वित्त मंत्रालय पूंजी बाजार नियामक सेबी की तरफ से गठित हरेक समिति में अपना प्रतिनिधि रखने की योजना बना रहा है। सरकार के इस कदम से भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्वायत्तता पर चोट पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों का विभाग (डीईए) ने सेबी को निर्देश दिया है कि वह अपने गठन के बाद से अब तक बनी सभी समितियों की सूची मुहैया कराए। इसके अलावा विभाग ने इन समितियों में मौजूद अपने प्रतिनिधियों का ब्योरा मांगा है।
सेबी की वेबसाइट की मानें तो उसकी कुल 33 समितियां वजूद में हैं जिनमें से 21 समितियां विशेषज्ञ-स्तरीय हैं। इस सूची में समुचित बाजार आचरण, प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजार संबंधी परामर्श पैनल, म्युचुअल फंड, साइबर सुरक्षा, कॉर्पोरेट शासन एवं अधिग्रहण जैसे मसलों पर बनी समितियां शामिल हैं।
सूत्रों का कहना है कि सेबी की सभी समितियों में अपने प्रतिनिधियों की मौजूदगी सुनिश्चित कर वित्त मंत्रालय सभी अहम फैसलों में अपनी सीधी भागीदारी सुनिश्चित करना चाह रहा है। सेबी की समितियों के फैसले न केवल इक्विटी बाजार बल्कि समूचे वित्तीय बाजार पारिस्थितिकी एवं अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डालते हैं। सेबी के कुछ फैसले वित्त मंत्रालय को रास नहीं आए हैं जिसके बाद ऐसा कदम उठाने के बारे में सोचा गया है। घटनाक्रम से परिचित एक अधिकारी ने कहा, 'ऐसा देखा गया है कि नियामक ने सरकार से परामर्श नहीं किया और दूसरे हितधारकों की राय पर गौर किए बगैर नीतियां घोषित कर दीं।'
उन्होंने कहा कि इन समितियों में मंत्रालय के प्रतिनिधि मौजूद होने से सरकार और सेबी के बीच समन्वय एवं संवाद बेहतर हो सकेगा। सभी हितधारकों के शामिल होने से बाजार नियमन संबंधी नीतिगत-निर्माण भी अधिक प्रभावी एवं सक्षम हो सकेगा।
सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रालय से मांगी गई जानकारी मुहैया कराने में सेबी जुट गया है और जल्द ही वांछित सूचना दे दी जाएगी। फिलहाल सेबी की कुछ गिनी-चुनी समितियों में ही मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह का हस्तक्षेप सेबी की स्वायत्तता के लिए ठीक नहीं है। सेबी की एक समिति में शामिल एक विशेषज्ञ ने कहा, 'जब पहले से ही सेबी के बोर्ड में वित्त मंत्रालय का प्रतिनिधि है तो फिर हर विशेषज्ञ समिति में उसके प्रतिनिधित्व की जरूरत नहीं है। इससे इन समितियों का फैसला प्रभावित हो सकता है।' संस्थागत स्वायत्तता से जुड़ा यह मुद्दा ऐसे वक्त सामने आया है जब सरकार के साथ मतभेदों के कारण आरबीआई के गवर्नर ऊर्जित पटेल के इस्तीफा देने के बाद महत्त्वपूर्ण संस्थानों की स्वायत्तता पर सवाल उठने लगे हैं।