अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस इस सप्ताह ऐसे समय भारत आ रहे हैं, जब दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव की वजह से कारोबारी संबंध खराब होने की आशंका है। बहुत से लोग इस बात से चिंतित हैं कि भारत को विकासशील देश का दर्जा बनाए रखने के लिए तेजी से संरक्षणवादी बनते अमेरिका को राजी करने के विशेष प्रयास करने होंगे। रॉस की यात्रा इन खबरों के बीच हो रही है कि अमेरिका अपनी कारोबारी योजना में 'तरजीह की सामान्य प्रणाली (जीएसपी)' से भारत को हटाने के बारे में विचार कर रहा है। हालांकि भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने इसकी पुष्टि नहीं की है।
जीएसपी के तहत भारत को एक विकासशील देश होने के नाते अमेरिका को बहुत सी वस्तुओं का शुल्क-मुक्त निर्यात करने का मौका मिलता है। यह प्रणाली 1970 के दशक में लागू की गई थी और भारत इसका सबसे अधिक लाभ हासिल करने वाले देशों में से एक रहा है। कुछ अनुमानों के अनुसार इस योजना से अमेरिका को जितने राजस्व का नुकसान होता है, उसका एक चौथाई भारतीय निर्यातकों की जेब में जाता है। शून्य शुल्क की अहमियत का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारतीय परिधान निर्यातकों को यूरोपीय संघ को निर्यात में जूझना पड़ता है। इसकी वजह यह है कि उन्हें वहां ऐसा कोई लाभ नहीं मिलता है, जबकि बांग्लादेश जैसे देशों को शून्य शुल्क का फायदा मिलता है।
ऐसा लगता है कि भारत की कारोबारी गतिविधियों के बारे में अमेरिका की चिंताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है, जिसकी वजह अमेरिका का राजनीतिक माहौल है। अमेरिका का भारत के साथ व्यापार घाटा तुलनात्मक रूप से कम है। यह मुश्किल से 22 अरब डॉलर है, जबकि अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 566 अरब डॉलर है।
लेकिन भारत की अव्यवस्थित कारोबारी गतिविधियों से स्थिति और खराब हुई है। उदाहरण के लिए स्टेंट पर प्रतिबंध से अमेरिका में चिकित्सा उपकरण क्षेत्र के बंद होने की शिकायतें आई हैं। अमेरिका में डेयरी उद्योग ने भी शिकायत की है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने विशेष रूप से हार्ली डेविडसन मोटरसाइकिलों का जिक्र किया है, जो चुनावी रूप से अहम राज्य में बनती हैं। इन समस्याओं की वजह से पिछले साल 50 कारोबारी लाइनों को शून्य शुल्क वाली जीएसपी प्रणाली से बाहर कर दिया गया। हालांकि तब से मतभेद और बढ़े हैं। हाल में डिजिटल क्षेत्र में नीतिगत बदलाव कथित रूप से अमेरिका को खटक रहे हैं। उदाहरण के लिए भारत सरकार और नियामकों ने डेटा को स्थानीय स्तर पर भंडारित करने को लेकर सख्त रुख अपनाया है। इससे डिजिटल क्षेत्र की अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में कुछ डेटा संग्रहीत करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है, जिसे वे व्यावसायिक स्तर पर नुकसानदेह मानती हैं।
हाल में ई-कॉमर्स क्षेत्र को लेकर लिए गए फैसलों को संरक्षणवादी कदम के रूप में देखा जा रहा है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर निर्भर ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस को कहा गया है कि वे अपने प्लेटफॉर्मों पर विशेष प्रचार या स्टॉक या विक्रेता इकाइयों में भारी निवेश नहीं कर सकते।
इन बदलावों को भारतीय कंपनियों का पक्ष लेने और एकसमान मौकों को खत्म करने के रूप में देखा जा रहा है। अगर ऐसे बदलाव व्यापक नजरिया अपनाए बिना किए जाते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध से भारतीय निर्यात में बढ़ोतरी के मौके आने की उम्मीद थी। सरकार के लिए एक अच्छा निर्यात तंत्र बनाना प्राथमिकता रहा है, लेकिन जीएसपी से बाहर किए जाने से निर्यात-संवेदनशील क्षेत्रों में रोजगार सृजित करने की कोशिशों को तगड़ा झटका लगेगा। सरकार को रॉस की बात को धैर्य से सुनना होगा और यह देखना होगा कि कहां समझौता किया जा सकता है, जो भारत के राष्ट्रीय हितों को पूरा करता है। संरक्षणवाद किसी के हित में नहीं है, लेकिन भारत के हित में निश्चित रूप से नहीं।