मंत्रालय ने इस मसौदा संशोधन पर सार्वजनिक राय मांगी थी, जिसमें फर्जी खबरों का माध्यम बनने वाली कंपनियों के नियमन की बात कही गई थी। इन कंपनियों में सोशल मीडिया मंच जैसे फेसबुक और ट्विटर, दूरसंचार सेवा प्रदाता, क्लाउड कं पनियां जैसे एमेजॉन वेब सर्विस और गूगल, संदेश भेजने की सेवाएं देने वाले व्हाट्सऐप और शेयरचैट आदि शामिल हैं। संशोधन के प्रस्तावों में ऐसी कंपनियों के लिए सरकारी एजेंसी के आग्रह के 72 घंटे के भीतर संदेश का स्रोत मुहैया करना अनिवार्य होगा।
व्हाट्सऐप जैसे मंच जो संदेश गोपनीय रखने (एंड-टू-एंड इन्क्रिप्शन) की सुविधा देते हैं, ने कहा है कि किसी संदेश के स्रोत का पता लगाने का मतलब इन्क्रिप्शन तोड़ना होगा। व्हाट्सऐप ने कहा कि ऐसा करना उपयोगकर्ता की गोपनीयता के साथ समझौता करने जैसा होगा।
दूरसंचार कंपनियों के संगठन सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कहा कि 'गोपनीयता के लिहाज' से संदेश के स्रोत का पता लगाना कठिनाइयां पैदा कर सकता है। हालांकि इसी संगठन का हिस्सा रिलायंस जियो ने इससे अलग रुख जाहिर किया है। वह जियो चैट नाम से अपने मैसेजिंग ऐप्लीकेशन का संचालन करती है। करीब 28 करोड़ लोग इसका इस्तेमाल करता है। ज्यादातर तकनीकी कंपनियों ने अपने उद्योग संगठनों के जरिये विचार रखे हैं।
नैसकॉम की शोध इकाई डेटा सिक्योरिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने विचार पेश किया। इसने कहा कि मसौदा नियमों में जांच के मकसद से कम से कम 180 दिनों तक सूचनाएं रखना अतार्किक नहीं है और यह अनुमति सीमा के दायरे में है। ग्लोबल नेटवर्क इनिशिएटिव ने द इंटरनेट ऐंड मोबाइल ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया ने प्रस्तावित नियमों में बदलाव की जोरदार हिमायत की। फेसबुक, ओला, एयरबीएनबी, माइक्रोसॉफ्ट, ऑरेकल, एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां इसके सदस्य हैं।