ऋण माफी से बेहतर आय सहायता: एजेंसी | एजेंसियां / January 29, 2019 | | | | |
देश में मुश्किलों से घिरे किसान वर्ग के लिए राहत के उपायों को लेकर बहस जारी है। इस बीच घरेलू रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स का कहना है कि एक मुख्य केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में आय सहायता ऋण माफी से बेहतर विकल्प है। एजेंसी ने कहा है कि अगर वित्त वर्ष 2020 के अंतरिम बजट में सीमांत और लघु किसानों के लिए सालाना 8,000 रुपये प्रति एकड़ की आय सहायता की घोषणा की जाती है तो हर सीमांत किसान को सालाना औसतन 7,515 रुपये और छोटे किसान को 27,942 रुपये मिलेंगे। ये राशि उससे काफी कम हैं, जो 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में गरीबों के लिए सार्वभौमिक बुनियादी आय योजना में आंकी गई है।
आय सहायता से केंद्र सरकार के खजाने पर 1,468 अरब रुपये (जीडीपी का 0.70 फीसदी) का भार आएगा। हालांकि अगर इसे मुख्य केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया गया तो लागत केंद्र और राज्य सरकारों में बंटेगी। इस स्थिति में केंद्र सरकार के खजाने पर लागत जीडीपी की 0.43 फीसदी होगी, जबकि राज्य सरकारों के खजाने पर संयुक्त रूप से लागत जीडीपी की 0.27 फीसदी आएगी। किसी भी तरीके से यह आसान विकल्प नहीं है। अगर इसे मुख्य केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया गया तो आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश पर दबाव बढ़ेगा क्योंकि ये पहले ही कर्ज माफी की घोषणा कर चुके हैं। केवल छत्तीसगढ़ और झारखंड ही ऐसे खर्च को उठाने की स्थिति में होंगे। एजेंसी की प्रतिक्रिया से एक दिन पहले ही विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने वादा किया था कि अगर वह 2019 के आम चुनावों में सत्ता में आती है तो एक आय सहायता योजना शुरू करेगी। एजेंसी ने आगामी बजट में ऐसी योजना शामिल होने की संभावना जताई है। एजेंसी ने कहा है कि कृषि संकट नई बात नहीं है। पहले भी बहुत सी सरकारें कृषि संकट के समाधान के लिए कई योजनाएं अपना चुकी हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी खर्च में बढ़ोतरी, न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी, कृषि ऋण में बढ़ोतरी, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की शुरुआत, ऋण माफी और प्रत्यक्ष आय सहायता आदि शामिल हैं। इंडिया रेटिंग्स ने कहा है कि आगामी आम चुनावों को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों के बजटों में किसानों की दिक्कतें दूर करने पर जोर रहेगा।
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