डेट और इक्विटी बाजार के बीच का संबंध | आकाश प्रकाश / February 17, 2019 | | | | |
हाल तक अधिकांश शेयर बाजार निवेशक स्थानीय डेट बाजारों को शायद ही तवज्जो देते थे। देश में डेट बाजार काफी हद तक अविकसित थे। सरकारी प्रतिभूतियों से परे इनमें कारोबार बहुत कम होता था। अधिकांश कारोबारी उधारी या तो बैंकों के जरिये ली जाती थी या फिर विदेश से जुटाई जाती। कॉर्पोरेट बॉन्ड में खुदरा भागीदारी नाममात्र की होती थी।
बीते पांच-सात वर्ष में तस्वीर काफी हद तक बदल गई। बचत के बढ़ते वित्तीयकरण, डेट में आवक, म्युचुअल फंड और बीमा कंपनियों के माध्यम से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भागीदारी आदि सभी में इजाफा हुआ है। विदेशी निवेश की उदार सीमा के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भी डेट बाजार में अहम हो गए हैं। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां खुदरा निवेशकों को प्रत्यक्ष तौर पर बॉन्ड जारी कर सकती हैं। इस सिलसिले में हजारों करोड़ रुपये के बॉन्ड जारी करना आम बात है। यह डेट बाजार में एक बड़ा बदलाव है।
आगे चलकर इनका आकार और व्यापक होगा क्योंकि घरेलू निवेशक अचल संपत्ति और सोने के बजाय परिसंपत्ति आवंटन के मामलों में इक्विटी और डेट पर ध्यान दे रहे हैं। कह सकते हैं कि मौजूदा चुनौतियों के बावजूद इसमें आगे और मजबूती ही आएगी। एक मजबूत और सक्रिय डेट बाजार की स्थापना के बाद अब हमें इनके बीच का संबंध और एक दूसरे पर इनका प्रभाव भी देखने को मिल रहा है।
एनबीएफसी क्षेत्र अभी एक संकट से गुजरा है। इसकी प्रमुख वजह आईएलऐंडएफएस डिफॉल्ट है। इसके चलते संस्थागत डेट निवेशकों ने एनबीएफसी के प्रति अपना जोखिम खत्म कर दिया। ऐसे जोखिम वाले कई फंड ने परिपक्वता प्रपत्र को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया। जो एनबीएफसी डेट फंड तक पहुंच बनाने में सफल थे उनको ऊंची दर चुकानी पड़ी। एनबीएफसी को ऋण के लिए वापस बैंकों का रुख करना पड़ा या अपनी संपत्ति बेचनी पड़ी।
एनबीएफसी के प्रति डेट बाजार के जोखिम से बचने ने इनमें से अधिकांश वित्तीय संस्थानों के वृद्घि और मुनाफे के पूर्वानुमान पर असर डाला। इक्विटी बाजार ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अधिकांश एनबीएफसी के गुणक कम कर दिए। इक्विटी निवेशक को कई तरह के दबाव का सामना करना पड़ता है, भले ही उसके पास किसी भी एनबीएफसी का शेयर हो। डेट बाजार के जोखिम से बचने की प्रवृत्ति का असर स्टॉक के सूक्ष्म विकास पर भी पड़ा। डेट बाजार बुनियादी बातों का संचालन भी करते हैं। अगर आप जोखिम से बचने की समझ नहीं रखते तो आपका पैसा गंवाना तय है, भले ही आपके पास किसी भी एनबीएफसी के शेयर हों।
दूसरा मामला एस्सेल समूह का है। प्रवर्तक समूह और शेयरों की बदौलत होल्डिंग कंपनी के नकदीकरण के चलते शेयर कीमतों में भारी गिरावट आई। ज़ी के शेयर 35 फीसदी तक गिर गए। यह तब हुआ जबकि कंपनी का प्रदर्शन बेहतर रहा था।
शेयर कीमतों में गिरावट इसलिए आ रही है क्योंकि शेयरों की विसंगतिपूर्ण बिक्री की आशंका बरकरार है। इक्विटी निवेशक का यह अधिकार है कि वह बुनियादी चीजों के बारे में जाने लेकिन इसके बावजूद डेट बाजार डिफॉल्ट को लेकर चिंतित हो सकते हैं। यहां एक बार फिर शेयर बाजार, डेट बाजार से संचालित होता है। अगर डेट बाजार शिथिल होता है तो शेयर बाजार में उछाल आएगी। डेट बाजार की समझ की कमी और उनकी चिंता उपरोक्त दोनों ही अवसरों पर आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा।
डेट बाजार का विकास और उनका बढ़ता आकार अच्छी चीज है और इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। ऋण के जोखिम का बंटा हुआ होना सकारात्मक बात है और इससे वित्तीय तंत्र मजबूत होगा। ऋण संबंधी निर्णयों का विकेंद्रीकरण लक्षित ऋण की संभावना को कम करता है। हमने अभी जैसे ऋण चक्र का सामना किया है, वैसा ही एक और दौर हम नहीं झेल सकते। उस दौर में बैंकों की फंसी हुई परिसंपत्ति उनकी कारोबारी पुस्तिका के 30 फीसदी तक पहुंच गई थी।
अलबत्ता कुछ मसले हैं जिन पर ध्यान देना होगा। मेरा मानना है कि डेट की आवक उतनी खुदरा नहीं है जितनी कि इक्विटी फंड में एसआईपी की आवक है। कम से कम 10 से 15 बड़े कॉर्पोरेट ट्रेजरी को डेट फंड पर विसंगतिपूर्ण अधिकार प्राप्त हैं। अगर ये बड़े कॉर्पोरेट ट्रेजरी यह तय कर लें कि वे किसी खास जारीकर्ता से दूर रहेंगे तो अधिकांश फंड उस पेपर से बाहर निकल जाएंगे। इसके वृहद आर्थिक परिणाम हो सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि एनबीएफसी फंडिंग संकट के वक्त देखने को मिला। उस वक्त कई फंड को अपनी एनबीएफसी जोखिम कम करने पर मजबूर होना पड़ा। इन तमाम बातों को देखते हुए इस बात पर संदेह हो सकता है कि आखिर मौजूदा बाजार ढांचा कितना स्वस्थ है। एक अन्य मसला रेटिंग एजेंसियों का है। उनकी छवि भी कोई ठीक नहीं है। देश में ढेर सारी रेटिंग एजेंसियां हैं और उनकी गुणवत्ता मिलीजुली है। आईएलऐंडएफएस की रेटिंग एक महीने में ही 'एए' से डिफॉल्ट कैसे हो गई। रेटिंग करने का तरीका क्या है? रेटिंग एजेंसियां अक्सर मौजूदा हकीकत से समायोजन के मामले में बाजार से पीछे रहती हैं।
रेटिंग एजेंसियां इक्विटी बाजार के नजरिये को ध्यान में नहीं रखतीं। कई ऐसी कंपनियां हैं जिनकी रेटिंग 'एएए' है लेकिन बाजार को उन पर भरोसा नहीं है। इक्विटी बाजार और रेटिंग एजेंसियों के बीच की यह असंबद्घता बाजार के आवंटन पर बुरा असर डाल सकती है। अगर रेटिंग एजेंसी बाजार में भरोसा गंवा देती है तो यह बात बहुत खतरनाक साबित हो सकती है। बाजार पूरी तरह ठप हो सकता है। एक बार रेटिंग की प्रासंगिकता समाप्त होने के बाद बाजार का कारोबारी दायरा सीमित हो जाएगा। ऐसा जोखिम कोई भी नहीं लेना चाहता।
डेट फंड सही कीमतों पर कारोबार कर रहे हैं या नहीं इसे लेकर भी शुबहा हमेशा बरकरार रहता है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने इसके लिए दिशा निर्देश तय किए हैं लेकिन फिर भी कुछ संदेह बरकरार हैं। हो सकता है यह केवल सोच का मसला हो लेकिन ऐसा सोच मौजूद तो है। हमने इस वजह से भी डेट फंड में सुदृढ़ीकरण देखा है। देश में डेट बाजारों का उभार अच्छी बात है। देश के लिए मजबूत, नकदीकृत डेट बाजार आवश्यक हैं। एक इक्विटी निवेशक के रूप में हमें उन कंपनियों को लेकर डेट बाजार के रुख को समझना होगा जिनका हम अध्ययन कर रहे हैं। ऐसा करना अहम है क्योंकि हमने देखा है कि डेट बाजार बहुत आसानी से हमारी बुनियादी परिकल्पना में सेंध लगा सकते हैं।
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