प्रौद्योगिकी फर्मों पर नया कर! | |
श्रीमी चौधरी / नई दिल्ली 02 14, 2019 | | | | |
► प्रौद्योगिकी कंपनियों पर कर के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने तैयार किया मसौैदा
► सीबीडीटी के मसौदे पर 180 देशों के साथ हुई चर्चा
► अधिकांश देशों ने किया समर्थन
► राजस्व, उपभोक्ताओं की संख्या के आधार पर लगेगा नया कर
भारत में डिजिटल सेवाओं के जरिये भारी राजस्व कमा रही गूगल, फेसबुक, ट्विटर, एमेजॉन और दूसरी दिग्गज अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कंपनियों को डिजिटल कर देना पड़ सकता है। यह कर देश में उनके राजस्व और यूजर संख्या पर आधारित होगा। इस नए कर से सरकार को हजारों करोड़ रुपये मिल सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) 'महत्त्वपूर्ण आर्थिक मौजूदगी' की नई अवधारणा के तहत एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया है। इसे डिजिटल स्थायी प्रतिष्ठान (पीई) भी कहा जाता है। इस प्रस्ताव के तहत कर विभाग भारत में इन कंपनियों के उपभोक्ताओं की संख्या के आधार पर कर की दरों को निर्धारित करने की योजना बना रहा है।
विभाग के एक अधिकारी ने कहा, 'नया कर राजस्व पर आधारित होगा। यह कॉरपोरेट आय करों से अलग होगा जो कंपनियां भारत में अपने मुनाफे पर चुकाती हैं। यह कर डिजिटल सेवाओं पर लगेगा जो अंतरराष्टï्रीय कंपनियां भारत में अपनी इकाई के जरिये बेचती हैं।' सूत्रों का कहना है कि यह कर उन कंपनियों पर लगाया जाएगा जिनके भारत में 2,00,000 से अधिक उपभोक्ता हैं और कर की दरें 30 फीसदी और 40 फीसदी होंगी।
कम से कम 180 देशों के साथ इस बारे में बात की गई थी जिनमें से करीब 70 फीसदी ने इसका समर्थन किया है। कुछ देशों ने तो पहले ही डिजिटल कर लगाना शुरू कर दिया है। अधिकारी ने कहा, 'हमें कई देशों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। कई दूसरे पक्षों से भी राय मांगी थी जिन्होंने सकारात्मक रुख दिखाया।'
हालांकि कर अधिकारियों को उन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है जो इस कर से प्रभावित होंगी। इसमें सबसे बड़ा पेच यह है कि कुछ बड़ी कंपनियां भारत में अपनी स्थानीय इकाई या विदेशी सहयोगी कपंनी के जरिये कामकाज कर रही हैं। नए कानून से उन्हें अपने होल्डिंग ढांचे में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। एशियाई देश इन कंपनियों की पसंदीदा जगह है जहां उन्हें कारोबार बढ़ाने की अपार संभावना दिखती है क्योंकि इन देशों में इंटरनेट का इस्तेमाल बहुत तेजी से बढ़ रहा है। अनुमानों के मुताबिक भारत में 2021 तक इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 63.58 करोड़ तक पहुंच सकती है। ये कंपनियां अक्सर यह दलील देती हैं कि वे उस देश में कर का भुगतान कर रही हैं जहां वेल्यू का निर्माण किया गया है।
कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा उठाया गया है कि इन कंपनियों के पास स्थाई प्रतिष्ठान नहीं है। एक कर विशेषज्ञ ने कहा कि अधिकांश कंपनियों का कहना है कि उनकी अधिकांश सेवाएं कई देशों में डिजिटल तरीके से दी जाती हैं लेकिन वे अपने देश में मामूली भुगतान करती हैं। अधिकारी ने कहा कि इस तरह के फैसला एकतरफा नहीं हो सकते हैं क्योंकि यह एक जटिल क्षेत्र है और इसके लिए पूरी समझ और क्रियान्वयन की जरूरत है। अगर इसे अच्छी तरह नहीं संभाला गया तो दोहरे कराधान के रूप में इसकी व्याख्या हो सकती है। इससे निवेश और व्यापारिक रिश्ते हतोत्साहित हो सकते हैं। उन्होंने कहा, 'विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने के बाद ही अंतिम दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। इस बारे में 2020 में आम सहमति बनने की उम्मीद है।'
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