सीएलएसए के प्रबंध निदेशक और इक्विटी रणनीतिकार क्रिस वुड ने साप्ताहिक न्यूजलेटर ग्रीड ऐंड फियर में लिखा है कि भारतीय इक्विटी में नए निवेश से पहले विदेशी निवेशक अप्रैल-मई 2019 में होने वाले आम चुनाव के नतीजे का इंतजार कर सकते हैं।
उन्होंने कहा, भारत में बॉन्ड व मुद्रा बाजार राजकोषीय नरमी से बेफिक्र नजर आए क्योंकि वित्त वर्ष 2018-19 के पहले नौ महीने में कर संग्रह साल दर साल के हिसाब से महज 7 फीसदी बढ़ा। उनके मुताबिक, निवेशक यह मानकर चल रहे हैं कि लोकलुभावन कदम अल्पावधि में देखने को मिल सकते हैं, अगर इससे नरेंद्र मोदी को अप्रैल-मई के आम चुनाव में दोबारा जीतने में मदद मिलती हो।
वुड ने कहा, यहां हालांकि चुनाव नतीजे को लेकर बढ़ रही अनिश्चितता से देसी इक्विटी फंडों में निवेश में कमी का जोखिम है, जो शेयर बाजार को आगे बढ़ाने में तब से अहम रहा है जब मोदी ने मई 2014 में चुनाव जीता था। ताजा आंकड़े बताते हैं कि इस तरह की गिरावट हो रही है। यह स्पष्ट तौर पर अल्पावधि में बढ़ता जोखिम है और कई विदेश निवेशक चुनाव नतीजों की प्रतीक्षा करना चाहेंगे।
लेकिन आंकड़े इस तर्क का समर्थन नहीं करते। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, एफपीआई का इक्विटी में निवेश जनवरी 2019 में 0.1 अरब डॉलर घटा जबकि नवंबर व दिसंबर 2019 में ये निवेशक सकारात्मक बने हुए थे। विभिन्न क्षेत्रों की बात करें तो एफपीआई ने दवा कंपनियों के शेयरों की खरीदारी की जबकि इंडस्ट्रियल, धातु व वाहन कंपनियों के शेयरों की बिकवाली की।
चुनाव के नतीजे और बाजार पर इसके असर के संबंध में वुड का कहना है, इससे जुड़ा एक प्रमुख मसला यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी बहुमत हासिल कर पाएगी या नहीं। दूसरी ओर, अगर उसे बहुमत नहीं मिलता है तो वुड का मानना है कि इससे पीएमओ के जरिए सरकार चलाने की मोदी की स्टाइल पर बड़ा असर पड़ेगा।
उन्होंने कहा, अगले पांच साल तक जो भी सरकार चलाएगा उसे 2014 के बाद से मोदी की तरफ से क्रियान्वित ढांचागत सुधार का फायदा मिलेगा। कुछ ओपिनियन पोल में कहा गया है कि भाजपा हालांकि आगे बनी हुई है, लेकिन यह रफ्तार गंवा रही है और यहां तक कि अपनी सहयोगी पार्टियों का समर्थन भी, ऐसे में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को सामान्य बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने में संघर्ष करना पड़ सकता है।
नोमूरा की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुमत के साथ मोदी के सत्ता में आने की संभावना 22 फीसदी है। राजग को हालांकि जीत हासिल होगी, लेकिन भाजपा के बहुमत गंवाने की संभावना 40 फीसदी है। कांग्रेस की अगुआई में सरकार बनने की संभावना 20 फीसदी है जबकि तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की संभावना 18 फीसदी है।
नोमूरा की प्रबंध निदेशक और मुख्य अर्थशास्त्री सोनल वर्मा और ए नंदी ने रिपोर्ट में कहा है, भाजपा को नुकसान प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व इसके गठबंधन संप्रग को हुए फायदे तक सीमित नहीं है। यह गैर-राष्ट्रीय दलों के हक में भी है, जो अब किंगमेकर्स की भूमिका निभा सकते हैं। अब प्रमुख पार्टियां गैर-भाजपा मोर्चा बनाने के लिए कांग्रेस की तरफ झुक रही हैं।
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