पिछले हफ्ते मुंबई, पुणे, बेंगलूरु, जयपुर, हैदराबाद, कोलकाता और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जिपगो के ग्राहकों को एक ईमेल संदेश मिला जिसमें कहा गया था कि बेंगलूरु की परिवहन स्टार्टअप कंपनी इस महीने की शुरुआत से उनके शहरों में अपना परिचालन नहीं कर पाएगी। स्टार्टअप कंपनियों की ओर से इस तरह के ईमेल शायद ही कभी भेजे जाते हैं। हालांकि ऐसी कंपनियों द्वारा परिचालन बंद करना असामान्य नहीं है। लेकिन जिपगो का मामला थोड़ा अलग है। पिछले साल अगस्त में कंपनी ने ऐलान किया था कि एस्सेल ग्रीन मोबिलिटी से उसने 300 करोड़ रुपये जुटाए हैं। इसके कुछ महीने बाद उसने पुणे की सुप्रीम ट्रांस सर्विसेज के अधिग्रहण की घोषणा की थी। ऐसे में एक वेंचर निवेशक से सवाल किया, 'क्या कंपनी ने 300 करोड़ रुपये छह महीने में खर्च कर दिए? अगर ऐसा नहीं है तो फिर परिचालन बंद क्यों किया जा रहा है?' इस बारे में जानकारी के लिए जिपगो और एस्सेल समूह को ईमेल भेजा गया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। पिछले साल 28 दिसंबर को कंपनी ने कंपनी पंजीयक के पास शेयरधारक दस्तावेज जमा कराए थे। इसके निवेशकों में गूगल इंडिया के प्रबंध निदेशक राजन आनंद, हैदराबाद की कंपनी वेंचर ईस्ट, मुंबई की ओरिओस वेंचर पार्टनर्स और ओमिडेयर नेटवर्क के साथ ही आईएलऐंडएफएस जैसे नाम शामिल हैं। लेकिन इसमें एस्सेल का नाम नहीं था। इस समूह से संबंधित किसी शख्स का भी उसमें उल्लेख नहीं किया गया था। ऐसे में माना जा रहा है कि जिस रकम की घोषणा की गई थी, वह कंपनी को मिली ही नहीं।जिपगो से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि कंपनी पैसे मिलने को लेकर आशान्वित थी और उसका इस्तेमाल समय से पहले कर्ज चुकाने में किया जाना था। जिपगो की शुरुआत 2014 में कैब एग्रीगेटर टैक्सीपीक्सि के तौर पर गौरव अग्रवाल और जितेंद्र शर्मा ने की थी। एक साल बाद इंटर-सिटी बस सेवा के तौर पर इसका नाम बदल कर जिपगो कर दिया गया। मीडिया की खबरों के अनुसार कंपनी ने 2014 से 2018 के बीव करीब 5.2 करोड़ डॉलर जुटाए। ऐसे में सवाल उठता है कि अक्टूबर में किए गए अधिग्रहण का क्या हुआ? सुप्रीम फैसिलिटी मैनेजमेंट के एक निदेशक ने अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, 'एस्सेल इन्फ्रास्ट्रक्चर के अशोक अग्रवाल ने हमें जिपगो से मिलवाया था।' एस्सेल ने सुप्रीम के बोर्ड से कहा था कि वे जिपगो को 30 करोड़ रुपये दे रहे हैं और वह सुप्रीम ट्रांस कॉन्सेप्ट्स को खरीद सकती है। उक्त निदेशक ने कहा, 'हमें उन्होंने कहा था कि जिपगो को 18 महीने में 300 करोड़ रुपयेे मिलेंगे।' नकद और शेयरों का यह सौदा 40 करोड़ रुपये में तय हुआ। उन्होंने कहा, 'जिपगो ने कहा कि वह जनवरी में हमें भुगतान करेगी। लेकिन जनवरी में हमें पता चला कि सुप्रीम ट्रांस को बंद कर दिया गया है।' उक्त निदेशक ने कहा कि सुप्रीम जिपगो के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में मामला दर्ज की योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि एस्सेल ने हाथ पीछे खींच लिया और कंपनी को कोई पैसा नहीं दिया गया। हालांकि उन्होंने सौदे से संबंधित साक्ष्य के तौर पर कोई दस्तावेज नहीं दिखाया। नियामकीय अड़चनों से भी जिपगो पर असर पड़ा है। अधिकांश राज्य सरकारें परिवहन कंपनियों को अलग-अलग जगहों पर रुककर यात्रियों को उठाने की अनुमति नहीं देती हैं। हालांकि निश्चित जगह से यात्रियों को लेने और उसे तय स्थान पर छोडऩे की अनुमति पुणे, हैदराबाद, कोलकाता और गुरुग्राम जैसे शहरों में है। फोर्ड ने हाल ही में पुणे में इस तरह की सेवा शुरू की है। एक और प्रतिस्पर्धी कंपनी शटल है, जिसमें सिकोया और एमेजॉन का पैसा लगा हुआ है। ओला और उबर भी इस साल अगस्त तक बस सेवा शुरू करने की योजना बनाई है।जिपगो के अधिकांश ग्राहक कंपनी का साथ छोड़ सकते हैं। इसके कर्मचारियों के बीच छंटनी की तलवार लटकी हुई है।
