हाथ मल रहे जमीन नहीं देने वाले किसान | आर कृष्णा दास / रायपुर January 16, 2019 | | | | |
छत्तीसगढ़ के बस्तर में टकरागुडा गांव में फरवरी, 2008 की एक रात एक पुलिस दल आनन-फानन में दाखिल हो गया। बस्तर क्षेत्र में पुलिस नक्सल विरोधी अभियान के तहत कार्रवाई करती रहती है, लेकिन उस रात ऐसी कोई बात नहीं थी। वास्तव में यह पुलिस बल टाटा स्टील की प्रस्तावित परियोजना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे गांव वालों के खिलाफ मैदान में उतरा था। गांव के सरपंच सहित दर्जनों लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। टकरगुडा बस्तर जिले के लोहांडीगुडा प्रखंड के उन 10 गांवों में शामिल है, जिसे 55 लाख सालाना क्षमता वाले एकीकृत इस्पात संयंत्र के लिए चुना गया था।
हालांकि लौह-अयस्क खदान पाने में कथित तौर पर नाकाम रहने के बाद कंपनी ने 2016 में अपनी योजना स्थगित कर दी थी। बस्तर जिला प्रशासन ने कुल जरूरी जमीन का 75 प्रतिशत तक अधिग्रहीत कर लिया था और 1,165 किसानों को 42.07 करोड़ रुपये तक मुआवजा दिया था। हिदमो राम उन 542 किसानों में शामिल थे, जिन्होंने इस्पात परियोजना के लिए अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया। अब राम को पछतावा हो रहा है। नई कांग्रेस सरकार ने किसानों को जमीन वापस देने की घोषणा की है। जिन लोगों ने अपनी जमीन दी उन्हें वास्तविक लाभ मिलने जा रहा है। किसानों को उनकी जमीन के बदले मोटा मुआवजा मिला था। हिदमो राम ने कहा कि उन्हें एक सप्ताह जेल में बिताना पड़ा था और कई यातनाएं भी झेलनी पड़ी थीं। राम ने कहा, 'हमने संघर्ष किया, लेकिन अब लाभ उन्हें मिल रहा है, जिन्होंने हथियार डाल दिए थे।' बस्तर प्रशासन का कहना है कि उन किसानों को मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं है, जिन्होंने जमीन देने से इनकार कर दिया था। प्रशासन का यह भी कहना है कि उन लोगों से भी रकम वापस लेना संभव नहीं है, जो मुआवजे के तौर पर दी गई थी। जिन लोगों ने जमीन नहीं देने के लिए संघर्ष किया था, उनकी मुश्किलें अब भी नहीं खत्म नहीं हुई हैं।
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