कांग्रेस का दांव, सक्रिय राजनीति में उतरीं प्रियंका | |
अर्चिस मोहन / नई दिल्ली 01 23, 2019 | | | | |
पूर्वी उत्तर प्रदेश की 40 सीटों की मिली जिम्मेदारी
लोकसभा चुनावों में अब 90 दिन से भी कम समय रह गया है और बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी महासचिव नियुक्त कर दिया। प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की 40 सीटों पर पार्टी की नैया पार लगाने का जिम्मा दिया गया है जिनमें गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत अमेठी और रायबरेली सीटें तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी सीट भी शामिल है। हाल में 47 साल पूरे करने वाली प्रियंका की पिछले एक दशक के दौरान पार्टी की निर्णय प्रक्रिया में अहम भूमिका रही है लेकिन वह सक्रिय राजनीति से दूर ही रहीं।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक वह मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति के लिए हुए सलाह मशविरे का हिस्सा थीं। इस नियुक्ति के साथ ही सक्रिय राजनीति में उनका पदार्पण हो गया है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनावी राजनीति से हटने का संकेत दे चुकी हैं जिससे प्रियंका के लोक सभा चुनावों में उतरने का रास्ता साफ हो गया है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक वह रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं जो सीट अभी उनकी मां के पास है।
भाजपा ने प्रियंका की नियुक्ति पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कांग्रेस वंशवाद पर चलती है और उसमें आंतरिक लोकतंत्र के लिए कोई जगह नहीं है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि कांग्रेस इस बात को स्वीकार कर चुकी है कि राहुल पार्टी की कमान संभालने में नाकाम रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव सहित कांग्रेस के सहयोगी दलों ने प्रियंका की नियुक्ति का स्वागत किया। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि प्रियंका के करिश्मे से पार्टी को लोक सभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अहम राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिलेगी।
प्रियंका की नियुक्ति से कम से कम उत्तर प्रदेश में न केवल भाजपा बल्कि बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की संभावनाओं पर भी असर पड़ेगा। अमेठी में पत्रकारों से बातचीत में राहुल ने संकेत दिया कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी सपा और बसपा के साथ गठबंधन बनाने के लिए फिर से बात करने को तैयार है। सपा और बसपा ने लोक सभा चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश में गठबंधन बनाने की घोषणा की है लेकिन कांग्रेस को इससे दूर रखा है। इस तरह नेहरू-गांधी परिवार आम चुनावों के लिए कोई कसर नहीं छोडऩा चाहता है और प्रियंका की नियुक्ति भी इसी रणनीति का हिस्सा है। उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से भाजपा के सांसद और राहुल-प्रियंका के चचेरे भाई वरुण गांधी के भी कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें हैं।
माना जाता है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह उन्हें पसंद नहीं करते हैं। कांग्रेस में कई नेता प्रियंका की नियुक्ति को मोदी और शाह की अगुआई वाली भाजपा के खिलाफ सीधी लड़ाई के रूप में देखते हैं। कुछ नेताओं का यह भी कहना है कि उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार के मतदाताओं का दिल जीतने के लिए पार्टी ने अपने तरकश से यह अंतिम हथियार निकाला है। 1989 के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार में अपना प्रभाव खोने के कारण पिछले 30 साल में कांग्रेस कभी भी लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं कर पाई है। पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को महासचिव बनाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 40 सीटों का प्रभारी बनाया है।
पार्टी का मानना है कि प्रियंका और सिंधिया की नियुक्ति से पार्टी को अगड़ी जातियों खासकर ब्राह्मणों और मुस्लिम तथा दलितों के बीच अपने जनाधार को फिर से हासिल करने में मदद मिलेगी। अब तक उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहे वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को अब हरियाणा की जिम्मेदारी दी गई है। अशोक गहलोत की जगह युवा नेता के सी वेणुगोपाल को संगठन महासचिव बनाया गया है।
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