साल के अंत में पूंजी प्रवाह में आ सकता है बदलाव | बीएस बातचीत | | पुनीत वाधवा / March 04, 2019 | | | | |
मेबैंक किम इंग सिक्योरिटीज के मुख्य कार्याधिकारी जिगर शाह ने पुनीत वाधवा के साथ साक्षात्कार में बताया कि विदेशी निवेशक केंद्र में स्थिर सरकार, दोहरे घाटे पर नियंत्रण और बैंकिंग क्षेत्र में लगातार सुधार को लेकर चिंतित हैं। पेश हैं उनसे बातचीत के मुख्य अंश:
प्रतिफल को लेकर आपकी क्या उम्मीदें हैं?
अगले 6-12 महीने के लिए निफ्टी-50 का हमारा लक्ष्य 10,500 है। गठबंधन के जरिये किसी नए नेता के प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में सूचकांक 9,200 के निचले स्तर पर जा सकता है। घरेलू प्रवाह का ताजा रुझान कुछ दबाव का संकेत दे रहा है और इसलिए कई कारोबारी लार्ज-कैप, चुनिंदा क्षेत्रों और मजबूत प्रबंधन वाली कंपनियों पर दांव लगाना पसंद करेंगे।
मुख्य जोखिम क्या हैं?
वैश्विक मंदी में तेजी आना और चीन-अमेरिकी गतिरोध का दूर नहीं होना प्रमुख जोखिम हैं। ब्रेक्जिट एक अन्य ऐसा घटनाक्रम है जो नुकसान पहुंचा सकता है, हालांकि इसका प्रभाव अप्रत्यक्ष तौर पर दिख सकता है। मुद्रा में चुनाव से पहले सामान्य तौर पर तेजी देखी जाती है, लेकिन उसके बाद यह चालू खाते के घाटे और विदेशी प्रवाह पर निर्भर करेगी। बाजार मौजूदा समय में कम बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी सरकार की वापसी का संकेत दे रहा है। यदि परिणाम काफी अलग रहता है तो बाजार में 2004 जैसी प्रतिक्रिया दिख सकती है।
क्या विदेशी प्रवाह की रफ्तार धीमी पड़ेगी?
उभरते बाजारों का प्रवाह इस साल एमएससीआई सूचकांकों में खास बदलाव की वजह से चीन के पक्ष में दिखा है। चूंकि अमेरिका में सख्ती की रफ्तार धीमी पड़ी है और 2019 के शुरू से अच्छे प्रवाह के साथ उभरते बाजार इससे लाभान्वित हो रहे हैं। भारतीय बाजारों के लिए प्रवाह कैलेंडर वर्ष की दूसरी छमाही में एकतरफा दिख सकता है। कुल मिलाकर, एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट्स इंडेक्स ने 2019 के शुरू से अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन भारत कुछ हद तक कमजोर है। यदि गैर-भाजपा गठबंधन सत्ता में आता है तो विदेशी प्रवाह ज्यादा मजबूत नहीं हो सकता है। बाजार पर चुनाव का प्रभाव दीर्घावधि में ज्यादा नहीं है, पर अल्पावधि में इसका व्यापक असर दिखता है। अन्य प्रमुख चुनौतियां अर्थव्यवस्था में वृद्घि की रफ्तार मजबूत बनाने, रोजगार पैदा करने, कृषि समस्याएं दूर करने और निजी पूंजी गत खर्च में सुधार लाने की हैं।
पुलवामा में आतंकी हमले का बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
किसी संपूर्ण युद्घ की आशंका नहीं है। कारगिल जैसी लंबी लड़ाई भी दोनों देशों के लिए महंगी साबित होगी। इक्विटी बाजार निवेशक व्यवस्थागत जोखिम के लिए हमेशा तैयार रहते हैं और उन्हें जब तक इस तरह के हालात का कोई प्रमाण नहीं मिलता तब तक उन्हें निवेश बनाए रखना चाहिए।
क्या मौजूदा समय में मिड- और स्मॉल-कैप से निवेशकों को दूर रहना चाहिए?
नकदी और प्रशासन को लेकर अनिश्चितताएं दूर होने के बाद स्मॉल- और मिड-कैप के लिए दिलचस्पी लौटेगी। कई छोटे और मझोले शेयर एक वर्ष के निचले स्तर पर कारोबार कर रहे हैं और बड़ी गिरावट के बगैर इनमें मूल्यांकन सस्ता है। इनमें निवेश पर अच्छे प्रतिफल के लिए समय-सीमा दो-तीन साल की होनी चाहिए।
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भारत को किस नजरिये से देख रहे हैं?
विदेशी निवेशक केंद्र में एक मजबूत सरकार, दोहरे घाटे पर नियंत्रण, बैंकिंग सेक्टर में लगातार सुधार, आईबीसी प्रक्रिया में तेजी और एनबीएफसी तथा गिरवी शेयरों से जुड़ी चिंताओं के दूर होने को लेकर चिंतित हैं।
दिसंबर 2018 के नतीजों के बारे में आप क्या कहना चाहते हैं?
निफ्टी कंपनियों की आय में कमी आती दिख रही है, यह कुछ कंपनियों में एकमुश्त नुकसान की वजह से है। स्मॉल- और मिड-कैप में रुझान भी ज्यादा अलग नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में एक ऐसा पैटर्न विकसित हुआ है जिसमें आय अनुमान वर्ष के शुरू में ऊंचाई पर होता है। क्षेत्रों के संदर्भ में, उपभोक्ता, सॉफ्टवेयर और कुछ खास निजी बैंकों की आय अनुमान के अनुरूप रही है। फार्मा को लेकर मिश्रित रुझान दिखा है। हालांकि सीमेंट, मैटेरियल, वाहन, धातु, बिजली और यूटिलिटीज दमदार प्रदर्शन नहीं दिखा पाए हैं। दूरसंचार और सरकार के स्वामित्व वाल बैंकों पर दबाव बना हुआ है। रिलायंस इंडस्ट्रीज मजबूत है और उससे बाजार और आय को अच्छा समर्थन मिला।
चालू वर्ष 2019 में आपकी क्या निवेश रणनीति है?
हम अच्छे प्रबंधन और बैलेंस शीट वाले निजी बैंकों और फाइनैंसर को लगातार पसंद कर रहे हैं। साथ ही हम डेटा एवं डिजिटल, मीडिया एवं मनोरंजन, सीमेंट, वाहन, गैस वितरण और विद्युत कारोबार/पारेषण जैसे क्षेत्रों को भी पसंद कर रहे हैं।
|