अरिंदम मजूमदार और अनीश फडणीस / नई दिल्ली/ मुंबई 02 17, 2019
सैकड़ों उड़ानें निरस्त होने से हजारों यात्री गुस्से में हैं, नियामक की फटकार झेलनी पड़ी है और विस्तार योजनाओं में कटौती की तलवार भी लटक रही है। ऐसी हालत में पिछले एक हफ्ते में इंडिगो की सार्वजनिक छवि को गहरा आघात झेलना पड़ा है। इसके चलते जानकार आशंका जताने लगे हैं कि देश की सबसे बड़ी एयरलाइन की आक्रामक विस्तार योजना को पूरा कर पाने ढांचागत एवं कौशल क्षमता सक्षम हो पाएगी या नहीं।
इंडिगो ने हालात को अपने नियंत्रण में बताते हुए कहा है कि इस वजह से वह अपनी क्षमता में वृद्धि की रफ्तार धीमी नहीं करेगी। इंडिगो के मुख्य परिचालन अधिकारी वोल्फगैंग प्रॉक शाएर ने एक साक्षात्कार में कहा, 'हम निवेशकों को बताए गए विस्तार अनुमानों पर टिके हुए हैं। असल में, पायलटों की अनुमानित एवं वास्तविक उपलब्धता में थोड़ा फासला हो गया है लेकिन हम अप्रैल तक हालात पटरी पर लाने की राह पर हैं।' उन्होंने इंडिगो की उड़ानों के संचालन में पैदा हुई अव्यवस्था के लिए तूफानी मौसम और बेंगलूरु एवं मुंबई हवाईअड्डों पर रनवे बंद होने को जिम्मेदार ठहराया है। पिछले कुछ दिनों में इंडिगो की कुल उड़ानों में से 2 फीसदी उड़ानें निरस्त होने पर वह कहते हैं, 'इंडिगो उड़ानें निरस्त नहीं करना चाहती है लेकिन इतने बड़े पैमाने पर परिचालन होने और कई अन्य चीजें एक साथ होने से इस तरह का गतिरोध पैदा हो गया है।'
हालांकि विमानन उद्योग इन तर्कों से सहमत नहीं नजर आ रहा है। वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में इंडिगो की उड़ानों का निरस्त होना चालक दल की बड़ी कमी बयां करता है। एक विमानन कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, 'चालक दल की तैनाती एवं उड़ान योजना एकदम दुरुस्त होनी चाहिए। अगर एक तूफान आने से किसी एयरलाइन की उड़ानों के संचालन में एक महीने तक बाधा पहुंचती है तो इससे यही पता चलता है कि उड़ानों के संचालन एवं बेड़ा प्रबंधन के बीच कोई तालमेल नहीं है।'
इंडिगो के पास समुचित पायलटों की कमी की समस्या के मूल में प्रैट ऐंड व्हिटनी इंजन का मुद्दा बताया जा रहा है। इस इंजन में समस्याएं होने से करीब एक साल से विमानों की आपूर्ति बाधित हुई है जिससे एयरलाइन के चालक दल का भी समुचित इस्तेमाल नहीं हो पाया है। ऐसा होने से 2016-17 की पहली तिमाही में कर्मचारियों पर आने वाली लागत करीब 25 फीसदी बढ़ गई। इंडिगो के मुख्य वित्त अधिकारी रोहित फिलिप ने कहा था कि क्षमता वृद्धि में विलंब होने से परिचालन से संबंधित स्टाफ की अधिकता हो गई और इससे कंपनी की कर्मचारी लागत बढ़ गई।
सूत्रों का कहना है कि लागत नियंत्रण पर खासा जोर देने वाली इस एयरलाइन ने हालात प्रतिकूल होता देख विमानों की उड़ान संचालित करने वाले कैप्टन की भर्ती और फस्र्ट ऑफिसर के उन्नयन पर रोक लगा दी थी। लेकिन एक साल के भीतर ही नए विमानों की आपूर्ति पटरी पर आ गई थी। इंडिगो ने अपनी विस्तार योजनाओं को अंजाम देते हुए औसतन हरेक हफ्ते एक नए विमान को बेड़े में शामिल करना शुरू कर दिया लेकिन उस हिसाब से उड़ान कमांडरों की उपलब्धता रफ्तार नहीं पकड़ पाई। एयरलाइन के एक अधिकारी कहते हैं, 'पिछले सात महीनों से ही ऐसे संकट के लक्षण दिखने लगे थे। एक तरफ नए विमान शामिल हो रहे थे लेकिन कमांडरों की किल्लत थी।'
पिछली गर्मियों में इस संकट का अहसास पहली बार हुआ था। ड्यूटी लगाने वाले रोस्टरिंग विभाग से पायलटों के पास ऐसी कॉल जाने लगी थीं कि वे अपने अवकाश वाले दिन भी काम पर आएं। ऐसे अनुरोध कभी-कभार न होकर अक्सर होने लगे तो समस्या की गंभीरता का अहसास होने लगा। इसके साथ ही नए पायलटों को नियुक्त कर पाने में एक नियम भी बाधा बनने लगा। वर्ष 2017 में लागू इस नियम के मुताबिक किसी भी पायलट को कंपनी छोडऩे के पहले एक साल का नोटिस देना होता है। ऐसे में मोटी तनख्वाह की पेशकश करने के बावजूद इंडिगो दूसरी एयरलाइंस से पायलट नहीं ला पा रही थी। ऐसे में इंडिगो ने लातिन अमेरिका और पश्चिम एशिया के देशों से पायलट लाने की भी कोशिश की। लेकिन विदेशी पायलटों को उड़ान संचालन की अनुमति देने की लंबी प्रक्रिया होने से उसे फौरन राहत नहीं मिल पाई। सूत्रों के मुताबिक एक विदेशी पायलट को भारत में उड़ान भरने के लिए डीजीसीए की अनुमति हासिल करने में तीन महीने से अधिक वक्त लग जाता है।
इंडिगो के सीएफओ शॉएर कहते हैं, 'हमने साल के अंत तक 120 विदेशी पायलटों को जोडऩे की योजना बनाई थी। उनमें से 20 इंडिगो का हिस्सा बन चुके हैं जबकि अन्य पायलट जून तक जुड़ जाएंगे। कई नियामकीय मंजूरी जरुरी होने से कुछ ज्यादा ही लंबा वक्त लग गया।' गत वर्ष जून में इंडिगो प्रबंधन ने अपने पायलटों को विश्राम दिवसों पर कार्य करने के लिए अधिक पैसे देने की पेशकश की थी। इंडिगो के अनुबंध में अधिकतर पायलटों को 56 दिनों का अर्जित अवकाश देने का प्रावधान होता है लेकिन प्रबंधन ने अपने पायलटों से इसे घटाकर 42 दिन करने और उसके एवज में बोनस देने की पेशकश रखी थी। लेकिन यह पेशकश रखते समय दूरंदेशी नहीं दिखाई गई थी। दरअसल इसके चलते पायलटों का मासिक उड़ान 1000 घंटे की सीमा पार करने लगा।
इसके अलावा पायलटों की तैनाती में भी अनियमितता देखने को मिली है। जहां मुंबई जैसे महानगर में एक रात में 250 पायलट मौजूद होते हैं वहीं पुणे जैसे छोटे केंद्रों के लिए नई भर्तियां ही बंद कर दी गई थीं। इसके चलते छोटे केंद्रों पर तैनात पायलटों को लगातार 3-4 दिन उड़ान भरनी पड़ती है।
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