क्या वास्तव में दूसरी इंदिरा हैं प्रियंका? | वीरेंद्र सिंह रावत / January 30, 2019 | | | | |
वर्ष 2014 के लोक सभा चुनावों के प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा के एक बयान पर अच्छा खासा विवाद हुआ था। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर बयान देते हुए 'नीच' शब्द का इस्तेमाल किया था। रायबरेली से उनकी मां सोनिया गांधी और अमेठी से उनके भाई राहुल गांधी मैदान में थे। प्रियंका उनके चुनाव प्रबंधन का जिम्मा संभाल रही थीं। मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री और प्रियंका के पिता राजीव गांधी की नीतियों की आलोचना की थी। जब प्रियंका से इस बारे में प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा था कि मोदी 'नीच राजनीति' कर रहे हैं। उनका कहना था कि लोग उन्हें मुंहतोड़ जवाब देंगे।
अलबत्ता भाजपा ने उनके इस बयान को मोदी के खिलाफ जातिवादी टिप्पणी बताया और कहा कि प्रियंका ने उनकी सामान्य पृष्ठïभूमि का मजाक उड़ाया है। बाद में राहुल सहित कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में इस विवाद को ठंडा करने की कोशिश की और कहा कि प्रियंका ने मोदी के काम और विचारधारा की आलोचना की थी, उन पर जातिगत टिप्पणी नहीं की थी। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भाजपा ने आम चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में केवल दो ही सीटों पर सिमट गई। 2009 के आम चुनावों में पार्टी ने राज्य में 22 सीटें जीती थीं। प्रियंका को अब पार्टी का महासचिव बनाया गया है और आगामी आम चुनावों में पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है। उत्तर प्रदेश में भाजपा, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के गठबंधन के बीच त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद की जा रही है। करीब दो दशक पहले प्रियंका के राजनीनिक परिदृश्य में उभरने के बाद से ही लगातार उनके सक्रिय राजनीति में उतरने को लेकर कयास लगाए जाते रहे हैं। जब तब प्रियंका को मोदी के खिलाफ उतारने की मांग करने वाले पोस्टर लगते रहते हैं। मोदी ने 2014 के आम चुनावों के बाद से एक के बाद एक कई राज्यों में भाजपा को जीत दिलाई। अपने नए अवतार में प्रियंका से यह उम्मीद की जा रही है कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी को चुनाव लडऩे के लिए चुस्त दुरुस्त करेगी और साथ ही दलितों, मुस्लिमों और अगड़ी जाति के मतदाताओं को फिर से पार्टी से जोड़ेंगी।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हाल में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर किया। इन नतीजों से उत्तर प्रदेश में पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है। राज्य में लोक सभा की 80 सीटें हैं और माना जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। कभी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का दबदबा था लेकिन 1980 के दशक के अंत में जाति आधारित दलों के उभार खासकर 5 दिसंबर, 1989 में मुलायम सिंह की अगुआई में जनता दल की सरकार बनने के बाद से पार्टी राज्य में हाशिये पर चली गई।
हाल के चुनावों में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मत प्रतिशत बहुत नीचे चला गया। 2012 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को 13.26 फीसदी और 2017 में महज 6.2 फीसदी वोट मिले। 2014 के लोक सभा चुनावों में पार्टी को 7.53 फीसदी वोट हासिल हुए जो भाजपा, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से काफी कम था। प्रियंका को जहां पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई है, वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। हालांकि अभी तक आधिकारिक रूप से इस बात की घोषणा नहीं की गई है कि उन्हें किन सीटों की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी लेकिन सूत्रों का कहना है कि दोनों को 40-40 सीटों का जिम्मा मिलेगा।
प्रियंका की नियुक्ति से कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई में उत्साह का संचार हुआ है जो एक के बाद एक कई चुनावों में हार के बाद इसकी आदी हो चुकी थी। कांग्रेस नेताओं को विश्वास है कि प्रियंका पार्टी के लिए उत्प्रेरक का काम करेगी और भाजपा तथा सपा-बसपा के चुनाव पूर्व गठबंधन से लडऩे के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाएंगी। सपा-बसपा गठबंधन ने पहले ही कांग्रेस के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं। सच्चाई यह है कि गठबंधन में जगह नहीं मिलने से ही कांग्रेस ने चुनावों में अपना सबकुछ झोंकने का फैसला किया। अलबत्ता प्रियंका की राह आसान नहीं है। पहले भी पार्टी अमेठी और राय बरेली में उनकी देखरेख में चुनाव लड़ी है लेकिन उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा। उदाहरण के लिए अमेठी में राहुल की जीत का अंतर लगातार कम हुआ है। 2004 के लोक सभा चुनावों में यह 370,000 मतों से, 2009 में 290,000 मतों से और 2014 में 100,000 मतों के अंतर से जीते थे। हालांकि इन चुनावों के दौरान प्रियंका ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की।
राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान का कहना है कि प्रियंका पार्टी में ऊर्जा का संचार करेंगी। उन्होंने कहा, 'कांग्रेस उत्तर प्रदेश में हाशिए पर है और उसका जनाधार केवल अमेठी तथा राय बरेली तक ही सीमित है। अगर प्रियंका के उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा तो फिर भाजपा और उसके नेता परेशान क्यों हैं।' प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। इस पर प्रधान ने कहा कि इस तरह के आरोपों से वोटिंग के रुझान पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने कहा, 'हर पार्टी में कई ऐसे नेता होते हैं जिन पर भ्रष्टïाचार के मामले होते हैं फिर चाहे वह भाजपा, सपा हो या बसपा। सच्चाई यह है कि प्रियंका की सक्रिय भूमिका से सपा-बसपा गठबंधन से मुस्लिम वोट दूर छिटक सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मायावती को लेकर अल्पसंख्यकों के मन में आशंका है। वह पहले तीन बार भाजपा के साथ हाथ मिला चुकी हैं।'
यह तो समय बताएगा कि प्रियंका अपनी दादी का करिश्मा दोहरा पाएंगी या नहीं, लेकिन आगामी आमचुनावों में उत्तर प्रदेश में भारी जीत की उम्मीद कर रहा सपा-बसपा गठबंधन प्रियंका और उनके 'बहुप्रचारित करिश्मे' के मद्देनजर अपनी रणनीति में बदलाव कर सकता है।
|