दायरे का अतिक्रमण | संपादकीय / January 27, 2019 | | | | |
गत सप्ताह केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी चंदा कोछड़, उनके पति दीपक कोछड़ और वीडियोकॉन समूह के प्रबंध निदेशक वेणुगोपाल धूत के खिलाफ मामला दायर किया। सीबीआई का कहना है आईसीआईसीआई ने वर्ष 2009-11 के बीच धूत से जुड़ी कंपनियों को छह अवसरों पर 1,875 करोड़ रुपये का जो कर्ज दिया उसमें अनियमितता थी। सीबीआई ने यह दावा भी किया कि चंदा और उनके पति को 64 करोड़ रुपये का अवैध भुगतान किया गया जो संभवत: ऋण पारित करने के बदले दिया गया। इन ऋणों में अनियमितता के दावे नए नहीं हैं और इन्हीं के चलते गत वर्ष चंदा को बैंक में अपना पद छोडऩा पड़ा था। सीबीआईकी पहली प्राथमिकी में वित्तीय जगत के कई नामी लोगों का उल्लेख था जो किसी न किसी तरह आईसीआईसीआई बैंक से संबद्ध थे। इनमें से कई आज भी बड़ी वित्तीय कंपनियों के शीर्ष पर हैं।
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने सप्ताहांत पर एक ब्लॉग लिखकर जांचकर्ताओं पर अत्यधिक दुस्साहसिक और अहंकारोन्माद का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इस मामले में पेशेवर रुख नहीं अपनाया गया क्योंकि इस प्राथमिकी में बैंकिंग उद्योग के तमाम लोगों को समेट लिया गया। जेटली के कड़े शब्द निराधार नहीं हैं और उनका दायरा इस विशिष्ट मामले से परे भी है। सीबीआई का रिकॉर्ड उतार-चढ़ाव भरा रहा है। चंदा के खिलाफ मामला जिस सूचना पर आधारित है वह अत्यंत क्षीण है। धूत की कंपनियों को ऋण अकेले आईसीआईसीआई बैंक ने नहीं दिया था बल्कि यह भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व वाला 20 से अधिक बैंकों का समूह था। क्या उन सभी बैंकों की जांच होगी? या फिर सीबीआई को लगता है कि 19 बैंकों के पास ऋण देने की उचित वजह थी और केवल आईसीआईसीआई गलती कर रहा था। सीबीआई ने प्राथमिकी में जो अन्य नाम लिए उनमें केवी कामत और टाटा कैपिटल के राजीव सबरवाल जैसे बड़े नाम शामिल हैं। इससे भी दावों की कमजोरी पता चलती है। इसलिए कि आईसीआईसीआई बैंक का निर्णय भी अकेले चंदा का नहीं था। वह तो कुछ प्रासंगिक बैठकों तक में शामिल नहीं हुई थीं। ऐसे में क्या सीबीआई अन्य सभी लोगों की आपराधिकता साबित कर धूत को ऋण देने का एक व्यापक षडयंत्र उजागर करेगी? जिस समय चंदा शीर्ष पर थीं, आईसीआईसीआई बैंक ने कर्जदाताओं के समूह में अपना जोखिम कम ही किया।
चंदा तथा तमाम अन्य लोगों के ऊपर लगे ये आरोप लंबे समय से सार्वजनिक हैं लेकिन सीबीआई की प्राथमिकी ने इनका जवाब तलाशने की कोई कोशिश नहीं की। निश्चित तौर पर अगर एजेंसी को एक प्राथमिकी दर्ज करने में एक वर्ष का समय लग गया तो आरोप पत्र दाखिल करने में कितना अरसा लगेगा? वित्त मंत्री का यह सवाल उठाना बिल्कुल जायज है कि लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय ऐसा रास्ता क्यों अपनाया गया जो कहीं नहीं ले जाता? बहुत हद तक यह संभव है कि जांच से यह पता चले कि कोछड़ दंपती और धूत के खिलाफ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब देना आवश्यक हो। यकीनन धूत और दीपक कोछड़ के बीच लेनदेन पर सवालिया निशान लगे हैं और इनके जवाब देने आवश्यक हैं। परंतु, सीबीआई को शायद यह पता नही नहीं है कि इन मसलों से समझदारीपूर्वक कैसे निपटा जाता है। जैसा कि जेटली ने कहा भी एजेंसी को समुचित प्रमाणों के आधार केवल अपने प्राथमिक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। किसी को भी संदेह के आधार पर शिकार बना लेना कोई विकल्प नहीं है।
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