भारतीय इक्विटी में कुल विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के अनुपात के तौर पर सॉवरिन वेल्थ फंड की हिस्सेदारी मौजूदा वित्त वर्ष में सर्वोच्च स्तर 5.74 फीसदी पर पहुंच गया है। हालांकि जनवरी में इनके निवेश की कीमत 1.54 लाख करोड़ रुपये थी, जो दिसंबर के 1.56 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले कम है। पर अगस्त के 1.7 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले भी कम है। कुल होल्डिंग यानी निवेश में गिरावट के बावजूद इसकी हिस्सेदारी ज्यादा होने की वजह विदेशी निवेशकों के निवेश में कुल कमी है। विदेशी निवेश के अन्य स्रोत जैसे हेज फंड के मुकाबले सॉवरिन वेल्थ फंड को ज्यादा स्थिर माना जाता है। यह मोटे तौर पर लंबी अवधि की पूंजीगत व्यवस्था होती है और इसका प्रबंधन अपनी भविष्य की जरूरतें पूरी करने के लिए सॉवरिन यानी संप्रभु सरकारें करती हैं। पिछले एक महीने में ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के इक्विटी निवेश में 46,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमी दर्ज हुई है। इसकी वजहें बिकवाली और विदेशी निवेशकों के निवेश वाले शेयरों के मूल्यांकन में कमी हो सकती है। व्यापक बाजार में खासी गिरावट देखी गई है जबकि सेंसेक्स 36,000 के स्तर के आसपास है।केआर चोकसी इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के प्रबंध निदेशक देवेन चोकसी ने कहा कि संस्थानों की तरफ से गिरवी शेयरों की बिकवाली के चलते बाजार में फिसलन नजर आई, जिससे छोटी फर्मों के शेयरों में तेज गिरावट देखने को मिली। उनके मुताबिक, इससे बाजार में भरोसे का मसला सामने आया, हालांकि फंडामेंटल अच्छे हैं। इसका मतलब यह होगा कि सॉवरिन वेल्थ फंड चुनिंदा शेयरों में ही हाथ आजमा रहे हैं और ये लिक्विड स्टॉक से ही चिपके हुए हैं। चोकसी ने कहा, कम स्थिर विदेशी फंड तब तक नहीं आ सकता जब तक कि बाजार स्थिर नहीं होगा। डाल्टन कैपिटल एडवाइजर्स के निदेशक यू आर भट्ट ने कहा, सॉवरिन वेल्थ फंड लंबी अवधि मसलन 30 साल के लिए निवेश करता है। अग्रणी 8-10 शेयरों को छोड़ दें तो कई शेयर 20 से 70 फीसदी तक टूटे हैं। ये शेयर इस स्तर पर खरीदारी के लिए शायद नहीं मिलेंगे, अगर चुनाव के नतीजे अनुकूल हों। सॉवरिन वेल्थ फंडों ने गिरावट को शायद खरीदारी का मौका देखा होगा, जिसकी वजह से कुल एफपीआई निवेश में उनकी हिस्सेदारी कमोबेश बनी हुई है।31 जनवरी को जारी मॉर्गन स्टैनली एशिया इमर्जिंग मार्केट इक्विटी स्ट्रैटिजी रिपोर्ट में कहा गया है कि उभरते बाजारों में फायदा देखने को मिल सकता है। विदेशी ब्रोकरेज फर्मों का रुख भारत को लेकर ओवरवेट है।
