► 1 एकड़ से कम जमीन वाले किसानों की औसत मासिक बचत 465 रुपये प्रति माह ► योजना के तहत हर महीने 500 रुपये मिलने से उनकी बचत दोगुनी हो जाएगी ► योजना का लाभ न केवल भूस्वामी किसानों बल्कि पट्टेदार किसानों को भी
अंतरिम बजट में घोषित आय सहायता योजना - पीएम-किसान का फायदा न केवल भूस्वामी किसानों बल्कि उन लोगों को भी मिलेगा, जो आधिकारिक या अनाधिकारिक पट्टेदार के रूप में औपचारिक या मौखिक अनुबंधों के रूप में खेती कर रहे हैं। इस योजना के तहत छोटे किसानों को एक साल में 6,000 रुपये या 500 रुपये प्रतिमाह मुहैया कराए जाएंगे। यह धनराशि उन छोटे किसानों की औसत मासिक बचत से अधिक होगी। उदाहरण के लिए एक एकड़ से कम भूमि में खेती करने वाले भारतीय किसानों की औसत मासिक बचत 465 रुपये प्रति माह (आय में से खर्च घटाकर) है। इसमें हर महीने 500 रुपये जुड़ने से उनकी बचत दोगुनी हो जाएगी या उनके खर्च में बढ़ोतरी होगी। इस योजना का सबसे ज्यादा फायदा उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, झारखंड, बिहार और उत्तराखंड जैसे अधिक आबादी वाले राज्यों की ग्रामीण आबादी को मिलेगा।
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण के मुताबिक इन राज्यों में प्रत्येक परिवार की औसत मासिक बचत 500 रुपये प्रति महीना से कम है। इस योजना के लाभार्थियों (12.5 करोड़) के निर्धारण के आधार के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे कृषि सर्वेक्षण 2015-16 में किसान को परिभाषित किया गया है। इसके लिए एक संकेतक 'खेती हो रही भूमि' को इस्तेमाल किया गया है। यह भूस्वामित्व से अलग है और यह बात दस्तावेज में भी कही गई है।
अक्टूबर, 2018 में प्रकाशित कृषि गणना रिपोर्ट, 2015-16 में कहा गया है, 'कृषि गणना में डेटा संग्रह की आधारभूत सांख्यिकी इकाई भूस्वामित्व नहीं बल्कि 'खेती हो रही भूमि' है क्योंकि खेती के स्तर पर वह व्यक्ति फैसले लेता है, जो खेती करता है न कि उस जमीन का मालिक।' पिछले 2011 के सर्वेक्षण में एक अन्य मापदंड को अपनाया गया है, जो भ्रम को और बढ़ाता है। सामाजिक-आर्थिक और जाति गणना (एसईसीसी) में भारत में 'भूस्वामी परिवारों' की संख्या 7.8 करोड़ बताई गई है, जबकि मुख्य गणना में सभी आकार के भूस्वामी 'किसानों' की संख्या 11.9 करोड़ बताई है। ये अनुमान उन 12.5 करोड़ लघु एवं सीमांत किसानों से काफी कम हैं, जो पीएम-किसान योजना के लाभार्थी हैं।
कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि कुछ राज्यों में 'खेती हो रह भूमि' में पट्टेदारों को भी किसान माना जाता है। लेकिन अन्य राज्यों में ऐसा नहीं होने के आसार हैं। कृषि अर्थशास्त्री और इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट डेवलपमेंट रिसर्च के निदेशक महेंद्र देव ने कहा, 'भारत में पट्टेदारों की संख्या के आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन छोटे अध्ययनों में दिखाया गया है कि यह संख्या हमारे राष्ट्रीय सर्वेक्षणों के रिकॉर्ड की तुलना में अधिक है, जिनमें संख्या कम दर्शाई गई है। इस वजह से इस बात की प्रबल संभावना है कि कृषि सर्वेक्षणों में पट्टेदार किसानों को भी शामिल किया जाता है।'
कृषि मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि भूस्वामित्व के रिकॉर्ड केवल राज्यों के पास हैं, इसलिए लाभार्थियों की पहचान में उन्हीं की भूमिका होगी। मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'कई बार पट्टेधारक के कई वर्षों से भूमि को जोतने के बावजूद राजस्व पंजीयिका में भूमि रिकॉर्ड में बदलाव नहीं होने के आसार होते हैं।' इससे पता चलता है कि न केवल भूस्वामी बल्कि मामूली जमीन या श्रमिकों को भी नकद हस्तांतरण योजना का लाभ मिल सकता है।
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