श्रम बल में सिर्फ आधी आबादी! | |
सोमेश झा / 02 03, 2019 | | | | |
एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में आधी कामकाजी आबादी आर्थिक गतिविधि में योगदान नहीं दे रही है जिसमें 15 साल से अधिक उम्र के लोग हैं
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के ताजा रोजगार सर्वेक्षण के मुताबिक देश के इतिहास में पहली बार वित्त वर्ष 2017-18 में आधी कामकाजी आबादी (15 साल और उससे अधिक उम्र के लोग) किसी भी आर्थिक गतिविधि में योगदान नहीं दे रही थी। 2017-18 में श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) 49.8 फीसदी थी। यह आबादी का वह हिस्सा होता है जो काम कर रहा है या फिर काम के लिए उपलब्ध है। साल 2011-12 में यह 55.9 फीसदी था लेकिन उसके बाद से इसमें तेज गिरावट आई है। एक दशक पहले 2004-05 में आबादी का 63.7 फीसदी हिस्सा श्रम बल था।
यह 2017-18 के लिए एनएसएसओ की सामयिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट का हिस्सा है जिसे सरकार ने जारी नहीं किया है और बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इसका जायजा लिया है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकॉनमिक रिलेशंस में सीनियर फेलो राधिका कपूर ने कहा, 'अगर आप अपनी आबादी का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं तो यह गंभीर चिंता का विषय है। खासकर तब जबकि देश की 65 फीसदी आबादी युवा है।'
हालांकि 2004-05 की तुलना में 2011-12 में एलएफपीआर में गिरावट 2017-18 के मुकाबले अधिक (11.5 फीसदी) थी। 2011-12 और 2017-18 के बीच सक्रिय श्रम बल में गिरावट पुरुषों की तुलना में महिलाओं में दोगुनी थी। 2011-12 की तुलना में 2017-18 में महिलाओं की एलएफपीआर करीब 8 फीसदी गिरावट के साथ 23.3 फीसदी रही। दूसरी ओर पुरुषों की एलएफपीआर चार फीसदी गिरकर 2017-18 में 75.8 फीसदी रही। इस तरह देश की करीब एक चौथाई महिलाएं ही काम कर रही थीं या रोजगार की तलाश में थीं।
एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 में एलएफपीआर में गिरावट शहरी इलाकों (49.3 फीसदी से 47.6 फीसदी) की तुलना में ग्रामीण इलाकों (67.7 फीसदी से 58.7 फीसदी) में ज्यादा थी। गांवों में सक्रिय श्रम बल में भारी गिरावट की वजह से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एलएफपीआर का अंतर कम हुआ है। बेंगलूरु में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर सस्टनेबल इंम्प्लॉयमेंट के प्रमुख अमित भोसले कहते हैं, 'श्रम बल की घटती तादाद में शिक्षा की एक अहम भूमिका है। लेकिन केस स्टडी और जमीनी रिपोर्ट से यह अंदाजा मिलता है कि काम करने लायक उपयुक्त कामों की कमी है खासतौर पर महिलाओं के लिए। महिलाओं के काम करने के निर्णय में काम के समय में लचीलापन और घर से कार्यस्थल की दूरी भी अहम भूमिका निभाती है।'
हालांकि शहरी क्षेत्रों में महिलाओं का एलएफपीआर लगभग समान स्तर (2017-18 में 20.4 फीसदी) पर है और ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें 11 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि एलएफपीआर में गिरावट और देश में बेरोजगारी की ऊंची दर भी चिंता की एक वजह है। एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी दर 2017-18 में 45 साल के उच्चतम स्तर 6.1 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। एनएसएसओ ने रोजगार से जुड़ा सर्वेक्षण आखिरी बार 2011-12 में किया था और उसके मुकाबले बेरोजगारी दर तीन गुना ज्यादा है।
युवाओं के लिए एलएफपीआर (15-29 साल उम्र वर्ग में) 38.2 फीसदी रही जो 2011-12 में 44.6 फीसदी थी। इस उम्र वर्ग में भी श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी दर (8 फीसदी तक) में गिरावट पुरुषों के मुकाबले (4.8 फीसदी) ज्यादा थी। खास बात यह है कि युवाओं की बेरोजगारी दर में वर्ष 2011-12 की तुलना में दो-तिहाई गुना की तेजी आई। वर्ष 2017-18 में युवाओं की बेरोजगारी दर 13.6-27.2 फीसदी के दायरे में थी।
कपूर का कहना है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले रचनात्मक नौकरियों के लिए माहौल बनाने और रोजगार पर जोर देने से एलएफपीआर में गिरावट के रुझान को कम करने में मदद मिल सकती है। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने पिछले हफ्ते यह खबर दी थी कि राष्ट्रीय स्तर पर एलएफपीआर में गिरावट 2011-12 के 39.5 फीसदी से कम होकर 2017-18 में 39.9 फीसदी तक रही। हालांकि एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक यह सभी उम्र वर्ग (पांच साल से अधिक) के लिए था।
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