कच्चे तेल के ज्यादा आयात के माध्यम से अमेरिका के साथ कारोबारी असंतुलन कम करने के भारत के संकल्प, भारत की प्रस्तावित ई-कॉमर्स नीति पर अमेरिकी चिंता और दोनों देशों द्वारा एक दूसरे पर लगाए गए प्रतिशोधात्मक कर जैसे मसले दोनों के बीच आगामी 14 फरवरी को होने वाली बातचीत के एजेंडे में शामिल होंगे। एक साल के उतार चढ़ाव के बाद होने जा रही सालाना कारोबारी वार्ता में वाणिज्य और उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस के साथ कारोबारी नीति के मतभेदों पर चर्चा करेंगे। पिछले एक साल से दोनों देश इन मसलों का कोई समाधान नहीं निकाल पाए हैं। शुल्क को लेकर मौजूदा मसले के अलावा भारत यह भी उम्मीद कर रहा है कि अमेरिका ई कॉमर्स में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कड़े नियमों को लेकर सवाल उठाएगा, जिसका वालमार्ट जैसी अमेरिकी दिग्गज कंपनियों पर असर पड़ेगा।अधिकारियों ने संकेत दिए हैं कि अमेरिका कारोबारी घाटा कम करने को लेकर भारत से स्पस्ट संकेत की मांग कर रहा था। अमेरिका जनरलाइज्ड सिस्टम प्रेफरेंस (जीएसपी) को रद्द करने पर भी विचार कर रहा है, जिसके माध्यम से 3,500 भारतीय उत्पादों का शुल्क मुक्त कारोबार कारोबार अमेरिका में करने की अनुमति मिली हुई है। अधिकारियों ने कहा कि भारत संभवतक्ष इस सिलसिले में ज्यादा दबाव नहीं डालेगा। पिछले साल दोनों देशों के बीच 2 प्लस 2 बातचीत में कारोबार के मसले पर विवाद ज्यादा रहा है। मुख्य ध्यान रक्षा और विदेश मामलों पर रहा। 'भारत अमेरिका रणनीतिक और वाणिज्यिक बातचीत' 2015 में शुरू हुई थी, इसके मुताबिक ही बातचीत हुई।। बहरहाल दो सालाना बैठकों के बाद यह फैसला किया गया कि कारोबार संबंधी मसलों को सुलझाने के लिए अलग से 'भारत अमेरिका वाणिज्यिक बातचीत' होगी।कारोबारी बातचीत के पहले दौर में प्रभु अक्टूबर 2017 में अमेरिका गए थे। लेकिन 2018 में दोनों देशों के बीच कारोबारी मसलों पर खींचतान बनी रही। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने कई बार विश्व व्यापार संगठन में भारत को खींचा है, जो भारत की निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं और सौर सेल आयात की सीमाओं को लेकर है। भारत ने भी स्टील और एल्युमीनियम पर अमेरिका द्वारा शुल्क लगाने को लेकर शिकायत दर्ज कराई है। दोनों देशों के बीच विवाद पिछले साल जुलाई में उच्च स्तर पर पहुंच गया जब भारत ने 29 कृषि उत्पादों पर शुल्क लगाने की घोषणा कर दी। अमेरिका से आने वाले सेब, जैतून और अखरोट पर 50 प्रतिशत ज्यादा कर लगाने के अलावा कुछ औद्योगिक उत्पाद भी निशाने पर हैं। भारत इन वस्तुओं का बड़ा केंद्र रह है, ऐसे में सरकार संभवत: अमेरिका को इसके माध्यम से संदेश भेजना चाहती है। बहरहाल भारत ने कर लगाने का फैसला 5 बार टाला है। सूत्रों ने कहा कि इस समय द्विपक्षीय कारोबार पैकेज पर काम चल रहा है। इसमें अमेरिका के सूचना और संचार तकनीक से जुड़े उत्पादों पर कर घटाना और भारतीय निर्यातों पर तरजीही शुल्क शामिल है। हालांकि एक अधिकारी ने कहा कि आगामी बातचीत के बारे में यह साफ है कि सिर्फ ताकतवर अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय ही इस मसले पर बात करेगा। डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत के दूसरे बड़े कारोबारी साझेदार के साथ संबंध उतार चढ़ाव भरे रहे हैं। भारत से अमेरिका को निर्यात 2017-18 में बढ़कर 47.87 अरब डॉलर हो गया, जो एक साल पहले के 42.21 अरब रुपये से ज्यादा है। इसकी वजह से व्यापार घाटे को लेकर अमेरिका की चिढ़ बढ़ी है। भारत को यह भी उम्मीद है कि निर्यात संवर्धन योजनाओं को लेकर अमेरिका की ओर से विश्व व्यापार संगठन में दायर मामले को लेकर भी गतिरोध खत्म होगा। अमेरिका ने आरोप लगाया है कि भारत ने 6 बड़ी निर्यात संवर्धन योजनाओं जैसे मर्केंडाइज एक्सपोर्ट फ्रॉम इंडिया स्कीम और एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स स्कीम से निर्यातकों को 7 अरब डॉलर का फायदा पहुंचाया है। योजना के तहत हजारों निर्यातकों को स्क्रिप्स मुहैया कराई जाती हैं, जिनका इस्तेमाल बुनियादी सीमा शुल्क के भुगतान में किया जा सकता है।
