ऐसे संवारे विशेष बच्चे का वित्तीय भविष्य | स्वर्णामी मंडल / March 04, 2019 | | | | |
राहिल और दिशारी की इकलौती संतान यथार्थ को मस्तिष्क से जुड़ी ऐसी दुर्लभ बीमारी है, जिससे उसे चलने और बातचीत करने में दिक्कत होती है। साथ ही उसकी हड्डिïयां और पेशियां भी उससे प्रभावित हो गई हैं। मगर अच्छी बात यह है कि यथार्थ खुशमिजाज है और उसकी सेहत पर लगातार नजर नहीं रखनी पड़ती है। 30 साल की दिशारी पेशे से निवेश बैंकर हैं और 32 साल के राहिल आईटी पेशेवर हैं। दोनों को यथार्थ की सेहत की ही नहीं बल्कि उसके भविष्य की और वयस्क होने पर उसे वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाने की भी चिंता रहती है। वित्तीय योजनाकार पंकज मालडे कहते हैं, 'सामान्य बच्चों की तुलना में ऐसे बच्चों के लिए वित्तीय योजना थोड़ी अलग होती है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि माता-पिता के दूर होने पर भी ऐसे बच्चों को सबसे अच्छी देखभाल मिल सके।'
बहुआयामी नजरिया
स्टेप अहेड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स के संस्थापक उत्तर कुमार सेन का कहना है कि एक या दो दशक पहले बचत शुरू करना ठीक रहेगा ताकि राहिल और दिशारी के पास अच्छी खासी रकम जमा हो सके। यह तय करना आसान नहीं है कि आपके बच्चे का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए कितनी रकम चाहिए। हां, महंगाई को देखते हुए स्वास्थ्य और अन्य खर्च का मोटा अनुमान जरूर लगाया जा सकता है। इसलिए इतना निवेश जरूर करिए, जिससे बच्चे की सामान्य और असामान्य दोनों जरूरतें पूरी हो सकें।
वित्तीय योजनाकार और वेल्थमेकर के संस्थापक विपिन भूटानी कहते हैं, 'आदर्श रूप में कुल रकम पति-पत्नी की संयुक्त आय की 5 से 10 गुनी होनी चाहिए। उन्हें यथार्थ और अपनी जीवन प्रत्याशा को ध्यान में रखते हुए एक समय अवधि भी तय करनी चाहिए।' यह अवधि 5-10 साल से शुरू होकर 20-30 साल तक हो सकती है।
खर्च का इंतजाम
इसके लिए माता-पिता शेयर, एसआईपी, दीर्घ अवधि के म्युचुअल फंड, बैलेंस्ड फंड, पीपीएफ और डाकघर बचत योजनाओं में निवेश कर सकते हैं। निवेश के अन्य विकल्प भी आजमाए जा सकते हैं। एक अवधि तय करने के बाद पति-पत्नी आवंटन पर ध्यान दे सकते हैं। 70-80 प्रतिशत निवेश इक्विटी में होना चाहिए। लेकिन निवेश की कवायद उनकी जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर करती है। दिशारी और राहिल अभी युवा हैं और जोखिम ले सकते हैं और इंतजाम पूरे परिवार के लिए किया जा रहा है, केवल यथार्थ के लिए नहीं।
मालडे कहते हैं कि पहली बार निवेश करने वालों के लिए बैलेंस्ड फंड अच्छा विकल्प है क्योंकि इसमें वे बार-बार पोर्टफोलियो में बदलाव कर सकते हैं। वह कहते हैं, 'निवेश का रास्ता तय होने के बाद वे भुगतान का तरीका तय कर सकते हैं। यह मासिक हो सकता है, छमाही हो सकता है और सालाना भी हो सकता है। लेकिन जब रकम वापस मिले तो उन्हें एकमुश्त रकम के बजाय मासिक भुगतान का विकल्प चुनना चाहिए।' इससे उन्हें नियमित आय मिलती रहेगी। माता-पिता को टर्म बीमा भी लेना चाहिए, जिसमें बीमा की रकम मासिक आय की 10 से 15 गुना होनी चाहिए।
दिशारी और राहिल के मामले में कम से कम 19 लाख रुपये का बीमा होना चाहिए। आपात स्थिति से निपटने के लिए दोनों के पास स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी भी होनी चाहिए, जिसमें 20 लाख रुपये तक बीमा हो सकता है। फिलहाल दोनों में से किसी का भी स्वास्थ्य बीमा नहीं है।
आपात स्थिति के लिए
आकस्मिक और अप्रत्याशित स्वास्थ्य जरूरतों के लिए एक कोष तैयार होना ही चाहिए। मालडे कहते हैं कि इसके लिए लिक्विड फंडों और स्थिर जमा (एफडी) में निवेश करना चाहिए ताकि कम से कम समय में इसे नकदी में तब्दील किया जा सके। पति-पत्नी मिलकर महीने के खर्च, निवेश और मासिक किस्त पर 90,000 रुपये खर्च करते हैं। ऐसे में 6 महीने के हिसाब से उन्हें कम से कम 5.4 लाख रुपये इकट्ठे करने चाहिए।
असामान्य खर्चों के लिए
इसमें किया गया निवेश यथार्थ की दवा-दारू और दूसरे खर्च पूरे करेगा। अभी हर महीने उसकी सेहत पर 9,000 रुपये खर्च होते हैं और 3 साल बाद सर्जरी के लिए 3 लाख रुपये की जरूरत होगी। मालडे के हिसाब से सामान्य म्युचुअल फंड का विदड्रॉल प्लान कारगर होगा क्योंकि उससे यथार्थ के नियमित इलाज के लिए हर महीने रकम मिल जाएगी। सर्जरी के लिए बचत खाते में रकम रखने के बजाय लिक्विड और अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंडों में निवेश करना चाहिए ताकि अधिक प्रतिफल मिले। राहिल और दिशारी के गुजरने के बाद चिकित्सा और लंबी अवधि के दूसरे खर्चों के लिए ऐसी योजना बनाई जानी ाहिए, जिससे उन्हें 20 साल में करीब 1 करोड़ रुपये मिल सकें। दोनों मिलकर हर महीने 1.9 लाख रुपये कमाते हैं। सभी खर्च निकालने के बाद उनके पास 1 लाख रुपये बच जाते हैं। सेन की सलाह है कि इस रकम को विभिन्न श्रेणियों में निवेश कर वे 1 करोड़ रुपये जोड़ सकते हैं। लंबी अवधि में धीरे-धीरे रकम जोडऩी हो तो डेट म्युचुअल फंड सबसे अच्छे हैं। वे 12 महीने के सिस्टेमैटिक ट्रांसफर प्लान के जरिये इक्विटी फंड में निवेश करने और एकमुश्त रकम को हाइब्रिड और डेट फंड में निवेश करने की राय भी देते हैं।
माता-पिता के बाद
राहिल और दिशारी को देखना पड़ेगा कि उनके निधन के बाद बच्चे का ध्यान कौन रखेगा और कैसे रखेगा। कोलकाता की एस्टेट प्लानिंग फर्म दासगुप्ता ऐंड चटर्जी एलएलसी के प्रबंध निदेशक अरिजित घोष-दस्तीदार कहते हैं, 'परिवार या भरोसेमंद दोस्त नहीं हों तो न्यास (ट्रस्ट) बनाया जा सकता है, जो वित्तीय मामलों और बच्चे की रोजमर्रा की जिम्मेदारी उठाएगा। माता-पिता को कम से कम दो न्यासी-एक परिवार या मित्र और दूसरा कॉर्पोरेट न्यासी-नियुक्त करने चाहिए।' कॉर्पोरेट न्यासी वे कंपनयिां होती हैं, जो ट्रस्ट की विभिन्न जरूरतों का इंतजाम करती हैं। वे बच्चे की देखभाल और उसकी जरूरतों के मद में भुगतान करने के लिए एक व्यवस्था तैयार कर सकती हैं। उपयुक्त न्यासी का चयन आवश्यक है ताकि उसका इस्तेमाल बच्चे की पूर्ण देखभाल के लिए हो सके।
एक अभिरुचि पत्र भी तैयार किया जाना चाहिए, जो न्यास के लिए मार्गदर्शक के तौर पर काम करेगा। यह बच्चे के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचनाएं अभिभावक या न्यासी को देगा। इसका जिक्र, जहां तक हो, विस्तार से किया जाना चाहिए। अभिरुचि पत्र कोई कानूनी दस्तावेज तो नहीं होता, लेकिन न्यासी और अभिभावक दोनों को एक-एक प्रति दी जानी चाहिए। राहिल और दिशारी को भौतिक (फिजिकल) परिसंपत्तियों के मुकाबले वित्तीय परिसंपत्तियों में अधिक निवेश करना चाहिए क्योंकि न्यासी इनकी देखभाल अधिक सहजता से कर पाते हैं। भौतिक परिसंपत्ति एक जायदाद तक सीमित रहनी चाहिए क्योंकि विभिन्न जायदाद की देखभाल करना चुनौतीपूर्ण रह सकता है। बेहतर तरीके से एस्टेट प्लानिंग के लिए एक निजी पारिवारिक न्यास का गठन होना चाहिए, जिसके जरिये परिसंपत्तियों की सुरक्षा और इनका स्थानांतरण आसान हो सकता है।
आपात स्थिति
उस स्थिति से भी इनकार नहीं किया जा सकता जब न्यासी की मौत होने पर सगे-संबंधी न्यास में रखी परिसंपत्ति पर अपन दावा ठोक सकते हैं। इसके मद्देनजर दो या इससे अधिक न्यासी की नियुक्ति की जानी चाहिए ताकि एक के निधन की हालत में दूसरा बच्चे के भविष्य की सुरक्षा के लिए दूसरा मौजूद रहे। अभिभावक और न्यासी की भूमिकाओं में विभेद रखना भी जरूरी है ताकि अभिभाक के निधन की हालत में न्यास काम करने के साथ बच्चे की जरूरतें पूरी करता रहे। एक विकलांग बच्चे को सामान्य बच्चे पर निर्भर भी नहीं बनाना चाहिए या संयुक्त रूप से दोनों के नाम पर जायदाद नहीं करनी चाहिए।
वसीयत तैयार करना
कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता सुप्रतिम रॉय कहते हैं, 'राहिल और दिशारी के मामले में वसीयत तैयार करना जरूरी हो जाता है, क्योंकि इससे उनके द्वारा यथार्थ के लिए छोड़ी गई परिसंपत्तियां न्यास के पास चली जाएंगी। एक अभिभावक नियुक्त करना और वसीयत में उनका नाम देना भी जरूरी है।' अभिभावक और न्यासी एक ही व्यक्ति हो सकता है, लेकिन दोनों की भूमिकाएं अलग-अलग हैं।
हालांकि कुछ वित्तीय सलाहकार एक ही व्यक्ति को दोनों जिम्मेदारियां नहीं देने की सलाह देते हैं। इन भूमिकाओं को अलग रख एक संतुलन कायम किया जा सकता है, जो बच्चे की सुरक्षा के लिए अहम है। जहां तक यथार्थ की बात है तो वसीयत बनाने के लिए उसके माता-पिता को एक वकील की मदद लेनी चाहिए। वसीयत तैयार होने के बाद एक प्रति वकील के पास रहनी चाहिए और एक प्रति न्यासी और तीसरी प्रति अभिभावक को भेजी जानी चाहिए। वसीयत में ऐसी भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए, जिससे बच्चे को विरासत में मिलने वाली रकम सीधे न्यास के पास चली जाए।
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