इस साल के अंत तक भारतीय मीडिया बाजार अलग नजर आने के साथ ही अलग तरह से काम भी करने लगेगा। इस साल सितंबर तक ज़ी एंटरटेनमेंट के 7,126 करोड़ रुपये के कारोबार का पांचवां हिस्सा कोई रणनीतिक निवेशक खरीद चुका होगा। इसी तरह 13,448 करोड़ रुपये के आकार का स्टार इंडिया भी 59.5 अरब डॉलर वाली वाल्ट डिज्नी की पूर्ण परिचालन अनुषंगी बन चुका होगा। वायकॉम18 का स्वामित्व रखने वाली 5,207 करोड़ रुपये की कंपनी नेटवर्क18 पहले से ही रिलायंस इंडस्ट्रीज के तेजी से बढ़ते मीडिया पोर्टफोलियो का अंग बनी हुई है। रिलायंस समूह अपने मीडिया कारोबार के बारे में उठने वाले सवालों के जवाब शायद ही कभी देता है लेकिन केबल कंपनियों और फिल्म स्टूडियो समेत तमाम मीडिया परिसंपत्तियों को खरीदता रहा है। चर्चा चल रही है कि ज़ी एंटरटेनमेंट की हिस्सेदारी खरीदने की होड़ में कॉमकास्ट और टेनसेंट के साथ रिलायंस भी शामिल है।
ज़ी, सोनी, स्टार, वायकॉम18 और सन ग्रुप के चैनलों की हिस्सेदारी भारत की कुल टीवी दर्शक संख्या की 74 फीसदी है। अगर आपको यह लगता है कि यह तो केवल टीवी कंपनियों का आंकड़ा है तो याद रखें कि भारत के 1.47 लाख करोड़ रुपये के आकार वाले मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग में टीवी का हिस्सा 45 फीसदी है। शीर्ष पांच टीवी कंपनियों में ज़ी और स्टार सबसे आगे हैं। ज़ी के 37 चैनलों की कुल दर्शक संख्या में 20 फीसदी हिस्सेदारी है और वह पैसे कमाने में भी काफी आगे है। भले ही स्टार मुनाफा कमाने के मामले में उतना आगे नहीं है लेकिन इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल), कबड्डी, क्रिकेट प्रसारण और हॉटस्टार के रूप में उसके पास कमाई की भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं।
इस तरह देश की दो सबसे बड़ी मीडिया कंपनियों के स्वामित्व ढांचे में जबरदस्त बदलाव होने जा रहे हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है? पहला, ज़ी एंटरटेनमेंट इंटरप्राइजेज के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ पुनीत गोयनका कहते हैं, 'वर्ष 2020 तक मीडिया परिदृश्य बदल जाएगा। एकीकरण में तेजी आएगी लेकिन यह केवल चार बड़ी कंपनियों (स्टार, ज़ी, सोनी और वायकॉम) के भीतर ही रहेगा। आज कोई भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कंपनी 20 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के स्तर तक नहीं पहुंच सकती है।' फिर तो हमें 6,500 करोड़ रुपये वाले सोनी और 3,105 करोड़ रुपये वाले सन ग्रुप की तरफ से थोड़ी धक्केबाजी पर नजर रखनी होगी। इन दोनों कंपनियों के विलय की चर्चा काफी पहले उठी थी लेकिन कुछ ठोस सामने नहीं आया। चर्चा यह है कि सोनी अपना विस्तार करने के लिए बाजार पर नजरें टिकाए हुए है। उसे ज़ी में एक संभावित निवेशक भी बताया जा रहा है।
दूसरा, इस घटनाक्रम से ऑनलाइन वीडियो परिसंपत्ति खड़ी करने की जंग तेज होगी। याद रखें कि अमेरिका में नेटफ्लिक्स, एमेजॉन प्राइम वीडियो और अन्य खिलाडिय़ों के विकास ने दुनिया के सबसे बड़े मीडिया उद्योग को भी झकझोर दिया है। अकेले नेटफ्लिक्स ने कंटेंट निर्माण पर पिछले साल 8 अरब डॉलर खर्च किए। ऐसे में परंपरागत मीडिया फर्मों को प्रसारण सामग्री खरीदने के लिए कॉमकास्ट, नेटफ्लिक्स, एमेजॉन या ऐपल के बरक्स कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। यह उन बड़े कारणों में शामिल रहा है जिसके चलते रुपर्ट मर्डोक ने 30 अरब डॉलर वाली अपनी कंपनी ट्वेंटी फस्र्ट सेंचुरी फॉक्स का मोटा हिस्सा पिछले साल डिज्नी को बेचने का फैसला किया था।
हालांकि भारत इस तरह के हालात पैदा होने से काफी दूर है। वर्ष 2018 में भारतीय बाजार में टीवी दर्शकों की संख्या 13 फीसदी बढ़ी। बार्क के आंकड़ों की मानें तो टेलीविजन दर्शकों की संख्या 83.6 करोड़ हो गई जबकि वर्ष 2016 में यह 79 करोड़ थी। ब्रॉडबैंड कनेक्शन वाले 44.7 करोड़ भारतीयों ने ऑनलाइन वीडियो देखने में करीब 50 मिनट लगाया जो टीवी देखने में प्रतिदिन दिए जाने वाले वक्त 3.45 घंटे से काफी कम है। वर्ष 2018 में ओवर-द-टॉप (ओटीटी) ऐप के रफ्तार पकडऩे के बावजूद फिल्मों ने बढिय़ा कारोबार किया था। असल में, ऑनलाइन वीडियो प्लेटफॉर्म का उदय फिल्म कारोबार के लिहाज से पूरक ही साबित हुआ है।
यहां एक और पहलू पर नजर डालनी होगी। नेटफ्लिक्स ने अमेरिकी बाजार में 8-12 डॉलर मासिक के किराये पर दस्तक दी थी जबकि उस समय औसत किराया 40-80 डॉलर चल रहा था। उसकी तुलना में भारत में टीवी देखने का मासिक खर्च अब भी 2-5 डॉलर ही है। इस तरह भारतीय बाजार में एक वीडियो ऐप को कीमत के मामले में कोई विशेष स्थिति नहीं हासिल है। हालांकि बाजार नियामक ट्राई के चैनलों का मूल्य तय करने वाले नए आदेश के बाद तस्वीर थोड़ी बदल सकती है। नई व्यवस्था में दर्शकों को हरेक चैनल अलग-अलग लेने के लिए बाध्य किया जा रहा है जिससे टीवी देखने का खर्च बढ़ जाएगा।
भुगतान राजस्व आने में वक्त लग सकता है लेकिन ऑनलाइन ऐप पर विज्ञापन जोर पकडऩे लगा है। गोयनका कहते हैं, 'औसतन एक ओटीटी प्लेटफॉर्म लागत प्रति हजार के संदर्भ में 4-5 गुना दे देता है।' बड़े ऑनलाइन ऐप पर दिखने वाले विज्ञापनों की संख्या को देखें तो एक नया समानांतर कारोबार आकार लेता हुआ नजर आता है। कॉमस्कोर के आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई 2018 में यूट्यूब के मासिक दर्शकों की संख्या 25.4 करोड़ और हॉटस्टार की दर्शक संख्या 7.9 करोड़ तक पहुंच गई थी। ज़ी के ओटीटी ऐप ज़ी5 ने दिसंबर में 5.6 करोड़ सक्रिय उपभोक्ता होने का दावा किया है। भारत में तकनीक, मीडिया एवं दूरसंचार कंपनियों की तरफ से वित्त-पोषित करीब 35 वीडियो ऐप हैं। ऐसे में टेलीविजन बाजार के मुकाबले में विजयी होने वाले खिलाडिय़ों के नाम तय होने में लंबा वक्त लगेगा। इसका मतलब है कि आने वाले वर्षों में इस कारोबार में बड़े पैमाने पर धन लगेगा। इसके लिए कर्ज या इक्विटी का रास्ता अपनाना पड़ेगा जिससे बाजार एकीकरण भी होगा।
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