किसान की आय बढ़ाने के हो रहे उपाय | |
बिज़नेस स्टैंडर्ड एग्रीकल्चर राउंड टेबल -2019 | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली 01 17, 2019 | | | | |
अगले वित्त वर्ष के लिए अंतरिम बजट से कुछ ही दिन पहले आज केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने के नए तरीके अपना रही है और पिछले चार साल में कृषि संबंधी तमाम नीतियों का जोर उत्पादन के बजाय आय बढ़ाने पर रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे विकल्प देख रही है, जिनसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और बाजार मूल्य के बीच के अंतर को सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजा जा सके।
कृषि पर आयोजित बिजनेस स्टैंडर्ड राउंड टेबल के दौरान श्री सिंह ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि 2014 से पहले कई फसलों के एमएसपी उनके उत्पादन पर आने वाली लागत से भी 10-15 फीसदी कम थे। उन्होंने यह भी कहा कि पिछली किसी भी सरकार ने एमएसपी बढ़ाने की हिम्मत नहीं की क्योंकि उन्हें वित्तीय बोझ बढऩे का डर था। लेकिन मोदी सरकार ने एमएसपी में कई गुना इजाफा ही नहीं किया है बल्कि उपज की खरीद बढ़ाने के लिए भी ठोस कदम उठाए हैं।
कृषि मंत्री ने कहा, '2014 से पहले नेफेड के जरिये केवल 7 लाख टन तिलहन और दलहन खरीदी गई थी और नेफेड खुद भी बंदी के कगार पर पहुंच चुका थी। लेकिन हमने उसे उबारकर इतना मजबूत बना दिया कि आज वह मुनाफा कमा रही है और राजग सरकार पिछले चार साल में किसानों से 95 लाख टन दलहन तथा तिलहन खरीद चुकी है।' किसानों की आत्महत्या के लिए उन्होंने पिछली सरकारों की गलत नीतियों को दोषी ठहराते हुए कहा, 'आजादी के 70 साल बाद एक भी किसान की मौत हम सब के लिए शर्म की बात है, लेकिन इसकी शुरुआत 1980 के दशक में ही हो गई थी क्योंकि हरित क्रांति के बाद के प्रभावों को खत्म करने के लिए कोई कोशिश ही नहीं की गई।' उन्होंने कहा कि 1999 तक भी खेती में कोई सुधार नहीं किया गया और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के 'जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान' नारे के बाद ही हरित क्रांति के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए खेती और विज्ञान का संगम किया गया।
श्री सिंह ने बताया कि 2003 में देश भर के कृषि मंत्रियों की बैठक हुई थी, जिसमें आदर्श एपीएमसी कानून बनाने का फैसला हुआ। 2004 में यह प्रस्ताव राज्यों के पास भेज दिया गया, लेकिन उसके बाद के 10 साल में इस पर कोई काम नहीं हुआ। 2004 में ही मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और उर्वरकों की लीकेज रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने नीमयुक्त यूरिया का सुझाव दिया था। मगर उस पर भी 2014 के बाद ही काम शुरू हुआ। उन्होंने कहा, 'इसलिए अगर आज कोई हमसे पूछता है कि किसानों की मदद के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं तो पहले उन्हें अपने आप से पूछना चाहिए कि पिछली सरकारों ने 2004 से 2014 के बीच इन दो अहम कृषि सुधारों के लिए क्या किया?'
बहुचर्चित स्वामीनाथन आयोग रिपोर्ट का मुद्दा उठाते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि आयोग ने 200 से अधिक सुझावों वाली अपनी रिपोर्ट 2006 में ही सौंप दी थी। उन्होंने पूछा, 'लेकिन उनमें से कितने सुझाव 2004 से 2014 के बीच लागू किए गए?' उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों ने इन सिफारिशों को गंभीरता से लागू किया होता तो बहुत अधिक किसान उनके दायरे में आ चुके होते। उन्होंने कहा, 'जिन्होंने किसानों की मुख्य समस्याओं के लिए 2014 तक कुछ भी नहीं किया, वे अब सरकार से पूछते हैं कि सभी किसानों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। वे यह भी नहीं मानते कि सरकार बने 4-5 साल ही हुए हैं।'
सिंह ने कहा कि स्वामीनाथन ने सतत कृषि के लिए जैविक खेती को जरूरी बताया था और संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों को मिट्टी के स्वास्थ्य का प्रबंधन करने की जरूरत बताई थी। लेकिन 2014 तक मिट्टी का परीक्षण करने वाली प्रयोगशालाएं बेकार पड़ी थीं और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अलग से कोई कार्यक्रम नहीं चलाया गया था। उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन की रिपोर्ट में 22,000 से अधिक ग्रामीण हाट बनाने की सलाह थी। अगर 2006 में ही इसे लागू कर दिया गया होता तो अब तक हर जगह इसका असर दिखने लगता।
कृषि ऋण माफी की बात पर उन्होंने कहा कि किसानों को सशक्त बनाने के लिए ठोस उपाय करने होंगे और चुनाव के वक्त कर्ज माफी के नारे लगाने से बाज आना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि 2008 में भी कर्ज माफी का नारा दिया गया था, लेकिन 5-6 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में से केवल 72,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ करने का ऐलान हुआ। इसमें से भी केवल 53,000 करोड़ रुपये माफ किए गए थे। उन्होंने कहा कि इसमें भी ज्यादातर फायदा छोटे प्रसंस्करणकर्ताओं को मिल गया और सहकारी बैंकों का बहीखाता साफ हो गया।
श्री सिंह ने कहा कि जब राजग सत्ता में आया तो 99 बड़ी सिंचाई परियोजनाएं अटकी पड़ी थीं और 60 साल से ज्यादा समय तक देश पर शासन करने वाला परिवार पूछ रहा था कि वे पूरी कब होंगी। उन्होंने कहा, 'हमने अटकी परियोजनाओं के लिए 40,000 करोड़ रुपये का कोष मुहैया कराया है और यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि दिसंबर, 2019 तक उनमें से ज्यादातर पूरी हो जाएंगी।'
उन्होंने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए फसलों पर ही ध्यान देना काफी नहीं होगा। उसके साथ ही बागवानी जैसी सहायक गतिविधियों पर भी ध्यान देना होगा और हम उसी दिशा में बढ़ रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पहले सरकार की कृषि योजनाओं से फायदा उठाना तो दूर की बात रही, ज्यादातर लोग यह भी नहीं जानते थे कि कौन-कौन सी योजनाएं चल रही हैं। लेकिन पिछले साढ़े चार साल में प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के कल्याण की योजनाओं के बारे में काफी जागरूकता फैलाई है। उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पास भी काफी जमीन खाली पड़ी थी, जिस पर इस सरकार ने एकीकृत कृषि के मॉडल तैयार कराए।
किसानों को जोखिम से बचाने के उपायों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने प्राकृतिक आपदा के बाद फौरी राहत के लिए मुआवजा राशि तो बढ़ाई ही है, नई फसल बीमा योजना भी लाई गई है, जिसमें कटाई के बाद और उससे पहले के नुकसान को कवर किया गया है। श्री सिंह ने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने भी माना है कि राष्ट्रीय कृषक आयोग ने अपनी रिपोर्ट 2004 में दी थी, लेकिन गंभीरता के साथ उस पर काम नरेंद्र मोदी सरकार ने ही 2014 से किया। उन्होंने कहा, 'स्वामीनाथन बड़े आदमी हैं और जिस रिपोर्ट को पिछली सरकारों ने ठंडे बस्ते में डाल रखा था, उसके बारे में उनका यह बयान बहुत अहम है।' उन्होंने कहा कि सरकार का जोर पारदर्शी प्रक्रिया के जरिये किसानों की आय बढ़ाने पर है और पारदर्शिता से जिनको नुकसान हो रहा है, वे ही इस प्रक्रिया और योजनाओं पर सवाल खड़े कर रहे हैं। इसी कार्यक्रम में कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने कहा कि दलहन के मामले में सरकार के सामने अभूतपूर्व स्थिति खड़ी हो गई है। सरकार उत्पादन में कमी से निपटने को तो तैयार थी, लेकिन भारी उत्पादन के कारण अधिक फसल के लिए तैयार नहीं थी।
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