आईबीसी के लिए सेबी करेगा अधिग्रहण संहिता में सख्ती | श्रीमी चौधरी / मुंबई February 27, 2019 | | | | |
पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की योजना दिवालिया संहिता के तहत दिवालिया कार्यवाही का सामना कर रही कंपनियों के लिए लागू अधिग्रहण संहिता को सख्त बनाने की है। सूत्रों ने कहा कि सेबी उस प्रावधान को हटाएगा जो सक्षम प्राधिकरण को इसकी इजाजत देता है कि वह अधिग्रहणकर्ता को खुली पेशकश से छूट दे। आगे सिर्फ अदालत या ट्रिब्यूनल ही ऐसी छूट दे पाएंगे। विशेषज्ञों ने कहा कि यह कदम अस्पष्टता दूर करने और नियमों के दुरुपयोग पर लगाम कसने के लिए उठाया जा रहा है।
मौजूदा नियम के तहत सक्षम प्राधिकरण के पास खुली पेशकश से छूट देने की शक्ति है, लेकिन नियम में इसे परिभाषित नहीं किया गया है कि कौन सक्षम प्राधिकरण होगा और इसे व्याख्या पर छोड़ दिया गया है। मोटे तौर पर सक्षम प्राधिकरण किसी क्षेत्र का नियामक या मंत्रालय हो सकता है। एक सूत्र ने कहा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आईबीसी के लिए उपलब्ध कराई गई छूट का दुरुपयोग न हो, सेबी की योजना इसके नियमों की भाषा को सख्त बनाने की है। साथ ही बाजार नियामक शब्दावली मेंं भी बदलाव लाएगा ताकि सुनिश्चित हो सके कि यह छूट सिर्फ लेनदारों को दी गई है, न कि किसी अन्य इकाई को। पिछले साल सेबी ने आईबीसी समाधान के तहत किए गए अधिग्रहण में खुली पेशकश से छूट दी थी। यह कदम बैंकों को फंसे कर्ज की समस्या को बेहतर तरीके से निपटाने में मदद के लिए उठाया गया था। सामान्य परिस्थिति में 26 फीसदी खुली पेशकश तब अनिवार्य होता है जब किसी सूचीबद्ध कंपनियों के नियंत्रण में बदलाव होता है। हालाङ्क्षक कंपनी कर्ज पुनर्गठन के दौरान खुली पेशकश की अनिवार्यता अधिग्रहणकर्ता पर (लेनदार) अतिरिक्त बोझ डालता है, जो पहले से ही भारी कटौती का सामना कर रहे होते हैं।
सूत्रों ने कहा कि इनमें बदलाव की घोषणा शुक्रवार को होने वाली सेबी की बोर्ड बैठक में की जाएगी। सेबी का निदेशक मंडल मनी मार्केट और म्युचुअल फंडों की ऋण प्रतिभूतियों के मूल्यांकन के नए तरीके को भी मंजूरी दे सकता है। यह कदम ऐसे समय में देखने को मिल रहा है जब 24 लाख करोड़ रुपये वाला म्युचुअल फंड उद्योग उच्च कर्ज वाली कंपनियों में निवेश के चलते दबाव में है।
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