निजी क्षेत्र को 2008 में आखिरी बड़ी कोयला आधारित बिजली परियोजना का आवंटन हुआ था। इसमें 4,000 मेगावॉट क्षमता के 4 मेगा अल्ट्रा पावर प्रोजेक्ट शामिल थे, जिसमें 2 पर ही काम हुआ। इसके अलावा कुछ राज्य स्तर की परियोजनाएं थीं। उसके बाद से एनटीपीसी को छोडकर इस परंपरागत बिजली में कोई बड़ा निवेश नहीं आया है।
मध्य प्रदेश राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि राज्य 2024-25 में मांग की स्थिति को देखते हुए योजना बना रहा है। अधिकारी ने कहा, 'ज्यादातर राज्यों का पीपीए 2022 तक के लिए है। यह परियोजनाएं राज्य में बढ़ती मांग को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं। एक वजह यह भी है कि अक्षय ऊर्जा क्षमता बनाने के लिए कोयला आधारित बिजली आधार है। मांग बढऩे की वजह से इसकी क्षमता का पूरा इस्तेमाल राज्य के भीतर हो जाएगा।'
राज्य में इस समय अधिकतम मांग 63,000 मेगावॉट है। इसकी कुल स्थापित क्षमता 21,872 मेगावॉट है, जिसमें से 4,386 मेगावॉट अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने यह भी कहा कि पारेषण के हिसाब से राज्य की आदर्श स्थिति है, जिसकी पहले योजना नहीं बनी। इस तरह की परियोजनाओं के लिए पर्याप्त जमीन भी है। अधिकारी ने कहा, 'इसका इस्तेमाल नए संयंत्रों के लिए किया जाएगा।'
बहरहाल इस क्षेत्र के कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि खरीदारों की हालत देखते हुए नई परियोजनाओं की जरूरत नहीं है। भारत के सबसे बड़े बिजली उत्पादक एनटीपीसी ने 2020 तक 20,000 मेगावॉट क्षमता बढ़ाने की योजना बनाई है और किसी नई परियोजना पर काम नहीं कर रही है।