► सीएजी ने कहा, रक्षा सामान खरीद में देरी के लिए भारतीय वायु सेना नौकरशाही जितनी जिम्मेदार ► 126 जेट मीडियम कॉम्बैटएयरक्राफ्ट के मूल सौदे के प्रत्येक चरण में अनियमितताएं ► रिपोर्ट में खरीद नीति को प्रभावित करने वाली खामियों की हुई पड़ताल ► अपाचे, चिनूक हेलीकॉप्टर, सी-130 ट्रांसपोर्ट प्लेन आदि खरीद की हुई जांच ► रिपोर्ट में वायु सेना से कहा गया कि एएसक्यूआर तय करने की प्रक्रिया दुरूस्त हो
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने भारतीय वायु सेना की पूंजीगत खरीदों पर अपनी रिपोर्ट में उसकी आलोचना की है। सीएजी ने कहा है कि भारतीय वायु सेना भी अहम रक्षा साजो-सामान की खरीद में देरी के लिए नौकरशाही जितनी ही जिम्मेदार है। सीएजी ने 126 जेट मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) के मूल सौदे में हर चरण में अनियमितताएं पाई हैं।
यह रिपोर्ट बुधवार को संसद में पेश की गई। इसमें कहा गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार का 36 राफेल विमानों का सौदा 2007 के एमएमआरसीए सौदे से 2.86 फीसदी सस्ता था। एमएमआरसीए सौदे को आखिरकार 2015 में रद्द किया गया। इस रिपोर्ट में भारत की खरीद नीति को प्रभावित कर रहीं खामियों और जटिलताओं की गहरी पड़ताल की गई है। इसमें अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर, मालवाहक चिनूक हेलीकॉप्टर, सी-130 ट्रांसपोर्ट प्लेन, विभिन्न हथियार और प्रशिक्षण सिस्टम समेत भारतीय वायु सेना की खरीद की भी पड़ताल की गई है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे सौदा करने वाली भारतीय टीम और बाद में सीएजी ने दोनों राफेल सौदों की तुलना की, जबकि इनमें तुलना नहीं की जा सकती। भारतीय वायुसेना किसी भी विमान या हथियार के लिए अपनी जरूरत एयर स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वॉयरमेंट (एएसक्यूआर) को बताता है जो वांछित उत्पाद के लिए कामकाज संबंधी जरूरी मानदंडों को परिभाषित करता है।
सीएजी ने कहा है कि वायुसेना ने कामकाज संबंधी मानदंडों के संदर्भ में एएसक्यूआर परिभाषित करने के बजाय उसे व्यापक बना दिया और उसमें तकनीकी या डिजाइन संबंधी विस्तृत विवरण शामिल कर दिया। इसके चलते कोई भी वेंडर एएसक्यूआर जरूरतों पर पूरी तरह खरा नहीं उतर सका, ग्राहक की जरूरतों का उल्लंघन हुआ, खरीद प्रक्रिया के दौरान एएसक्यूआर में बार-बार बदलाव किए गए और कुछ एएसक्यूआर में छूट भी हासिल की गई। रिपोर्ट कहती है, 'इससे तकनीकी मूल्यांकन प्रक्रिया की वस्तुनिष्ठता, समता एवं निरंतरता प्रभावित हुई। इसने तकनीकी एवं कीमत मूल्यांकन के दौरान मुश्किलें खड़ी कीं और प्रतिस्पद्र्धी निविदा प्रक्रिया की शुद्धता पर असर डाला। यह खरीद प्रक्रिया में देरी की एक प्रमुख वजह भी रही।'
सीएजी रिपोर्ट में वायुसेना से एएसक्यूआर तय करने की प्रक्रिया दुरूस्त करने की सिफारिश की गई है ताकि ग्राहक की कामकाजी मानदंडों को सही तरह से परिलक्षित किया जा सके। रिपोर्ट कहती है, 'विस्तृत तकनीकी या डिजाइन विवरणों वाले व्यापक एएसक्यूआर से बचना चाहिए, जब तक वे कामकाज के लिहाज से बहुत जरूरी न हों।' इसमें कहा गया है, 'इसलिए सीएजी यह सिफारिश करता है कि आईएएफ को एएसक्यूआर बनाने की अपनी प्रक्रिया सुधारनी चाहिए ताकि वे उपयोगकर्ताओं के व्यावहारिक मानकों को ठीक ढंग से प्रदर्शित कर सकें। व्यापक एएसक्यूआर से तब तक बचा जाना चाहिए, जब तक उनकी व्यावहारिक जरूरत नहीं हो।'
रिपोर्ट में एमएमआरसीए सौदे के लगभग प्रत्येक चरण में खामियां उजागर की गई हैं। पुराने मिग 21, 23 और 27 लड़ाकू विमानों को सेवाओं से बाहर करने के नजदीक समय और एसलीए तेजस के कार्यक्रम में देरी के कारण वायु सेना ने शुरुआत में दसॉ द्वारा विनिर्मित 126 मिराज 2000 विमानों की मांग की थी। एक कंपनी से खरीद को मंजूरी नहीं दिए जाने के कारण यह प्रस्ताव सरकार और वायु सेना के बीच घूमता रहा और इसमें चार साल लग गए।
इस तरह चार साल यह फैसला लेने में ही बीत गए कि विमान किसी एक कंपनी से खरीदे जाएं या प्रतिस्पर्धी बोली के जरिये खरीद जाएं। ऑडिट में कहा गया है कि रक्षा खरीद प्रक्रिया किसी एक स्रोत से खरीद को मंजूरी नहीं देती है। वहीं मंत्रालय रक्षा खरीद प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं करना चाहता था। ऐसे में दसॉ के साथ बातचीत करने, एकल स्रोत से खरीद और उसके लाइसेंसी उत्पादन की व्यवहार्यता का अध्ययन करने में छह महीने बिता देने का कोई तुक नहीं था। इसके बाद पांच वेंडरों को सूचना के लिए आग्रह भेजा गया, लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं मिला। इससे खरीद की प्रक्रिया में जनवरी 2004 में एएसक्यूआर बनाए जाने से लेकर अगस्त, 2007 में आरएफपी होने तक तीन साल की देरी हुई।
रिपोर्ट में तकनीकी मूल्यांकन प्रक्रिया में भी खामियां पाई गई हैं। असल में इसी वजह से दसॉ के राफेल को रद्द किया गया, जो 9 एएसक्यूआर मानकों पर खरी नहीं उतरी। इसकी तुलना में यूरोफाइटर टाइफून, साब ग्रिपेन, एफ/ए-18 और अन्य 4-5 एएसक्यूआर को पूरा नहीं कर पाईं।
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